रोबोट बन गये हैं बैटर और फास्ट बॉलर ‘बेचारा’ ! डेथ ओवरों में अब सबकी पिटाई
टी-20 क्रिकेट में एक बड़ी क्रांति आ चुकी है। अब बल्लेबाज रोबोट बन गये हैं। इसके दो कारण हैं। पहला यह कि आइसीसी के नियम लगातार बल्लेबाजों के पक्ष में बन रहे हैं।
नई दिल्ली, 6 अक्टूबर: टी-20 क्रिकेट में एक बड़ी क्रांति आ चुकी है। अब बल्लेबाज रोबोट बन गये हैं। इसके दो कारण हैं। पहला यह कि आइसीसी के नियम लगातार बल्लेबाजों के पक्ष में बन रहे हैं। दूसरा, बल्लेबाज खुद ऐसे नये नये-शॉट्स इजाद कर रहे हैं जिनका गेंदबाज के पास कोई जवाब नहीं। दूसरी तरफ गेंदबाज इंसान के इंसान रह गये। नियमों की आड़ में उनके कौशल को छीना जाता रहा। उनके लिए मौके लगातार कम होते जा रहे हैं। क्रिकेट का बाजार भी गेंदबाजों के खिलाफ है। ऐसे में अब भला इंसान (बॉलर) रोबोट का मुकाबला कैसे कर सकता है। जाहिर है गेंदबाजों की धुलाई-कुटाई होनी ही है। आज दुनिया के बड़े से बड़े गेंदबाज इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। बात केवल हर्षल पटेल, भुवनेश्वर की नहीं है। जोश हेजलहुड, पैट कमिंस, कैगिसो रबाडा, एनरिच नोर्जे, नशीम शाह, हारिस रउफ जैसे धाकड़ तेज गेंदबाज भी लुटे-पिटे मुसाफिर की तरह दुर्गति झेल रहे हैं।
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जितने चौके-छक्के उतना अधिक पैसा
जितने अधिक चौके-छक्के, उतना अधिक मजा। जितना अधिक मजा उतना अधिक पैसा। पैसे की ताकत भला कौन नहीं जानता। पैसे के लिए क्रिकेट को भी बदल दिया। टी-20 क्रिकेट का जन्म ही खालिस मनोरंजन और पैसा के लिए हुआ है। टी-20 प्रतियोगिता के आयोजक चाहते हैं कि विकल्पहीन गेंदबाज ज्यादातर 'हलुआ' गेंद फेंके जिससे बल्लेबाज अधिक से अधिक चौके-छक्के मार सके। जितने बड़े हिट्स लगेंगे देखने वालों का जुनून उतना ही बढ़ेगा। इस जुनून को कैश करने के लिए खेल के नियम बल्लेबाजों को हक में बनाये जा रहे हैं। जानबूझ कर बाउंड्री छोटी से छोटी की जा रही है। जो शॉट्स पहले कैच होते वे अब छक्के बन रहे हैं। किसी भी गेंदबाज के लिए यह निराशाजनक स्थिति है।
बाउंड्री लगातार छोटी क्यों ?
दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहले टी-20 में शानदार गेंदबाजी करने वाले दीपक चाहर ने मैच के बाद कहा था, पता नहीं ये क्या हो रहा है ? बाउंड्री दिनोंदिन छोटी होती जा रही है। जहां-जहां मैच खेल रहे हैं वहां देख रहे हैं। जैसे ही डग आउट से मैदान में कदम रखते हैं, देखते हैं, अरे ये क्या ? मैदान तो बड़ा था, ये छोटा कैसे हो गया? मोहाली का ग्राउंड कितना बड़ा था। लेकिन अब वहां बाउंड़्री लाइन 10 मीटर अंदर कर दी गयी है। दीपक की बात में दम है। ये इसलिए किया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक चौके छक्के लग सकें। टी-20 में तेज गेंदबाज पर दबाव रहता है कि वह पहले पावर प्ले में विकेट ले। वर्ना कुछ ओवर बाद गेंद स्विंग नहीं करेगी। सफेद गेंद के साथ यह चुनौती है। दूसरी तरफ बल्लेबाजों ने अपनी टाइमिंग पर इतनी मेहनत कर रखी होती है कि वे अच्छी गेंद भी पर धड़ाधड़ रन बनाने लगते हैं। पिच भी अधिकतर बल्लेबाजों के अनुकूल होती है। भारत में तेज गेंदबाजों को तिरुअनंतपुरम जैसी पिच भाग्य-संयोग से ही मिलती है।
अब किसी गेंदबाज की खैर नहीं
मौजूदा समय में रचनात्मक बल्लेबाजी की धूम मची हुई। सूर्य कुमार यादव के हैरतअंगेज इम्प्रोवाइज शॉट्स ने टी-20 के स्वरूप को बदल कर रख दिया है। विश्वकप की सभी प्रतिभागी टीमों के पास ऐसे कई बल्लेबाज हैं जो किसी भी गेंदबाज के धुर्रे उड़ा सकते हैं। हाल ही में पाकिस्तान- इंग्लैंड टी-20 श्रृंखला खत्म हुई है। इसमें पाकिस्तानी गेंदबाजों की ऐसी ठुकाई-पिटाई हुई कि पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है। नसीम शाह, शाहनवाज दहानी, मोहम्मद हसनैन की गेंदों पर जम कर रन बरसे। इंग्लैंड के बल्लेबाज डेथ ओवरों में इनकी गेंद को हलुआ बना कर खाते रहे। तीसरे वनडे में शाहनवाज दहानी ने चार ओवरों में 62 रन दे डाले। दूसरे वनडे में मोहम्मद हसनैन ने चार ओवर में 51 रन दिये थे। जिस हारिस रऊफ पर पाकिस्तान नाज करता है उन्होंने ने भी पांचवे वनडे में चार ओवर में 41 रन खर्च किये थे।
तेज गेंदबाज ‘बेचारा’ बन गये
कैगिसो रबादा विश्वस्तरीय तेज गेंदबाज हैं। उनके पास गति है और कौशल भी। उनके नाम का खौफ है। फिर भी दिनेश कार्तिक ने दूसरे टी-20 मैच में उनके आखिरी ओवर में एक चौका और दो छक्के ठोक दिये। इसी मैच में दक्षिण अफ्रीका के एक अन्य तेज गेंदबाज वेन पर्नेल के 17वें ओवर में भारत ने 23 रन बनाये थे। यानी अब किसी भी गेंदबाज की कुटाई संभव है। जब 1970-80 के दशक में बाउंसर की संख्या (टेस्ट) पर कोई सीमा नहीं थी तब बल्लेबाज जेनुइन तेज गेंदबाजों से थरथर कांपते थे। उस समय तेज गेंदबाजों का जलवा हुआ करता था। लेकिन टी-20 में उनके इस हथियार को भोथरा कर दिया है। एक ओवर में एक से अधिक बाउंसर फेंकने की इजाजत नहीं। इतना ही नहीं यदि गेंद बिना टप्पा खाये सीधे कमर से ऊपर गयी तो नोबॉल। एक रन भी दीजिए और ऊपर से फ्रीहिट भी। अब तेज गेंदबाज करे तो क्या करे ? उसके पास घिसेपिटे विकल्प ही बचे हैं। स्लोअर, स्लोअर बाउंसर, वाइड बाउंसर और यॉर्कर। आज के दौर में इन गेंदों से कुछ नहीं होने वाला क्यों कि बल्लेबाज पहले से इन गेंदों पर भरपूर मेहनत किये हुए रहते हैं। आज अगर एक ओवर में तीन बाउंसर की इजाजत मिल जाए तो डेथ ओवरों का परिदृश्य ही बदल जाएगा।