अर्जुन की तरह घर-गृहस्थी को सफल करने के लिए मोदी जी ने लगाया पूरा जोर: मेनका गांधी
Sultanpur news, सुल्तानपुर। केंद्रीय मंत्री और सुल्तानपुर से भाजपा की उम्मीदवार मेनका गांधी ने पीएम मोदी की तुलना अर्जुन से की है। उन्होंने कहा कि ये करिश्मा है कि एक ऐसे जमीनी प्रधानमंत्री हमें मिले जो समझते हैं गृहस्थी एक उद्देश्य है। घर गृहस्थी को सफल करने के लिए मोदी जी ने पूरा जोर लगाकर गैस, शौचालय, बिजली कनेक्शन, आयुष्मान में इलाज की व्यवस्था, मुद्रा योजना लाए। बता दें कि मेनका गांधी इस बार सुल्तानपुर से बीजेपी उम्मीदवार हैं और वो बीते 30 मार्च से रोज दर्जनों सभाओं को संबोधित कर रही हैं।
पीएम मोदी की तुलना अर्जुन से की
सुल्तानपुर में अपने दौरे के छहवें दिन मेनका गांधी ने जयसिंहपुर विधानसभा का रुख किया। यहां बरौसा में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ''अर्जुन की आंख किस चीज पर थी? फिर खुद ही जवाब दिया उनकी आंख थी घर गृहस्थी पर। घर गृहस्थी जब सफल हो तो देश सफल होता है और उस घर गृहस्थी को सफल करने के लिए मोदी जी ने पूरा जोर लगाकर गैस, शौचालय, बिजली कनेक्शन, आयुष्मान में इलाज की व्यवस्था, मुद्रा योजना। मैंने पीलीभीत में 77 हजार व्यापारियों को लोन दिलवाया और यहां पर भी करूंगी।'' उन्होंने कहा कि ये करिश्मा है कि एक ऐसे जमीनी प्रधानमंत्री हमें मिले जो समझते हैं गृहस्थी एक उद्देश्य है।
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टिकट के बदले दलितों की पूंजी देती है बसपा
केंद्रीय मंत्री गुरुवार को एक बार फिर से बसपा पर हमलावर दिखाई दीं। उन्होंने मंच से कहा कि बसपा में टिकट बिकते हैं, ये खुद इसे नहीं छिपाते वो खुद गर्व से बोलते हैं की हां हम टिकट बेचते हैं आकर खरीदो, क्योंकि हम उसके साथ एक पूंजी दे रहे हैं दलितों की। इस दफा टिकट बिके हैं 15 करोड़ रुपए में, मैं पूछती हूं जिस आदमी ने 15 करोड़ में टिकट खरीदा है उसके ऊपर से वो बंदूकधारी है तो वो पंद्रह करोड़ रुपए वो वापस कैसे वसूलेगा।
जाति और कौम पर न सोचे कोई
''मैं पूछती हूं क्या सुल्तानपुर एक कुंआ है, जिसमें से पानी निकालते जाओ, निकालते जाओ ताकि सब लोग प्यासे रहें और आपसे इलेक्शन के पैसे वसूले, ऐसे नहीं होगा। जो इलेक्शन में खड़ा हो वो शराफत से आए, देने के लिए। हम लोग कुछ लेने के लिए नहीं आए। मेरी तो बिल्कुल कोई दिलचस्पी नहीं न कोई पैसों में न कोई चीजो में। मेरे पति ने मुझे छोड़ा था कुल मिलाकर एक छोटा से घर, दो बेडरूम का और आठ लाख रुपए। वो आठ से मैंने एक अस्पताल बनाया जो अभी 35 साल से दिल्ली में संजय गांधी के नाम पर चल रहा है। घर भी मैंने बेंच दिया चलते-चलते, क्योंकि पीलीभीत में कभी कुछ करना पड़ता है। अब मैं आई हूं सुल्तानपुर में, एक धर्म, एक लगाव भी पूरा करने। मैं आपसे मदद मांगूगी और कहूंगी कि कोई जाति पर न सोचे और कौम पर न सोचे।''
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