मोदी सरकार के एक कदम से शरद पवार की एनसीपी के क्यों छूट रहे हैं पसीने ?
मुंबई, 4 जून: पिछले साल सितंबर में मानसून सत्र के दौरान बैंकिंग रेगुलेशन ऐक्ट में बदलाव को संसद की मंजूरी मिली। मोदी सरकार के इस कदम का परिणाम ये हुआ है कि देश के सहकारी बैंक भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की सीधी निगरानी में आ गए हैं। लेकिन, महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी सरकार में शामिल शरद पवार की एनसीपी को नया कानून नागवार गुजर रहा है। वह कानून में इस बदलाव का विरोध कर रही है। अब पवार के निर्देश में राज्य में एक टास्क फोर्स गठन का फैसला हुआ है, जिसकी अगुवाई एनसीपी नेता और राज्य के सहकारी मंत्री बालासाहेब पाटिल करने वाले हैं। पवार की पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार ने सहकारी बैंकों के उन अधिकारों को छीनने की कोशिश की है, जो उनकी पार्टी के सुप्रीमो ने दिलाई है।
बैंकिंग रेगुलेशन ऐक्ट में क्यों किया गया बदलाव ?
भारत में करीब 1,540 शहरी सहकारी बैंक हैं, जिसमें 8.6 करोड़ लोगों का कम से कम 5 लाख करोड़ रुपये जमा है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल लोकसभा में कहा था कि इन शहरी सहकारी बैंकों में से कम से 277 की हालत बहुत ही पतली हैं और लगभग 105 तो ऐसे हैं, जो कि न्यूनतम नियामक पूंजी की आवश्यकता को पूरा कर पाने में भी असमर्थ हैं। वित्त मंत्री ने कहा था कि 47 सहकारी बैंकों की शुद्ध संपत्ति तो निगेटिव में है और 328 से ज्यादा शहरी सहकारी बैंकों के पास कुल नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स 15 फीसी से भी ज्यादा है। आरबीआई ने जो सबसे ताजा फाइनेंशियल स्टैबिलिटी रिपोर्ट जारी किया है उसके मुताबिक शहरी सहकारी बैंकों कि कुल नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स का अनुपात 2020 के मार्च के 9.89 फीसदी से और नीचे गिरकर 2020 के सितंबर में 10.36 फीसदी तक पहुंच गया है।
सहकारी बैंकों की सबसे बड़ी 'पूंजी' क्या रही है ?
सहकारी बैंकों के पास लोन (बैड लोन) के रूप में ऐसी बहुत बड़ी रकम है, जिसके चुकता होने की संभावना दूर-दूर तक नहीं है। इनका कैपिटल बेस भी बहुत छोटा है। ऊपर से इन बैंकों में स्टाफ की नियुक्तियों में राजनेताओं का आशीर्वाद होता है। इन सारी वजहों से इन बैंकों की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित हो रही थी और कानून में बदलाव करके जमाकर्ताओं के पैसों की सुरक्षा और इन बैंकों के कामकाज में जिम्मेदारी तय करने के साथ ही उसमें प्रोफशनलिज्म लाने की कोशिश की गई है।
एनसीपी इसके विरोध में क्या कर रही है ?
बीते बुधवार को एनसीपी नेता शरद पवार ने पार्टी नेताओं के साथ एक बैठक में बैंकिंग रेगुलेशन ऐक्ट में बदलाव के खिलाफ ऐक्शन प्लान तैयार करने लिए टास्क फोर्स बनाने को मंजूरी दी है, जिसके तहत सहकारी बैंकों को आरबीआई की निगरानी के दायरे में लाया गया है। एनसीपी सुप्रीमो की ओर से प्रस्तावित इस टास्क की अगुवाई एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के कोऑपरेटिव मंत्री बालासाहेब पाटिल करने वाले हैं। पार्टी प्रवक्ता नवाब मलिक ने इसके पीछे दलील ये दी है कि केंद्र सरकार बैंकिंग रेगुलेशन ऐक्ट,1949 में बदलाव के जरिए कोऑपरेटिव बैंकिंग सेक्टर को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन एनसीपी इस 'खेल' को रोक देगी।
कानून में बदलाव से क्या हुआ है ?
कोऑपरेटिव बैंक लंबे समय से दो तरह के रेगुलेशन के तहत काम करते रहे हैं- स्टेट रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज और आरबीआई। इसके चलते ये बैंक अपनी नाकामी और गड़बड़ियों के बाद भी छानबीन से बचते रहे हैं। लेकिन, संसद से कानून में बदलाव होने के बाद अब ये बैंक सीधे आरबीआई के निगरानी में आ गए हैं और अब वह अपनी नाकामियों या घोटालों को नहीं छिपा पाएंगे। क्योंकि, संशोधित कानून ने आरबीआई को संबंधित राज्य सरकारों के साथ चर्चा के बाद सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल को खत्म करने की शक्ति दी है। पहले यह सिर्फ मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव बैंकों को ही निर्देश जारी कर सकता था।
कानून में बदलाव से एनसीपी के पसीने क्यों छूट रहे हैं ?
भारत में 1,500 से ज्यादा जितने भी शहरी सहकारी बैंक हैं, उनमें से करीब एक-तिहाई अकेले महाराष्ट्र में हैं। राज्य में 497 शहरी सहकारी बैंक और 31 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक काम कर रहे हैं, जिनमें 2.93 लाख करोड़ रुपये जमा हैं। हकीकत ये है कि इनमें से ज्यादातर बैंकों पर बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के जरिए एनसीपी नेताओं का कब्जा है। नए कानून से अब ये बैंक सीधे आरबीआई की निगरानी में आ गए हैं, जिससे उनकी जवाबदेही बढ़ गई है और अब वो जांच से बच नहीं सकते। यही वजह है कि एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा है कि पवार ने सहकारी बैंकों को बढ़ाने के लिए बहुत काम किया है, लेकिन केंद्र सरकार अब उसके अधिकार छीन रही है।