गुजरात में टूटा 2014 के मतदान का रिकॉर्ड, बढ़ी हुई वोटिंग पर कांग्रेस-भाजपा ने दिया अपने-अपने को क्रेडिट
Lok sabha elections 2019 News, राजकोट। लोकसभा चुनाव 2019 के लिए गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर 63.67% वोटिंग हुई। मतदान का यह प्रतिशत पिछले चुनावों से ज्यादा रहा। इतनी वोटिंग न तो इंदिरा के समय में हुई, न राम लहर और न ही 2014 की मोदी लहर में हुई। अब सूबे के सियासी जानकारों के मन में ये सवाल उठ रहे हैं कि भला इस बार ऐसी वोटिंग कैसे हुई? जबकि, राज्य के ज्यादातर हिस्सों में गर्मी का प्रकोप ज्यादा था एवं कुछ गांवों में मतदान बहिष्कार भी हुआ। कुल 4.51 करोड़ निर्वाचकों में से 63.67% का मतदान में हिस्सा लेना भले ही कुछ राज्यों के औसत से कम हो, लेकिन गुजरात में यह काफी माना जा रहा है।
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नहीं टूटा 1967 का रिकॉर्ड
बता दें कि, गुजरात में शुरू से 2014 के चुनावों तक 1967 के ही चुनाव ऐसे थे, जब 63.77% मतदान हुआ। मतदान का यह स्तर अब तक के लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा है। वैसे, सबसे कम वोटिंग वाले चुनाव की बात करें तो वर्ष 1996 में यहां सबसे कम 35.92% मतदान हुआ था। जबकि, 1996 के लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 577 उम्मीदवार खड़े हुए थे।
..तो कैसे हो गई इतनी ज्यादा वोटिंग?
63.67% प्रतिशत मतदान को लेकर लोग तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं। कुछ सोच रहे हैं कि क्या राहुल के 'चौकीदार चोर है' जैसे नारों की वजह से लोग ज्यादा मतदान करने के लिए आगे आए? या फिर हार्दिक पटेल की ताबड़तोड़ रैलियों की वजह से कुछ असर पड़ा? अथवा प्रधानमंत्री की राष्ट्रवाद और पाकिस्तान की बातों ने लोगों मे जोश भरने का काम किया? इसे लेकर कांग्रेसी-भाजपाई समर्थक अपने-अपने तर्क दे रहे हैं।
भाजपा और कांग्रेस ने दिए अपने-अपने तर्क
गुजरात
में
बढ़ी
हुई
वोटिंग
पर
कांग्रेसियों
का
कहना
है
कि
यहां
भाजपा
को
लेकर
नाराजगी
थी,
जो
वोट
में
तब्दील
हो
गई।
वहीं,
भाजपा
का
कहना
है
कि
आखिरी
दिनों
में
यहां
हुई
मोदी
की
रैलियों
ने
पूरा
माहौल
ही
बदल
दिया।
एयरस्ट्राइक
से
पाकिस्तान
में
घुसकर
आतंकियों
का
सफाया
करना
भी
बड़ी
वजह
रही।
जिससे
लोगों
ने
भाजपा
के
समर्थन
में
वोट
डालना
जरूरी
माना।'
वैसे,
सीटों
की
बात
करें
तो
अमरेली,
जूनागढ़,
सुरेंद्रनगर,
आणंद
एवं
बनासकांठा
सीट
पर
हुए
मतदान
ने
इस
बार
चौंकाया
है,
ये
वो
सीटें
हैं
जहां
कांग्रेस
अपनी
जीतने
की
ज्यादा
संभावनाएं
देख
रही
थी।
19 सीटों पर 2014 जैसा या उससे अधिक मतदान हुआ
वहीं, आणंद, अमरेली, जूनागढ़ में मतों के प्रतिशत के बारे में कई भाजपाई ये मान रहे हैं, कि ये सीटें भाजपा के खाते में जाएंगी। इनके अलावा जो सीटें भाजपा का गढ़ रहीं, वे हैं गांधीनगर, वडोदरा, सूरत, जामनगर, राजकोट और अहमदाबाद। इन सीटों पर 2014 जैसा मतदान हुआ है। गुजरात में कुल 19 सीटें ऐसी हैं, जहां 2014 जैसा या उससे अधिक मतदान हुआ है। जिसके चलते ये सीटें फिर भाजपा के पास जाती दिखाई दे रही हैं। गांव की बात करें तो विशेषकर आदिवासी क्षेत्र में अधिक मतदान भाजपा के लिए खतरे की घंटी भी बन सकता है।
मोदी के लिए अंडरकरंट या सरकार के प्रति नाराजगी?
आमतौर पर, जब किसी बात को लेकर जबर्दस्त माहौल या फिर किसी पक्ष के खिलाफ भयानक गुस्सा हो तब इस प्रकार की वोटिंग होती है। ऐसे में गुजरात में मोदी को लेकर कोई अंडरकरंट थी या नाराजगी? इस पर भी लोग विचार कर रहे हैं। क्योंकि मतों के प्रतिशत में सबसे बड़ा उछाल तो ग्रामीण सीटों पर आया है। गांवों में कांग्रेस विधानसभा चुनावों के दौरान बेहतर स्थिति में रही थी। अब यहां कांग्रेस हावी रहेगी या भाजपा फिर जीतेगी, इसका सही जवाब तो 23 मई को ही मिल पाएगा।