यूक्रेन युद्ध में अचानक अमेरिका युद्धविराम क्यों करना चाहता है? पुतिन के ‘तीन तीर’ से बाइडेन हारे?
बहुत संभावना अब इस बात की बनने लगी है,कि यूक्रेन की मुख्य सेना रूसी सैनिकों के सामने पराजित हो सकती है या फिर रूसी सैनिक उन्हें फंसा सकते हैं और ऐसी स्थिति में यूक्रेन को अनिवार्य रूप से रूस के साथ समझौता करना होगा।
वॉशिंगटन, मई 29: एक हफ्ते पहले तक यूक्रेनी नेता आत्मविश्वास से लबरेज थे, कि वो बहुत जल्द रूसी सेना को यूक्रेनी धरती से खदेड़ने में कामयाब हो जाएंगे, लेकिन यूक्रेन में स्थिति नाटकीय रूप से बदल गई है। एक हफ्ते पहले जो पश्चिमी ये दावे कर रहा था, कि रूस बुरी तरह से पराजित हो रहा है, उन पश्चिमी मीडिया पर कहा जा रहा है, कि यूक्रेनी सेना डोनबास क्षेत्र में एक बड़ी हार की तरफ बढ़ रही है और पूर्वी यूक्रेन का क्षेत्र, जो आज़ोव सागर और उससे आगे तक फैला हुआ है, उसपर बहुत जल्द रूस का कब्जा होने वाला है।
समझौते के लिए तैयार हो रहा यूक्रेन?
बहुत संभावना अब इस बात की बनने लगी है, कि यूक्रेन की मुख्य सेना रूसी सैनिकों के सामने पराजित हो सकती है या फिर रूसी सैनिक उन्हें फंसा सकते हैं और ऐसी स्थिति में यूक्रेन को अनिवार्य रूप से रूस के साथ समझौता करना होगा। एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह सब बहुत जल्दी हो सकता है। अमेरिकी, खासकर यूरोपीय प्रेस, जो एक हफ्ते पहले तक रूस के खिलाफ जमकर निगेटिव रिपोर्टिंग कर रहा था और लगातार लिख रहा था, कि किस तरह से रूसी सैनिक यूक्रेन में हमले कर रहे हैं और अत्याचार कर रहे हैं, उसका रूख भी अचानक बदलता हुआ दिखाई दे रहा है और यूरोपीय मीडिया ने बहुत हद तक युद्ध की वास्तविक कहानियों को बताना शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं, अचानक ऐसा लगने लगा है, कि नाटो देश, खासकर ब्रिटेन यूक्रेन से नाराज हो गया है। लिहाजा, इन संकेतों के पीछे क्या डील चल रहा है, ये एक बहुत बड़ा सवाल है।
अब झुकने के मूड में नहीं रूस!
अचानक अमेरिका किसी भी तरह से इस लड़ाई को खत्म करना चाहता है और अमेरिका यूक्रेन को नए प्रकार के हथियार भेजने की जल्दबाजी कर रहा है, जिसमें HIMARS, जो एक हाई स्पीड सटीक रॉकेट प्रणाली सिस्टम है, वो भी शामिल है। लेकिन अगर अमेरिका HIMARS भेजने का संकल्प लेता है, तो शायद यूक्रेन के प्रतिरोध के लिए बहुत देर हो चुकी है। इसके अलावा, रूसियों ने चेतावनी दी है कि यदि HIMARS की डिलीवरी और तैनाती की जाती है, तो अमेरिका को काफी खतरनाक अंजाम भी भुगतना होगा। फिर भी, यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की रूसियों के साथ एक समझौते पर पहुंचने के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। हालांकि, वह ऐसा कर पाएंगे या नहीं, यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है।
युद्ध में रूस की स्थिति बनी मजबूत
यूक्रेन युद्ध के एक महीने खत्म होने के बाद जैसे ही रूस ने अपनी लड़ाई की प्लानिंग बदलते हुए पूर्वी यूक्रेन पर ध्यान केन्द्रित किया, उसे फौरन यूक्रेन में सफलताएं मिलने लगीं। रूसी सेना बंदरगाह शहर मारियुपोल पर कब्जा करप सकती है और आजोव सागर बंदरगाह भी अब रूस के नियंत्रण में है। वहीं, हजारों सैनिक अभी रूसी सैनिकों के कैद शिविरों में हैं, जिनके जल्द ही किसी भी समय कार्रवाई पर लौटने की संभावना नहीं है। जबकि ज़ेलेंस्की ने रूसी समर्थक विरोधियों को बंद करना शुरू कर दिया है। यूक्रेन के पूर्व राष्ट्रपति के देश छोड़ने पर रोक लगा दी गई है। वहीं, रिपोर्ट के मुताबिक, जब 13 मई को अमेरिका के रक्षा मत्री लॉयड ऑस्टिन ने अपने रूसी समकक्ष रक्षा मंत्री जनरल सर्गेई शोइगु को फोन किया था, तो उन्होंने कथित तौर पर शोइगु से यूक्रेन में युद्धविराम के लिए कहा था।
रूस से संपर्क बढ़ाता अमेरिका
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका ने रूस से सारे संपर्क तोड़ लिए थे। लेकिन, पिछले 15 दिनों में अमेरिका ने फिर से रूस से बात करनी शुरू कर दी है। 19 मई को अमेरिका के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ जनरल मार्क मिले ने अपने रूसी समकक्ष जनरल वालेरी गेरासिमोव को फोन किया था। हालाकं, उस चर्चा का विवरण सार्वजनिक रूप से जारी नहीं किया गया है, लेकिन यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह युद्धविराम के लिए अमेरिका की तरफ से की गई एक और बड़ी कोशिश थी।
अमेरिका को युद्धविराम की जल्दी क्यों?
