कर्ज में डूबा MP: ‘माननीय मांगे मोर’ विधायकों को कम पड़ रही 1.10 लाख सैलरी
मीटिंग, सभाओं सैर सपाटे में बीस रुपए लीटर मिनरल वाटर पीने वाले मप्र के विधायक इन दिनों तनख्वाह को लेकर खासे परेशान है। उनको हर महीने मिलने वाली एक लाख दस हजार रुपए की सैलरी कम पड़ रही है। उनका बटुआ अब जबाब देने लगा है।
भोपाल, 07 जुलाई: मप्र के टिप-टॉप विधायकों का वर्तमान में मिल रही तनख्वाह से गुजारा नहीं चल रहा है। मौजूदा वक्त में उनको हर महीने मिलने वाली एक लाख दस हजार रुपए की सैलरी कम पड़ रही है। कांग्रेस से पूर्व मंत्री और विधायक पीसी शर्मा ने जहाँ खुलकर दिल्ली सरकार का हवाला देते हुए वेतन वृद्धि की जहाँ डिमांड रखी है, तो वही सत्ता पक्ष के विधायक भी दबी जुबान में सही लेकिन शर्मा के सुर में सुर मिला रहे है।
माननीयों का खाली हो जाता है बटुआ !
मीटिंग, सभाओं सैर सपाटे में बीस रुपए लीटर मिनरल वाटर पीने वाले मप्र के विधायक इन दिनों तनख्वाह को लेकर खासे परेशान है। उनको हर महीने मिलने वाली एक लाख दस हजार रुपए की सैलरी कम पड़ रही है। उनका बटुआ अब जबाब देने लगा है। किसी घर के गड़बड़ाते बजट की तरह उनकी तनख्वाह आधे महीने ही खत्म हो जाती है। ऐसा कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे विधायक पीसी शर्मा का कहना है। उन्होंने पिछले दिनों दिल्ली सरकार में माननीयों के वेतन-भत्ते में हुई बढ़ोत्तरी का हवाला दिया हैं। उनकी दलील है कि महंगाई के ज़माने में उन्हें 24 घंटे आम जनता के बीच रहना पड़ता है, खर्चे बढ़ते ही जा रहे है, इसलिए विधायकों के वेतन में बढ़ोत्तरी की जाना चाहिए।
कर्ज में सरकार, माननीयों को पगार की चिंता
मध्यप्रदेश सरकार की बीते दो सालों की वित्तीय स्थिति बताती है, कि उसका खजाना पाई-पाई जोड़कर भरा जा रहा है। साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए के कर्ज में डूबे मप्र सरकार के माननीयों का यह हाल है। सरकार के जिस तरह के वित्तीय आंकड़े है, उसके मुताबिक आने वाले दिनों में और कर्ज लेना भी अनुमानित है। यदि सकल घेरलू उत्पाद का करीब साढ़े तीन फीसदी दर से भी कर्ज लिया गया तो इस राशि का आंकड़ा करीब 10 हजार करोड़ रुपए पहुँचता है। इस बीच विधायकों के वेतन भत्ते वृद्धि की मांग सरकारी खजाने को और खाली करने तैयार है।
अभी बढ़ी थी सुरक्षा निधि, इतना मिलता है वेतन भत्ता
जिस तरह वेतन वृद्धि की मांग उठी है, उसी तरह पिछले महीनों में विधायक सुरक्षा निधि बढ़ाने आवाज उठी थी। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष दोनों ओर से विधायकों के स्वर एक थे। जिसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सुरक्षा निधि में 35 लाख रुपए का इजाफा करते हुए 50 लाख कर दी। जबकि पहले सुरक्षा निधि के नाम पर सिर्फ 15 लाख रुपए ही मिलते थे। यह फैसला तब लिया गया, जब मप्र पहले से ही कर्ज से जूझ रहा है। एक बार फिर विधायकों की मांग ने कई सवालों को जन्म दे दिया है। विधायकों को वर्तमान में मिलने वाले वेतन भत्तों पर यदि गौर तो-
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30,000
प्रति
महीने
वेतन • 35,000 हर महीने निर्वाचन क्षेत्र भत्ता • 10,000 लेखन सामग्री और डाक भत्ता • 15,000 प्रति महीने कंप्यूटर ऑपरेटर या अर्दली भत्ता • 10,000 टेलीफोन भत्ता • 10,000 मेडिकल के साथ नि:शुल्क रेल और हवाई सुविधा |
25 जुलाई से मानसून सत्र, गूंजेंगी वेतन की मांग
बताया जा रहा है कि मध्यप्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र 25 जुलाई से शुरू होने वाला है। जिसमें वेतन भत्ते बढ़ोत्तरी संबंधी मांग विपक्ष उठाएंगा। हालाँकि 15 महीने की कमलनाथ सरकार के वक्त भी यह मुद्दा उठा था, उस वक्त तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने एक समिति का गठन किया था। फिर वेतन भत्ते बढ़ाने की पूरी तैयारी कर ली गई थी। लेकिन प्रस्ताव पर मुहर लगती उससे पहले ही कमलनाथ सरकार गिर गई।
खर्चों पर लगाम नही
एक बार फिर विधायकों के वेतन-भत्तों में बढ़ोत्तरी का मुद्दा गर्म होने के साथ ही विपक्ष सरकार पर निशाना भी साध रही है। मप्र के खाली खजाने को लेकर नेता प्रतिपक्ष गोविन्द सिंह कहते है कि सरकार अपनी ब्रांडिंग और अन्य दूसरे आयोजनों में पानी की तरह पैसा बहाती है। हर महीने होने वाले ऐसे आयोजनों जिनको भव्यता दी जाती है, यदि उस खर्चे को जोड़ा जाए तो महीने भर में करोड़ों रुपए फूंके जा रहे है। नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार से मिलने वाली जीएसटी क्षतिपूर्ति पर भी ताला लग गया है। इससे सरकारी खजाने पर बोझ पड़ना स्वाभाविक है। वहीं, बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी भी 28 हजार करोड़ के करीब हो गई है।