ऐसा फास्ट बॉलर दुनिया में कोई और नहीं, लोकतंत्र की रक्षा के लिए दे दी कुर्बानी
क्रिकेट की अपार लोकप्रियता किसी कामयाब खिलाड़ी को देश और दुनिया में सेलेब्रिटी बना देती है। उसकी हर गतिविधि पर लोगों की नजर रहती है।
स्पोर्ट्स डेस्क, 20 अगस्त: क्रिकेट की अपार लोकप्रियता किसी कामयाब खिलाड़ी को देश और दुनिया में सेलेब्रिटी बना देती है। उसकी हर गतिविधि पर लोगों की नजर रहती है। वह कोई सामाजिक कार्यकर्ता नहीं होता। लेकिन अगर लोकहित में वह कोई राजनीतिक विरोध करता है तो पूरी दुनिया में उसकी गूंज होने लगती है। 1998 के आसपास जिम्बाब्वे के हेनरी ओलंगा को दुनिया के प्रमुख तेज गेंदबाजों में गिना जाता था। उन्होंने अपनी फास्ट बॉलिंग से जिम्बाब्वे को कई मैच जिताये थे। वे अपने देश के पोस्टर ब्वॉय थे। लेकिन जल्द ही स्थिति बदल गयी।
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विरोध के लिए चुना वर्ल्ड कप का मैच
उस समय उनके देश जिम्बाब्वे में रॉबर्ट मुगावे का शासन था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी थी। काले समुदाय के हितों की रक्षा के नाम पर वे सत्ता (1980) में आये थे। लेकिन धीरे धीरे मुगाबे निरंकुश होते गये। सत्ता में बने रहने के लिए चुनावी धांधली के आरोप लगे। उन पर एक और गंभीर आरोप था। उन्होंने सेना की एक ऐसी ब्रिगेड बना रखी थी जिसका काम उनके राजनीतिक विरोधियों को खत्म करना था। कहा जाता है कि इस ब्रिगेड ने करीब 20 हजार लोगों को मारा था।
हेनरी ओलंगा देश की इस राजनीतिक व्यवस्था से नाखुश थे। उन्होंने लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए रॉबर्ट मुगाबे के विरोध का फैसला किया। वे काले समुदाय से थे फिर भी उन्होंने मुगाबे की दमनकारी राजनीति का समर्थन नहीं किया। विरोध के लिए उन्होंने एक बहुत बड़े अंतर्राष्ट्रीय मंच को चुना था। ये मौका था विश्वकप क्रिकेट में जिम्बाब्वे बनाम नामीबिया का मैच।
विश्वकप क्रिकेट मुकाबला : जिम्बाब्वे बनाम नामीबिया
2003 का विश्वकप क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे और केन्या की सह मेजबानी में खेला गया था। 10 फरवरी 2003 को हरारे क्रिकेट ग्राउंड पर जिम्बाब्वे और नामीबिया के बीच मैच था। जिम्बाब्वे की कप्तानी तेज गेंदबाज हीथ स्ट्रीक कर रहे थे। जिम्बाब्वे ने पहले बैटिंग की। क्रेग विशार्ट ने 172 (नाबाद) की पारी खेल कर तहलका मचा दिया। लेकिन जब एंडी फ्लावर बल्लेबाजी के लिए मैदान पर आये तो लोग हैरत में पड़ गये। उन्होंने अपनी बांह पर काली पट्टी बांध रखी थी। आमतौर पर किसी शोक के समय खिलाड़ी अपनी बांह पर काली पट्टी बांधते हैं। लेकिन उस समय न तो किसी क्रिकेट खिलाड़ी का निधन हुआ था और न ही कोई दुखद घटना हुई थी। लोग अनुमान लगाते रहे। एंडी के भाई ग्रांट फ्लावर ने बिना आउट हुए 78 रन बनाये। इस तरह जिम्बाब्वे ने 50 ओवरों में दो विकेट के नुकसान पर 340 रन बनाये।
मैच के मंच पर तानाशाह का विरोध
341 के टारगेट का पीछा करने के लिए नामिबिया की पारी शुरू हुई। लेकिन जब जिम्बाब्वे की टीम फील्डिंग के लिए मैदान पर आयी तब दर्शक हेनरी ओलंगा को देख कर चौंक गये। उन्होंने ने भी अपनी बांह पर काली पट्टी बांध रखी थी। लोग सोचने लगे टीम कि 11 खिलाड़ियों में सिर्फ दो ने ही क्यों काली पट्टी बांध रखी है? क्या इसका कोई खास मतलब है? नामिबिया ने 25.1 ओवर में पांच विकेट पर 104 रन बनाये थे कि बारिश आ गयी। तब डकवर्थ लुईस नियम के मुताबिक जिम्बाब्वे को 86 रनों से विजयी घोषित कर दिया।
