शिवसेना में उठी BJP के संग जाने की मांग, क्यों NCP को हो सकता है सबसे ज्यादा नुकसान,जानिए
मुंबई, 20 जून: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अगुवाई में चल रही 19 महीने पुरानी महा विकास अघाड़ी सरकार अबतक की सबसे मुश्किल राजनीतिक मतभेदों से गुजर रही है। शुरू में कांग्रेस के नेता उलटे सुर में बोल रहे थे, अब शिवसेना भी पलटवार के मूड में आ चुकी है। पहले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तल्ख तेवर दिखाने शुरू किए तो अब पार्टी के हाई-प्रोफाइल विधायक प्रताप सरनाईक ने फिर से भाजपा के साथ हाथ मिलाने की वकालत कर दी है। कुल मिलाकर एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और उनके भतीजे और राज्य के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार चाहे जितने दावे करें, सरकार की नैया फिलहाल डगमगाती हुई दिख रही है। ऐसे में अगर सरनाईक की तरह शिवसेना के और नेताओं ने भी आवाज बुलंद की तो एनसीपी को सबसे ज्यादा नुकसान होने की आशंका रहेगी।
कांग्रेस के स्टैंड पर शिवसेना क्या कह रही है ?
कांग्रेस के स्टैंड पर शिवसेना नेता संजय राउत ने जहां आग बुझाने की कोशिश की थी, लेकिन खुद उद्धव ठाकरे और अब प्रताप सरनाईक का रवैया उतना नरम नहीं है। पार्टी के 55वें स्थापना दिवस पर सुप्रीमो उद्धव ने इशारों में ही सही, कांग्रेस पर जमकर भड़ास निकाली है। उन्होंने कोरोना महामारी और उसके बाद लॉकडाउन की वजह से पैदा हुए हालातों का जिक्र करते हुए दलील दी है कि लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट है। हालात बेहद खराब हैं। ऐसे में कोई अकेले चुनाव लड़ने की बात करेगा तो जनता उसे 'जूतों से मारेगी।' जाहिर है कि उनका निशाना सीधे शिवसेना की सरकार में सहयोगी कांग्रेस पर है, जो अगला स्थानीय और विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की बात कह रही है। उद्धव का मूड भांपकर पार्टी के विधायक प्रताप सरनाईक ने उन्हें चिट्ठी लिखकर कहा है कि कांग्रेस-एनसीपी के नेता शिवसेना को तोड़ने की कवायद में लगे हैं। उन्होंने सीएम से कहा है कि फिर से बीजेपी के साथ हाथ मिला लेने में ही भलाई है।
Recommended Video
कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने की बात क्यों कह रही है ?
महाराष्ट्र में कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव अकेले लड़ना अभी दूर की कौड़ी है। असल में उसकी नजर फिलहाल अगले साल होने वाले बीएमसी चुनाव पर अटकी है। 227 कॉर्पोरेटरों वाली बीएमसी में कांग्रेस 2017 के चुनाव में 30 सीटें लेकर मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका में थी। जबकि, शिवसेना के 84 और भाजपा के 82 सदस्य जीते थे। बाद में शिवसेना ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के 7 और 3 निर्दलीयों को मिलाकर अपना आंकड़ा 94 तक पहुंचा लिया था। अब कांग्रेस को लगता है कि अगर वह अकेले चुनाव लड़ेगी तो वो देश के कई छोटे राज्यों से ज्यादा बजट वाली सबसे अमीर निकाय पर अपना दबदबा बना सकती है। क्योंकि, कोरोना के बाद होने वाले चुनाव में बीएमसी के मौजूदा सत्ताधारियों के सामने वोटरों की नाराजगी झेलने की बड़ी चुनौती रहेगी। वहीं, शिवसेना के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने पर कांग्रेस को अपना आधार वोट बैंक (मुस्लिम) के भी खिसकने की आशंका लग रही है। यानि, कांग्रेस की नजर एंटी-हिंदुत्व वोट बैंक पर टिकी हुई है, जो राष्ट्रीय स्तर पर भी उसकी राजनीति को सूट करती है। अगर महाराष्ट्र में सरकार में साथ रहकर भी बीएमसी चुनाव अलग-अलग लड़ी तो विधानसभा चुनाव में भी उसके लिए ऐसा करने का रास्ता खुला रह सकता है और पार्टी बड़ी आसानी से कोरोना काल में पैदा हुए एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर से खुद को बचा सकती है।
एनसीपी को सबसे ज्यादा नुकसान क्यों होगा ?
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने जबसे राज्य में अकेले चुनाव लड़ने का शिगूफा छोड़ा है, एनसीपी पार्टी के अदना से लेकर आला नेता उद्धव सरकार का कार्यकाल पूरा होने का दावा कर रहे हैं। पार्टी सुप्रीमो शरद पवार तो 5 नहीं 25 साल तक गठबंधन चलने का दावा कर रहे हैं। राज्य के उपमुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजीत पवार भी उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाले फॉर्मूले पर ही सरकार चलते रहने का दावा कर रहे हैं। इसके पीछे का गणित ये है कि उद्धव सरकार में उनके बाद बाद सबसे ज्याद अहम भूमिका में अजीत पवार ही बने हुए हैं और पार्टी सुप्रीमो शरद पवार सरकार में न रहकर भी 'सुपर सीएम' से कम की भूमिका में नहीं हैं। पिछले 19 महीने में जब भी गठबंधन में दरार पैदा हुई है, पवार साहब की दखल से ही वह खाई पटी है। ऐसे में अगर शिवसेना फिर से बीजेपी के साथ चली जाती है तो कांग्रेस खुद को भाजपा-विरोधी वोट की सबसे प्रबल दावेदार के रूप में पेश करेगी, लेकिन पवार की पार्टी को क्या मिलेगा ? वहीं, बीजेपी और शिवसेना अगर हाथ मिला लेती है तो उसमें पवार टाइप पॉलिटिक्स की भी गुंजाइश नहीं रह जाएगी।
भाजपा को हो सकता है सबसे ज्यादा फायदा
2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जनादेश भाजपा-शिवसेना गठबंधन को ही मिला था। 288 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए बीजेपी के 105 और शिवसेना के 56 विधायक चुनाव जीते थे। यह संख्या आज भी सरकार बनाने के लिए पर्याप्त है। चुनाव जीतने के बावजूद यह गठबंधन इसलिए टूट गया था कि शिवसेना तब उद्धव को सीएम बनाने के लिए अड़ गई थी और इसी शर्त पर पवार और राउत ने महा विकास अघाड़ी का तानाबाना बुना था। जाहिर है कि भाजपा अब भी मुख्यमंत्री पद पर समझौते के लिए तैयार होगी, इसकी संभावना नहीं है। अलबत्ता शिवसेना को कुछ महत्वपूर्ण विभाग का ऑफर जरूर दे सकती है। हाल ही में दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद उद्धव ठाकरे ने बयान दिया था कि अपने देश के प्रधानमंत्री से मिलने गया था, नवाज शरीफ से नहीं। तभी से महाराष्ट्र में कुछ नई तरह की सियासी खिचड़ी पकने की खुशबू महसूस की जाने लगी थी। बाद में संजय राउत ने भी पीएम मोदी को देश और भाजपा का सबसे बड़ा नेता बताकर संबंधों में आई तल्खी को शांत करने की कोशिश की थी।