क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

खुशफहमी में रही सरकार, कोरोना हुआ खतरे के पार

Google Oneindia News

नई दिल्ली, अप्रैल, 26। दुनिया में कोरोना की सबसे भयावह स्थिति अभी भारत में है। मार्च 2021 में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था कि भारत में कोविड-19 महामारी खात्मे की ओर बढ़ रही है। लेकिन एक महीने में ही ऐसी क्या बात हो गयी कि करोना महाकाल बन कर देश पर टूट पड़ा? 13 फरवरी 2021 को एक दिन में करीब 9 हजार ही नये कोरोना मरीज पाये गये थे। फरवरी में तीसरी बार रोजाना संक्रमितों की संख्या दस हजार से नीचे गिरी थी। मौत का आंकड़ा सौ से नीचे पहुंच गया था। लेकिन मार्च महीने में होली के बाद कोरोना का ऐसा विस्फोट हुआ कि अब एक दिन में संक्रमण की संख्या साढ़े तीन लाख से ऊपर पहुंच गयी है। मौत का रोजाना आंकड़ा भी दो हजार आठ सौ के पार चला गया है। इतनी भयावह स्थिति क्यों हुई ? क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अतिआत्मविश्वास की कीमत चुकानी पड़ी ? क्या अफसरों ने जमीनी हकीकत नहीं बतायी जिससे गफलत में डूबी सरकार कोरोना खत्म होने का जश्न मनाने लगी ? क्या केन्द्र सरकार को कोरोना की वास्तविक स्थिति का अंदाजा नहीं था कि वह चार पांच महीने पहले दूसरे देशों को वैक्सीन बांट विदेशनीति चमका रही थी ? या फिर राजनीति गुणा-भाग के खेल में कोरोना नियंत्रण की बागडोर हाथ से फिसल गयी ?

Reason Behind the Corona Blast in India: Government is in a happy state, Corona is beyond danger


खुद की तारीफ में जुटी रही सरकार

7 मार्च 2021 को स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने चिकित्सक संघ के एक कार्यक्रम में कहा था, “भारत में कोविड-19 महामारी अब खात्मे की ओर बढ़ रही है। दूसरे देशों के मुकाबले हमने कोविड-19 के टीकों की आपूर्ति बहुत तेजी से की है। देश भर में अब तक दो करोड़ से अधिक टीके लगाये जा चुके हैं।” इस बात को एक बड़ी खुशखबरी की तरह प्रसारित किया गया था। सरकार खुद अपनी तारीफ में जुटी रही। एक अमेरिकी वैज्ञानिक का हवाला देकर यह भी दावा किया गया कि भारत में निर्मित टीके ने दुनिया को महामारी से बचाया। दवा के क्षेत्र में ज्ञान और व्यापक अनुभव के आधार पर भारत को 'फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड’ कहा गया। लेकिन मार्च खत्म होते ही कोरोना ने एकबएक विकराल रूप धारण कर लिया।

खुशफहमी से बढ़ गया खतरा !

सितम्बर 2020 के दौरान कोरोना संक्रमण की दर देश में सबसे अधिक थी। लेकिन इसके बाद संक्रमण का ग्राफ लगातार नीचे गिरने लगा। देश में जांच की संख्या बढ़ी तो मरीजों की समय पर पहचान हुई। इससे संक्रमितों को आइसोलेट पर उनका इलाज संभव हुआ। अक्टूबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच सरकार के पास समय था कि वह वह कोरोना स्थिति की समीक्षा कर भविष्य के लिए बचाव का उपाय पर गौर करती। लेकिन अफसरों की बात पर केन्द्र सरकार ने भी मान लिया अब कोरोना का खतरा कम हो गया है। सरकार भी खुशफहमी में आ गयी कि उसने बड़ा तीर मार लिया है। लेकिन जरूरत इस बात की थी कि कोरोना से तबाह ब्रिटेन, अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों से सबक लेकर रक्षात्मक उपायों को मजबूत करते। अगर उसी समय ऑक्सीजन और अस्पतालों की आपातकालीन जरूरतों को समझ लिया गया होता तो आज हजारों लोगों की जान बच सकती थी। अप्रैल 2020 में रूस ने 20 दिनों में ही 10 हजार बेड का अस्पताल खड़ा कर दिया था। इसमें से पांच हजार बेड वेंटिलेटर की सुविधा से लैस थे। चीन ने एक सप्ताह में एक हजार बेड का अस्पताल खड़ा कर दिया था जहां आक्सीजन और जरूरी दवाओं का पूरा इंतजाम था। लेकिन हमारी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रही। उसे तो शायद यही लग रहा था कि अब कोरोना फिर लौटेगा नहीं। जब दुनिया के कई देशों में कोरोना की दूसरी लहर आ चुकी थी। आज आक्सीजन और रेमडेसिविर दवा के लिए पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है।