मैच के बाद ओलंगा और एंडी ने एक वक्तव्य जारी कर अपनी बांह पर काली पट्टी बांधने की वजह बतायी। दरअसल हेनरी ओलंगा और एंडी फ्लावर ने जिम्बाब्वे में लोकतंत्र की हत्या के विरोध में अपनी बांह पर काली पट्टी बांधी थी। उन्होंने रॉबर्ट मुगाबे के निरंकुश और दमनकारी शासन के विरोध के लिए यह शांतिपूर्ण तरीका अपनाया। उन्होंने कहा था, हमारी यह छोटी सी कोशिश शायद हमरा प्यारे देश जिम्बाब्वे में मानवाधिकार हनन को रोकने में सहायक हो सके।
विरोध की कीमत
मुगाबे सरकार एंडी फ्लावर से अधिक ओलंगा से बहुत नाराज थी। एंडी गोरे थे लेकिन ओलंगा काले समुदाय से थे। उनके विरोध से देश के बहुसंख्यक काले समुदाय पर असर पड़ सकता था। इसलिए ओलंगा को दंडित करने की कार्रवाई शुरू हो गयी। खराब फऑरम का हवाला देकर उन्हें अगले छह मैचों के लिए टीम से बाहर कर दिया गया। बाद में उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया और गिरफ्तारी का वारंट भी जारी कर दिया गया। उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं। लेकिन विश्वकप आयोजन के दौरान रॉबर्ट मुगाबे ओलंगा पर कार्रवाई करने से परहेज कर थे क्यों कि इससे दुनिया भर में उनकी छवि और धूमिल हो जाती। 15 मार्च को जिम्बाब्वे को श्रीलंका के साथ सुपर-8 में आखिरी मैच खेलना था। दक्षिण अफ्रीका के शहर ईस्ट लंदन में ये मैच था। जिम्बाब्वे की टीम दक्षिण अफ्रीका में थी। इस मैच में एडी फ्लावर तो खेल रहे थे लेकिन ओलंगा टीम से बाहर थे।
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इंग्लैंड में जाकर छिपे
इस मैच में श्रीलंका ने जिम्बाब्वे को 74 रनों से हरा दिया। इस मैच के बाद हेनरी ओलंगा इंग्लैंड जा कर छिप गये। उन्होंने मजबूरी में प्रथम श्रेणी क्रिकेट से संन्यास ले लिया। 2003 में जब उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कहा तब उनकी उम्र सिर्फ 26 साल थी। तब वे अपने करियर के चरम पर थे। 30 टेस्ट में 68 विकेट और 50 वनडे में 58 विकेट लिये थे। वे जिम्बाब्वे की तरफ से टेस्ट खेलने वाले पहले अश्वेत खिलाड़ी थे। लेकिन उन्हें रॉबर्ट मुगाबे के विरोध की कीमत चुकानी पड़ी। उन्हें इंग्लैंड में 12 साल तक निर्वासित जीवन गुजारना पड़ा। फिर वे ऑस्ट्रेलिया चले गये। दरअसर 2004 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की शिक्षक तारा रीड से शादी कर ली थी। तारा रीड स्कूल में शारीरिक शिक्षा की टीचर थीं। एक कार्यक्रम में दोनों की मुलाकात हुई थी। 2015 में ओलंगा अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड चले गये थे।
क्रिकेटर से बने गायक
ओलंगा क्रिकेट खेलने के अलावा बहुत अच्छा गाते भी थे। ऑस्ट्रेलिया जाने का बाद उन्होंने गायन को गंभीरता से लिया। 2019 में वे ऑस्ट्रेलिया के चैनल 9 के रियलिटी सिंगिंग शो- द वॉयस लाइव- में शामिल हुए थे। 16 साल बाद वे एक बड़े सार्वजनिक मंच पर उपस्थित हुए थे। लेकिन उन्हें कोई पहचान नहीं पाया। जब वे गाने लगे तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो गये। गाने के बाद जब उन्होंने अपने क्रिकेटर होने का परिचय दिया तो एक जज ने उन्हें पहचान लिया। ओलंगा अपनी दूसरी पारी एक गायक के रूप में खेल रहे हैं। इस दुनिया में बहुत से प्रसिद्ध क्रिकेटर हुए लेकिन हेनरी ओलंगा की तरह साहस कोई नहीं दिखा पाया। उन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपने स्वर्णिम क्रिकेट करियर को कुर्बान कर दिया।