कभी बेटियों की कब्रगाह कहे जाने वाले Barmer की बेटी ने रचा इतिहास, सबसे बड़े अस्पताल में डॉक्टर बनीं निर्मल
Doctor Nirmal Chauhan, बाड़मेर। कभी बेटियों की कब्रगाह कहा जाने वाला राजस्थान (Rajasthan) का बाड़मेर (Barmer) जिला आज अपनी एक अलग और नई पचान बना रहा है। बाड़मेल जिले (Barmer) की बेटियां अब खुदा का ही नहीं, बल्कि अपने हौसलों के पंखों को परवान देकर जिले का नाम भी रोशन कर रही है। जी हां, आज हम आपको ऐसी ही एक बेटी के बारे में बताने जा रहे है जिसके चर्चा बाड़मेर के गांव, देहात से लेकर चौपाल तक हैं।
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निर्मल चौहान ने फहराया खुद के नाम की पताका
आज हम बात कर रहे हैं सरहदी बाड़मेर (Barmer) की निर्मल चौहान (Nirmal Chauhan) की। निर्मल चौहान ने न केवल अपने समाज में बल्कि अपने जिले में खुद के नाम की पताका फहरा दी है। निर्मल चौहान ने बाड़मेर में जटिया समाज की न केवल पहली डॉक्टर बनने का गौरव हासिल किया है, बल्कि बाड़मेर जिले की पहली बेटी भी बनी है जिसकी एमबीबीएस की पढ़ाई जोधपुर एम्स (AIIMS Jodhpur) से पूरी की है। एमबीबीएस पूरी करने के बाद जब अपने ही गृह नगर बाड़मेर के सबसे बड़े अस्पताल में बतौर चिकित्सक पदभार संभाला तो हर कोई निर्मला को बधाई देता नजर आया।
बाड़मेर से बनी जटिया समाज की पहली डॉक्टर
बता दें, निर्मल चौहान (Nirmal Chauhan) बाड़मेर जिले के जटिया समाज की पहली डॉक्टर है। साथ ही निर्मला ने जोधपुर एम्स से एमबीबीएस करने वाली पहली बेटी बनने की उपलब्धि भी अपने नाम दर्ज करवाई है। जटिया समाज के लोगों ने निर्मल की इस शानदार उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए उनके परिजनों का स्वागत किया। वहीं, डॉक्टर निर्मल चौहान (Dr Nirmal Chauhan) ने मीडिया कर्मियों से बातचीत में बताया कि वो कभी टॉप पर नहीं रही, कभी एग्जाम में उनके अच्छे नंबर नहीं आये। कहा कि मैं हमेश इंप्रूव करती रही अपने एग्जों में नंबरों को।
2014 में ज्वाइन किया था एम्स जोधपुर
निर्मल चौहान ने बताया कि मैंने साल 2014 में एम्स जोधपुर ज्वाइन किया था। तब से मैं एक मात्र लड़की हूं, बाड़मेर की जिसनें एम्स जोधपुर से एमबीबीएस किया है। बताया कि मैं सोचा था कि मुझे अपनी सिटी में अपनी सेवाएं देनी है, डॉक्टर के रुप में। आज में खुश हूं कि मैंने अपने जिले में बतौर डॉक्टर के रूप में ज्वाइन किया है। बता दें कि एमबीबीएस में चयनित हुई निर्मल ने अपनी एमबीबीएस डिग्री जोधपुर एम्स में पूर्ण कर अपने ही जिले के सबसे बड़े अस्पताल राजकीय चिकित्सालय बाड़मेर में बतौर डॉक्टर पदभार ग्रहण किया।
निर्मल चौहान के पिता है सरकारी अध्यापक
निर्मल के पिता भोमाराम चौहान एक सरकारी अध्यापक है। उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे रखकर समाज का मान बढ़ाया। उनका कहना है कि समाज के लोगों को इनसे प्रेरणा लेकर शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में आगे आना चाहिए, तभी समाज का विकास होगा। डॉक्टर निर्मल ने पद संभालने के बाद बताया कि पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक तो में लॉकल स्कूल में गई थी। 9वीं से 12वीं तक में मयूर स्कूल में गई थी। वहां पर भी में नॉर्मल छात्रा थी, कभी टॉप पर नहीं रही। कभी एग्जाम में अच्छे नंबर नहीं आये। बस यह था कि मैं हमेश इंप्रूव करती रही अपने नंबरों को।
अध्यापक बनाना चाहती थी निर्मला
निर्मला चौहान ने बताया कि मैंने टीचर बनने की सोची थी, लेकिन मुझे मैरे बड़े भाई ने गाइड किया कि तुम डॉक्टरों बनों। जो बच्चे एमबीबीएस करते है तुम उन्हें पढ़ा भी सकती हो और डॉक्टर भी बन सकती हो। इसके बाद में यह फील्ड चूस किया। फिर मैं कोट गई और पढ़ाई की। जिसके बाद मेरा जोधपुर एम्स में सलेक्शन हो गया था। वह बताती हैं कि केवल पढ़ाई को ही अपना लक्ष्य बना रखा था साथ ही लक्ष्य पाने के लिए मेहनत जरूरी है। अगर आप मेहनत करते हो तो लक्ष्य आप से दूर नहीं। सरहदी बाड़मेर की डॉक्टर निर्मल चौहान के पहली महिला चिकित्सक बनने पर न केवल जटिया समाज में बल्कि पूरे बाड़मेर में उसकी सफलता की लोग मिसाल दे रहे हैं।