क्या चुनाव के चलते सरकार ने नहीं लगाया लॉकडाउन ?

पिछले साल कोरोना की पहली लहर से ठीक पहले केन्द्र सरकार ने 24 मार्च 2020 को लॉकडाउन लगा दिया था। तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगे बढ़ कर खुद कठिन फैसला लिया था। बिना किसी राजनीतिक परिणाम को सोचे। लेकिन इस साल जब कोरोना की दूसरी और खरतनाक लहर आयी तो लॉकडाउन का फैसला राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया। केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग ने लोगों की हिफाजत से जरूरी चुनाव को समझा। मद्रास हाईकोर्ट ने तो कोरोना की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है। चुनावी रैलियों में भीड़ जुटती रही। सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ती रहीं। लेकिन चुनाव आयोग ने इस पर पाबंदी नहीं लगायी। कोरोना गाइड लाइंस के अनुपालन की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की थी। लेकिन वह इसमें नाकाम रहा। अगर केन्द्र सरकार लॉकडाउन लगाती तो पांच राज्यों में चुनाव संभव नहीं होता। भाजपा की पश्चिम बंगाल और असम से जुड़ी उम्मीदें पूरी नहीं होतीं। इसलिए बड़ी सफाई से लॉकडाउन का फैसला राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया ताकि कोई उस पर सख्ती का आरोप न लगा सके। कोरोना की भयंकर लहर के बीच चुनाव कराने से भी स्थिति खराब हुई है।

विपदा के समय राजनीति क्यों ?

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राजनीतिक कौशल का चाहे जिस रूप में भी आंकलन किया जाता रहा हो लेकिन उनकी विद्वता और प्रबंधन क्षमता निर्विवाद है। उन्होंने हफ्ताभर पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक पत्र लिख कर कोरोना नियंत्रण के कुछ प्रमुख सुझाव दिये हैं। उनका कहना है कि टीकाकरण का आंकलन देश की कुल आबादी के आधार पर किया जाना चाहिए ताकि इसकी वास्तविक जरूरत का अंदाजा मिलता रहे। कितने लोगों को टीका लगा, यह देखना उतना जरूरी नहीं। मनमोहन सिंह ने टीकाकरण की गति को बढ़ाने का सुझाव दिया था। यह राजनीति से परे विषय था। लेकिन अफसोस की बात ये रही कि इस पत्र पर वाद-विवाद शुरू हो गया । केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कोरोना की दूसरी लहर के लिए कांग्रेस शासित राज्यों को जिम्मेदार ठहरा दिया। उन्होंने मनमोहन सिंह को जवाबी चिट्ठी लिख कर कहा कि कांग्रेस के नेताओं ने टीके पर संदेह जता कर लोगों को भ्रमित किया। कांग्रेस के कई नेताओं ने तो इसे भाजपा का टीका कह कर दुष्प्रचारित किया। लेकिन ये राजनीति का वक्त नहीं है। राष्ट्रीय विपदा की इस घड़ी में सबसे बड़ी जरूरत लोगों की हिफाजत है। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए अगर कठोर पाबंदिया जरूरी हैं तो उसे बिना देर किये लागू किया जाना चाहिए।

<strong> अगर त्रिशंकु विधानसभा हुई तो क्या मिथुन चक्रवर्ती होंगे भाजपा की अल्पमत सरकार के सीएम?</strong> अगर त्रिशंकु विधानसभा हुई तो क्या मिथुन चक्रवर्ती होंगे भाजपा की अल्पमत सरकार के सीएम?

Comments
English summary
Reason Behind the Corona Blast in India: Government is in a happy state, Corona is beyond danger.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X