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मुझे कोविड न्यूमोनिया हुआ फिर भी कोरोना हारा, मेरे अनुभव आपको बचा सकते हैं: नीरज पराशर

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लखनऊ। मैं नीरज पराशर पटना, बिहार का निवासी हूं और वर्तमान में आगा खान फाउंडेशन लखनऊ में काम करता हूं। मैं कोविड न्यूमोनिया से अभी-अभी उबरा हूं। पत्नी, 10 साल के बेटे और 5 साल की बेटी के साथ लखनऊ के दो कमरे के किराए के फ्लैट में रह रहा हूं। मैं और मेरी पत्नी दोनों ही कोरोना संक्रमित हो गए थे और मेरे कफ में खून भी आने लगा था। अपने दो बच्चों के साथ उस फ्लैट में रहते हुए हमें उन दोनों को बीमारी से बचाना भी था। यह सब करना इतना कठिन था कि कुछ चीजें हमने ईश्वर और किस्मत पर छोड़ दीं। लेकिन कोविड से उबरने के दौरान पड़ोसियों, दोस्तों, ऑफिस के साथी, परिजनों, खासकर फल-सब्जी वालों ने जिस तरह से सहयोग और मोरल सपोर्ट दिया, उसने हम दोनों पति-पत्नी के मनोबल को मजबूत बनाए रखा फिर हम कोरोना को हराने में कामयाब रहे। इस दौरान ईश्वर की कृपा रही कि एक फ्लैट में रहते हुए भी मेरे दोनों बच्चों को कोरोना वायरस छू नहीं पाया। कोरोना वायरस से जूझने के बाद हमने बहुत कुछ सीखा जिसको मैं आप सबसे शेयर करना चाहता हूं।

How I fought covid pneumonia, my experience may help you to save life

जांच कराने में बिल्कुल भी देरी न करें
मेरी सबसे बड़ी गलती यह रही कि मुझे जिस दिन (7 अप्रैल) बुखार आया उस दिन मैंने जांच नहीं कराई। लोग जांच कराने से बच रहे हैं जो कि बहुत ही बड़ी लापरवाही है। ऐसा नहीं करना है। मैंने जांच कराने के लिए प्राइवेट लैब को गूगल पर खोजा तो उस समय वहां जांच नहीं हो रही थी। शुरुआत में एक मिथक था कि बुखार आया है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि कोरोना ही हो गया और अगर सरकारी अस्पताल में जांच कराने आओगे तो भीड़ में सच में न कोरोना हो जाए । इस वजह से एक सप्ताह बीत गए। मेरे अंदर कोरोना का इंफेक्शन बढ़ता हुआ फेफड़े तक पहुंच गया। जब मैंने डॉक्टर को दिखाया था तो मुझमे कोरोना के लक्षण नहीं थे इसलिए डॉक्टर ने कोरोना टेस्ट के लिए नहीं कहा था। लेकिन जब मुझे कफ में खून आया तो मैंने दुबारा डॉक्टर की सलाह ली। उन्होंने सीटी स्कैन और कोरोना टेस्ट के लिए कहा। सीटी स्कैन में पहले स्टेज का कोविड न्यूमोनिया निकला। आरटीपीसीआर टेस्ट में कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आई। अगर मैं जांच कराने से नहीं डरता तो मेरी बीमारी नहीं बढ़ती। तो मैं आप सबसे यही कहूंगा कि खांसी-बुखार होने पर तुरंत कोरोना जांच कराएं। जांच में देरी होने से कई लोग इस बार जान गंवा रहे हैं।

भ्रांतियों और अफवाहों से बचें, बिल्कुल न घबराएं
इस बार मेरे एक मित्र कोरोना संक्रमित हुए और हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई। कोरोना बीमारी को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां है जिस वजह से लोग संक्रमित होने के बाद घबरा जा रहे हैं। यह घबराहट और मनोबल गिरने को भी इस बार हो रही मौतों की बड़ी वजह मैं मानता हूं। यह कहना कि कोरोना हुआ तो जान जाने की आशंका ज्यादा है, ठीक नहीं है। मुझे तो कोविड न्यूमोनिया हो गया था लेकिन दवाई लेने के सात दिन बाद मैं ठीक होने लगा। इसी तरह वैक्सीन को लेकर भी भ्रातियां है कि इसको लेने पर लोगों की जान जा रही है। ऐसी भ्रातियों और अफवाहों से बचने की जरूरत है। इससे लोग मानसिक तौर पर कमजोर होते हैं और कोरोना मजबूत होता चला जाता है। कोरोना को हराना है तो मानसिक मजबूती बहुत जरूरी है। संक्रमित होने के बाद भी मैंने अपने मनोबल को कभी कमजोर नहीं होने दिया। लगातार अपने दोस्तों और परिजनों से फोन पर बात करता रहा। सभी मुझे हिम्मत देते रहे। वे कहते रहे कि नीरज तुमको सामाजिक क्षेत्र में बहुत कुछ करना है, तुम जल्दी ठीक हो जाओगे, तुमको कुछ नहीं होगा। उनकी बातों से मेरा मनोबल बना रहा। तो संक्रमित होने के बाद घबराएं भी नहीं और खुद को अकेला न होने दें।