ऐसे में सवाल ये उठ रहे हैं, कि वाशिंगटन अचानक युद्धविराम हासिल करने की इतनी जल्दी में क्यों है? एक विश्लेषण तो यह है, कि उन्होंने पहले ही देख लिया है, कि रूस का अब डोनबास पर पूरी तरह से नियंत्रण होने वाला है और यूक्रेनी सेना के लिए रास्ता अब खत्म होने वाला है। वहीं, दोनों फोन कॉलों के बावजूद युद्धविराम पर कोई सहमति नहीं बनी है। जिसके बाद अब अमेरिकी सहयोगियों को लगने लगा है, कि वो आगे कहां तक यूक्रेन की मदद करे। पश्चिमी देशों ने अभी तक यूक्रेन को काफी हथियार दिए हैं, लेकिन कब तक हथियारों की सप्लाई होगी, अब ये सवाल बनने लगे हैं। वहीं, अफगानिस्तान में बुरी तरह से फेल रहने वाले बाइडेन यूक्रेन को लेकर जो तर्क दे रहे हैं, वो भी खोखले साबित हो रहे हैं और वैश्विक मंच पर अमेरिका की कमजोर छवि, खासकर बाइडेन के एक कमजोर राष्ट्रपति होने के संकेत जाने लगे हैं।
तेल, गैस और गेहूं... तीन रूसी हथियार
वहीं, वैश्विक गेहूं संकट ने यूरोप के टेंशन को बढ़ा दिया है। यूक्रेन युद्ध और खराब मौसम की वजह से इस साल गेहूं की पैदावार में रिकॉर्ड नुकसान हुआ है और खराब मौसम उत्तरी अमेरिका, यूरोप, भारत और दक्षिण अमेरिका में उत्पादन की संभावनाओं को कम कर रहा है। वहीं, पूरी दुनिया में रूस और यूक्रेन ही सबसे ज्यादा गेहूं का उत्पादन करते हैं, लेकिन रूस ने यूक्रेन के बंदरगाव वाले शहरों पर कब्जा कर लिया है। रूसी सैनिक बंदरगाह वाले शहर ओडेसा और मारियुपोल पर पूरी तरह से कंट्रोल कर चुके हैं और रूस की नौसेना ने काला सागर पर कंट्रोल कर रखा है, लिहाजा यूक्रेनी बंदरगाह होते हुए अब गेहूं की सप्लाई नहीं हो सकती है। लिहाजा, अब यूरोप चाहते हैं, कि ये युद्ध अगर जल्द खत्म होता है, तो महंगाई पर वक्त रहते काबू पाया जा सकता है।
पश्चिम के खिलाफ पुतिन के तीन तीर
देखा जाए, तो यूक्रेन युद्ध के बाद तेल, गैस और अब गेहूं... इन तीन सामानों ने रूस के किसी भी मिसाइल से ज्यादा सटीक निशाना किया है। अमेरिका और यूरोपीय देशों ने जितने भी प्रतिबंध रूस पर लगाए हैं, उनसे बचने के लिए रूस अपने इन्हीं तीन ढालों का इस्तेमाल कर रहा है। अभी तक यूरोपीय देश और अमेरिका ये प्लान बना रहे थे, कि आखिर रूस से तेल और गैस की आपूर्ति को कैसे प्रतिबंधित किया जाए, लेकिन इस हफ्ते पूरी दुनिया का ध्यान खाद्य संकट पर है। यूएन महासचिल एंटोनियो गुटेरेस कहते हैं कि, 'मैं इस वक्त यूक्रेन के निर्यात को मुक्त करने के प्रयासों की जांच कर रहा हूं, लेकिन पहले रूस की गेहूं की स्थिति को भी देखना होगा'। रूस पिछले कई महीनों से लगातार गेहूं जमा करता जा रहा था, जिसके बारे में अब दुनिया को पता चला है। वहीं, पिछले कुछ हफ्तों में इतनी ज्यादा गर्मी पड़ी है, कि गेहूं को काफी नुकसान हुआ है। लिहाजा, अब अमेरिका भी चाह रहा है, कि किसी तरह से अगर युद्ध खत्म हो जाए, तो वो घरेलू स्तर पर संकट बढ़ने से निजात पा सकता है।