कृषि कानून वापसी के ऐलान के बाद पंजाब में बदल रहे हैं सियासी समीकरण, राजनीतिक दलों की बढ़ी मुश्किलें
कृषि कानून रद्द होने के ऐलान के बाद पंजाब में सियासी समीकरण बदलने लगे हैं। एक ओर भारतीय जनता पार्टी कृषि कानून रद्द करने को लेकर सियासी माइलेज लेने में जुटी हुई है।
चंडीगढ़,
1
दिसम्बर
2021।
कृषि
कानून
रद्द
होने
के
ऐलान
के
बाद
पंजाब
में
सियासी
समीकरण
बदलने
लगे
हैं।
एक
ओर
भारतीय
जनता
पार्टी
कृषि
कानून
रद्द
करने
को
लेकर
सियासी
माइलेज
लेने
में
जुटी
हुई
है।
वहीं
दूसरी
ओर
किसान
आंदोलन
को
खत्म
करने
पर
संयुक्त
किसान
मोर्चार
मंथन
कर
रही
है।
इसके
अलावा
कुछ
किसान
नेता
विधानसभा
चुनाव
में
उतरने
के
लिए
मोर्चा
बनाने
की
तैयारी
कर
रहे
हैं।
इससे
पहले
किसान
नेता
गुरनाम
सिंह
चढूनी
अपनी
सियासी
पार्टी
बनाकर
चुनावी
रण
में
उतरने
की
बात
कर
रहे
हैं।
वहीं
सूत्रों
के
हवाले
से
खबर
आ
रही
है
कि
जम्हूरी
किसान
सभा
के
नेता
कुलवंत
सिंह
संधू
भी
पंजाब
विधानसभा
चुनाव
में
स्वतंत्र
रूप
से
मोर्चा
बनाते
हुए
किसानों
को
चुनाव
के
मौदान
में
उतारने
की
तैयारी
कर
रहे
हैं।
चुनाव लड़ने कर चुके हैं ऐलान
गुरनाम सिंह चढूनी के बाद किसान नेता कुलवंत सिंह संधू चुनावी रण में दांव लगाने के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो बिना किसी सियासी दलों के साथ गठबंधन करते हुए भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए किसान नेता चुनाव लड़ेंगे। जब भी किसान नेताओं के चुनाव लड़ने की बात आती थी तो संयुक्त किसान मोर्चा इस बात को सिरे से खारिज करते हुए किनार कर लेता था। लेकिन एक बार किसानों के चुनाव लड़ने की चर्चा ज़ोरों पर है। पंजाब के 32 किसान संगठनों में कुछ ऐसे किसान संगठन भी है जिनका राजनीतिक दलों से सम्बंध है।
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चुनावी रण में उतर सकते हैं किसान
पंजाब के 32 किसान संगठनों में से सीपीएम का भी एक संगठन किसान सभा है जो कृषि कानूनों के खिलाफ केंद्र सरकार के खिलाफ़ मोर्चा खोला था। पंजाब के कई किसान नेताओं को पंजाब के सियासी दलों से चुनाव लड़ने का आफ़र मिल चुका है। कयास लगाए जा रहे हैं कि कुछ बड़े किसान नेता सियासी दल के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में ताल ठोक सकते हैं। ग़ौरतलब है कि आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने पंजाब में राजनीतिक दलों को सभा या प्रचार करने पर कुछ वक़्त पहल रोक लगा दी थी। लेकिन कृषि कानून वापस लेने के फ़ैसले के बाद अब सियासी समीकरण बदलते हुए नज़र आ रहे हैं। अब किसान नेताओं के भी चुनाव लड़ने की खबर सामने आने लगी है।
सियासी दलों के बदल जाएंगे समीकरण
पंजाब में अगर किसान संगठनों ने अपनी पार्टी बना कर विधानसभा चुनाव में ऐन्ट्री मारी तो फिर सभी सियासी दलों की बनी बनाई रणनीति पर पानी फिर जाएगा और पंजाब में कोई भी दल बहुमत हासिल नहीं कर पाएगा। क्योंकि सभी सियासी पार्टियां कहीं न कहीं कृषि कानून को मुद्दा बनाते हुए अपनी सियासत चमकाने में जुटे हुए थे। किसानों का मुद्दा ऐसा था कि इनके साथ सभी समुदाय के लोगों का सॉफ्ट कॉर्नर था। अब अगर किसान ही सियासी मैदान में ताल ठोकने के लिए उतरेंगे तो ज़ाहिर सी बात है अन्य सियासी दलों के वोट बैंक पर इसका खासा असर पड़ेगा। लेकिन कृषि कानूनों को रद्द करने के फ़ैसले को भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से भुनाने की कोशिश कर रही है। इसके लिए भाजपा ने बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को ज़िम्मेदारी दे दी है। अब देखना यह होगा कि पंजाब कौन सी पार्टी सत्ता पर क़ाबिज़ होने के लिए किस तरह का दांव खेलती है।
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