संक्रमित पत्नी परिवार को संभालती रही
दो कमरे के फ्लैट में मैं और मेरी पत्नी दोनों कोरोना संक्रमित, साथ में दो छोटे-छोटे बच्चे। हम दोनों को अपने बच्चे की चिंता हुई। मेरी पत्नी थोड़ी घबराई लेकिन उसने परिवार को संभाले रखा। मेरी हालत ज्यादा खराब थी लेकिन वो काम कर सकने की स्थिति में थी। वह घर के सारे काम करती रही और हम दोनों एक-दूसरे को हौसला देते रहे। पांच साल की छोटी बेटी हम दोनों के साथ ही सोती थी इसलिए उसको दूसरे कमरे में सुलाना बहुत कठिनाई भरा काम था । दस साल का बेटा तो समझ गया कि हमें क्या हुआ है, बेटी को समझाना मुश्किल रहा। लेकिन एक साल से वो भी कोरोना-कोरोना सुन रही थी तो शायद समझ गई। बेटे-बेटी को कोरोना न हो, इसके लिए हम ईश्वर से प्रार्थना करते रहे। हमने किस्मत पर सबकुछ छोड़ दिया क्योंकि लखनऊ जैसे शहर में जहां हमारा कोई रिश्तेदार नहीं, वहां हम अपने बच्चों को किसी के यहां रख भी नहीं सकते थे। साथ रखने के अलावा और कोई चारा नहीं था। हमलोग खुशकिस्मत रहे कि दोनों बच्चे साथ रहते हुए भी कोरोना से बचे रहे।

संक्रमित होने के बाद कुछ सकारात्मक होता भी दिखा
कोरोना संक्रमित होने के बाद जब हम दोनों पति-पत्नी इससे मुक्त हुए तो बीमारी के दौर में हमने कुछ सकारात्मक चीजों को भी महसूस किया। सबसे पहले तो हम दोनों उन सब्जी, दूध और फलवालों को धन्यवाद देते हैं जो खुद कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुए हम तक सामान पहुंचाते रहे। हमारे फ्लैट को नगर निगम ने कंटेनमेंट जोन घोषित कर पट्टी लगा दी थी। हमलोग बाहर नहीं निकल सकते थे। हमारे पड़ोसियों ने भी काफी मदद की और हौसला दिया। वो कहते रहे कि कोई भी जरूरत हो तो बेझिझक बताना। साथ ही, सबसे पॉजिटिव बदलाव मेरे परिवार में हुआ। अब तक मेरी बेटी हम दोनों के साथ ही ज्यादा जुड़ी थी। संक्रमित होने के बाद उसको हमने भाई के साथ रहने को कहा। हमने पाया कि दोनों भाई-बहन की बॉन्डिंग इस दौरान बहुत अच्छी हो गई। यह देखकर हम दोनों को बहुत ही अच्छा लगा। हमारे दोनों बच्चे अब पहले से ज्यादा एक-दूसरे के साथ जुड़े हैं।

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मुझे लगा कि दूसरों के लिए कुछ करना चाहिए
जब मैं कोरोना से उबर गया तो मुझे अचानक महसूस हुआ कि जो इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं, उनके लिए कुछ करना चाहिए। मैंने प्लाज्मा डोनेट करने का फैसला लिया और एक दोस्त से संपर्क किया जो कोविड मरीजों तक मदद पहुंचाने वाले ग्रुप से जुड़ा था। उसने मेरे बारे में सोशल मीडिया ग्रुप में सूचना डाली। केजीएमयू से मुझे प्लाज्मा डोनेट करने का बुलावा आया। मैं वहां गया तो बकायदा सारे टेस्ट हुए तब जाकर वहां 7 मई को मेरा प्लाज्मा लिया गया। मुझे बहुत ही अच्छा महसूस हुआ कि मैं भी किसी का जीवन बचाने के लिए कुछ प्रयास कर रहा हूं। कोरोना से हमारा परिवार उबर चुका है और मैं आखिर में यही कहना चाहता हूं कि कोरोना से घबराएं नहीं, समय पर जितनी जल्दी हो सके जांच करा लें, दवाई लेते रहें, मनोबल ऊंचा रखें तो कोरोना जरूर हारेगा।

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English summary
How I fought covid pneumonia, my experience may help you to save life
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