93 वर्षीय घासीराम वर्मा हर साल बालिका शिक्षा पर खर्च देते हैं पेंशन के ₹ 50 लाख, अब तक बांटे 10 करोड़
झुंझुनूं। ये हैं डॉ. घासीराम वर्मा। जाने-माने गणितज्ञ। 93 साल के हो चुके हैं, मगर इस उम्र में भी उत्साह और ऊर्जा से भरपूर एक युवा जैसा जीवन जी रहे हैं। राजस्थान के झुंझुनूं जिले के गांव सीगड़ी के रहने वाले हैं। शेखावाटी में इन्हें हर कोई करोड़पति फकीर के नाम से जानता है। हर साल अपनी पेंशन में से 50 लाख रुपए बालिका शिक्षा पर खर्च करते हैं। अब तक 10 करोड़ खर्च कर चुके हैं।
स्वामी गोपालदास पुरस्कार डॉ घासीराम वर्मा को
अस्थायी रूप से अमेरिका में बस चुके शिक्षाविद डॉ. घासीराम वर्मा का जिक्र आज हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि इन्हें वर्ष 2021 के स्वामी गोपालदास पुरस्कार के लिए चुना गया है। यह पुरस्कार चूरू की सर्वहितकारिणी सभा, पुत्री पाठशाला, कबीर पाठशाला जैसी संस्थाओं के संस्थापक व आजादी के आंदोलन के प्रहरी व समाजसेवी स्वामी गोपालदास की स्मृति में दिया जाता है।
पुरस्कार के लिए इन्होंने किया चयन
चयन समिति संयोजक दलीप सरावग ने बताया कि चयन समिति में वरिष्ठ समाजसेवी हनुमान कोठारी, शिक्षाविद प्रो. हनुमाना राम ईसराण, उम्मेद गोठवाल, भंवरलाल कस्वा सिरसली व साहित्यकार दुलाराम सहारण ने वर्ष 2021 के स्वामी गोपालदास पुरस्कार के लिए शिक्षा व सामाजिक उत्थान के लिए काम कर रहे गणितज्ञ डॉ. घासीराम वर्मा का चयन किया है।
जानिए कौन हैं डॉ. घासीराम वर्मा?
बता दें कि 1 अगस्त 1927 को राजस्थान के झुंझुनूं जिले के नवलगढ़ के पास गांव सीगड़ी में चौधरी लादूराम तेतरवाल व जीवणीदेवी के घर डॉ. घासीराम वर्मा का जन्म हुआ। इंटर पास करते ही घरवालों ने आखातीज के अबूझ सावे पर गांव नयासर के गंगारामजी की बेटी रूकमणि से इनकी शादी कर दी। इनके तीन बेटे ओम, सुभाष और आनंद हैं।
घासीराम वर्मा की शिक्षा व जीवन संघर्ष
गांव सीगड़ी में स्कूल नहीं होने के कारण घासीराम वर्मा ने 5 किलोमीटर दूर पड़ोस के गांव वाहिदपुरा के निजी स्कूल से शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। आगे की पढ़ाई पिलानी से पूरी की। वहां छात्रावास में रहा करते थे। दसवीं की परीक्षा के बाद छुटि्टयों में घासीराम गांव नहीं जाते और छात्रावास में ही रहकर चार-पांच बच्चों को टयूशन करवाया करते थे। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीए और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एमए किया।
डॉ. घासीराम को अमेरिका से बुलावा
उच्च हासिल करने के बाद जून 1958 में घासीराम के पास अमेरिका से बुलाया। पत्नी रुकमणि के साथ घासीराम वर्मा अमेरिका पहुंचे। अमेरिका में रोडे आयलैंड यूनिवर्सिटी को गणित के प्रोफेसर के रूप में सेवाएं दी। तब अमेरिका के विश्वविद्यालय में गणित पढ़ाने वाले घासीराम वर्मा पहले भारतीय थे। उस समय इन्हें 400 डॉलर तनख्वाह मिला करती थी।
केवल शिक्षा के लिए देते हैं सहयोग
मीडिया से बातचीत में डॉ. घासीराम वर्मा बताते हैं कि बीस साल पहले वे रिटायर हो गए। हर साल पेंशन व नियमित निवेश से करीब 68 लाख रुपए मिलते हैं। इनसे से पचास लाख रुपए भारत आकर हर साल बालिका शिक्षा पर खर्च कर देते हैं। खास बात है कि घासीराम वर्मा किसी को व्यक्तिगत कोई मदद नहीं करते हैं। सिर्फ बालिका शिक्षा के लिए राशि खर्च करते हैं।