सबसे अनूठी वीरांगना: शहीद पति को जिंदा मानकर 57 साल तक बनी रही सुहागन, अब लिया ये फैसला
Jodhpur News, जोधपुर। जिन जवानों के नसीब में शहादत आती है, वो कभी मरते नहीं बल्कि अमर होते हैं। इस बात को साबित कर दिखाया है राजस्थान के जोधपुर जिले की वीरांगना गटटू देवी ने। पति के शहीद हो जाने के 57 साल बाद तक भी गटटू देवी एक सुहागन की जिंदगी जी रही है। अब गटटू देवी ने पति को शहीद मानकर 27 फरवरी को सुहाग के प्रतीक उनकी मूर्ति के समर्पित करने का फैसला लिया है।
दरअसल, सबसे अनूठी इस वीरांगना की कहानी शुरू होती है भारत-चीन के बीच 1962 (India China War 1962) में हुई जंग से। गटटू देवी की शादी पीपाड़ तहसील के खांगटा गांव के भीकाराम ताडा के साथ हुई। वर्ष 1961 में भीकाराम इंडियन आर्मी की पायनियर कोर में भर्ती हुए और अगले ही साल 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध हो गया। उस समय गटटू देवी की उम्र महज 18 साल की थी।
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भारत-चीन युद्ध 1962 में फौजी भीकाराम शहीद हो गए, मगर उनकी पार्थिव देह घर नहीं पहुंची। गटटू देवी द्वारा पति को शहीद नहीं मानने की एक वजह यह भी थी। शुरुआत में उसका कहना था कि जब पति की पार्थिव देह देखी ही नहीं तो कैसे मान लूं कि वो शहीद हो गए। उसे पूरा यकीन है कि पति घर जरूर लौटेंगे।
बाद में धीरे-धीरे गटटू देवी को भी पति की शहादत पर यकीन हो गया। फिर वो कहने लगी शहीद होने वाले फौजी कभी मरा नहीं करते बल्कि वो तो देश के लिए अमर होते हैं। पति को खो देने के बावजूद गटटू के सुहागन की जिंदगी जीने की दूसरी वजह यही सोच थी।
दोनों बेटों को भी फौजी बनाया
भीकाराम शहीद हुए तब गटटू देवी के दो बेटे थे, जिन्हें उसने पिता की बहादुरी किस्से सुनाकर बड़ा किया और फौजी बनाया। यही नहीं बल्कि भीकाराम के परिवार की तीसरी पीढ़ी ने भी आर्मी ज्वाइन कर रखी है। वीरांगना गटटू देवी व उसके परिवार ने गांव के चौराहे पर शहीद भीकाराम की प्रतिमा लगवाई, जिसका 27 फरवरी को अनावरण है। गटटू भी अपने पति को शहीद मानते हुए अब उनकी प्रतिमा पर अपने सुहाग के प्रतीक चढ़ाएगी। प्रतिमा का अनावरण गटटू देवी के हाथों ही होगा।