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एक टेबल पर आएंगे पीएम मोदी, जिनपिंग और पुतिन, SCO शिखर सम्मेलन में भारत पर सबकी निगाहें

एससीओ की इस बैठक पर पश्चिमी देशों की गहरी नजर है, क्योंकि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार जिनपिंग और पुतिन की मुलाकात होगी और पश्चिमी विश्लेषक इसे अमेरिका और नाटो के खिलाफ चीन और रूस का गठबंधन बता रहे हैं।

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समरकंद, सितंबर 13: भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 15 और 16 सितंबर को उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन यानि एससीओ शिखर सम्मेलन में एक टेबल पर एक साथ आएंगे। दो साल पहले COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद से यह चीनी राष्ट्रपति की ये पहली विदेश यात्रा होगी। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने पड़ोसी मध्य एशियाई देश में शी जिनपिंग की यात्रा की पुष्टि करते हुए कहा कि, वह उज़्बेक शहर समरकंद में एससीओ के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद की 22 वीं बैठक में भाग लेने के लिए 14 से 16 सितंबर तक उज्बेकिस्तान की यात्रा करेंगे। शी जिनपिंग कजाकिस्तान की राजकीय यात्रा भी करेंगे। इसके साथ ही पीएम मोदी और शी जिनपिंग के अलावा, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी के भी शिखर सम्मेलन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की उम्मीद है। एससीओ शिखर सम्मेलन 2022 में क्या अनुमान लगाया जा सकता है? इसका क्या महत्व है? आइये जानते हैं, कि क्यों एससीओ चीन के लिए अपनी ताकत दिखाने का अखाड़ा बनता जा रहा है और क्यों भारत के रूख पर पश्चिमी देशों की नजरें टिकी हैं?

एससीओ क्या है?

एससीओ क्या है?

15 जून 2001 को चीन के औद्योगिक शहर शंघाई में स्थापित 'शंघाई सहयोग संगठन' आठ सदस्य देशों- चीन, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान से मिलकर बना एक अंतर सरकारी संगठन है। एससीओ में अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया भी शामिल हैं, जिन्हें पूर्ण सदस्यता प्राप्त करने के उद्देश्य से पर्यवेक्षक राज्य कहा जाता है। साल 2021 में, एक पूर्ण सदस्य के रूप में एससीओ में ईरान को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला लिया गया था। ये संगठन 'डायलॉग पार्टनर्स'- आर्मेनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका, तुर्की, मिस्र, कतर और सऊदी अरब को भी मान्यता देता है। डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटिकल एंड पीसबिल्डिंग अफेयर्स (DPPA) का कहना है कि, SCO क्षेत्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई, जातीय अलगाववाद, धार्मिक उग्रवाद के साथ-साथ क्षेत्रीय विकास जैसे कई मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है। एससीओ, आठ सदस्यीय आर्थिक और सुरक्षा ब्लॉक, जिस पर चीन और रूस का दबदबा है, यूरेशिया के लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्र, वैश्विक आबादी का 40 प्रतिशत और विश्व जीडीपी के 30 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार है।

एससीओ में पीएम मोदी

एससीओ में पीएम मोदी

भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने रविवार को कहा कि मोदी 15-16 सितंबर को उज्बेकिस्तान का दौरा करेंगे और पीएम मोदी महत्वपूर्ण एससीओ शिखर सम्मेलन के मौके पर कई द्विपक्षीय बैठकें भी आयोजित कर सकते हैं, जिसमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी के साथ अलग अलग द्विपक्षीय बैठक का आयोजन हो सकता है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पीएम मोदी और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति मिर्जियोयेव के बीच मुलाकात तय है। हालांकि, अभी तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि भारतीय प्रधानमंत्री की पुतिन और रायसी के साथ द्विपक्षीय बैठक हो सकती है। साल 2019 ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) शिखर सम्मेलन के मौके पर ब्रासीलिया में बैठक के बाद मोदी और शी व्यक्तिगत रूप से पहली बार मिलेंगे। उनकी मुलाकात भारत और चीन के पूर्वी लद्दाख के पैट्रोल पॉइंट 15 पर गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स क्षेत्र के अंतिम घर्षण बिंदुओं से दोनों देशों की सेनाओं की वापसी के बाद हो रही है, जिससे दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव कम हो सकता है। हालांकि, यह देखा जाना बाकी है कि मोदी अपने पाकिस्तानी समकक्ष शहबाज शरीफ के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे या नहीं। हालांकि, इसकी उम्मीद काफी कम बताई जा रही है।

जिनपिंग और पुतिन की मुलाकात

जिनपिंग और पुतिन की मुलाकात

रूसी अधिकारियों के अनुसार, एससीओ बैठक में व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग के बीच एक द्विपक्षीय बैठक होगा और यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार दोनों नेताओं की ये मुलाकात होगी। इससे पहले यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से ठीक दो हफ्त पहले दोनों नेताओं की आखिरी मुलाकात जनवरी में बीजिंग में हुई थी। उस समय, दोनों नेताओं ने अपने बयान में कहा था, कि उनके रिश्ते की "कोई सीमा नहीं" है। ऐसा माना जाता है, कि राष्ट्रपति पुतिन और शी जिनपिंग के बीच युद्ध को लेकर कोई 'डील' हुई थी।

एससीओ सम्मेलन-2022 क्यों महत्वपूर्ण है?

एससीओ सम्मेलन-2022 क्यों महत्वपूर्ण है?

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, नेताओं के बीच शिखर सम्मेलन के दौरान पिछले दो दशकों में एससीओ की गतिविधियों की समीक्षा करने और राज्य और बहुपक्षीय सहयोग की संभावनाओं पर विचार-विमर्श करने की उम्मीद है। इसके अलावा, जब सदस्य टेबल पर आएंगे, तो क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दे भी सामने आ सकते हैं। ये शिखर सम्मेलन यूक्रेन के साथ छह महीने से चले आ रहे संघर्ष के बीच हो रहा है, जिसकी वजह से रूस पर भीषण आर्थिक प्रतिबंध लगाए गये हैं, और खुद राष्ट्रपति पुतिन भी सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं, लिहाजा उम्मीद है, कि यूक्रेन युद्ध को लेकर भी चर्चा हो सकती है। भारत और चीन, दोनों में से किसी ने भी यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा नहीं की है और भारत ने अपने राजनयिक रुख को बनाए रखते हुए रूस की निंदा किए बगैर "शत्रुता की तत्काल समाप्ति" का आह्वान किया है। एससीओ शिखर सम्मेलन 2022 के बाद इसकी अगली अध्यक्षता भारत करेगा और अगली बार इसकी बैठक का आयोजन सितंबर 2023 में भारत में किया जाएगा। वहीं, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए ये एससीओ सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि चीनी कांग्रेस अगले महीने नये राष्ट्रपति का चुनाव करेगी और शी जिनपिंग के ही चुने जाने की पूरी संभावना है, लिहाजा एससीओ संगठन को शी जिनपिंग अमेरिका के खिलाफ तगड़ा विकल्प की तरह बनाने की कोशिश करेंगे और फिलहाल एससीओ का जो ढांचा है, उसमें सिर्फ भारत ही है, जो चीन के खिलाफ अपनी बात रखेगा।

एससीओ बन रहा चीन का अखाड़ा

एससीओ बन रहा चीन का अखाड़ा

एससीओ की इस बैठक पर पश्चिमी देशों की गहरी नजर है, क्योंकि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात होगी और पश्चिमी विश्लेषक इसे अमेरिका और नाटो के खिलाफ चीन और रूस का सैन्य गठबंधन बताने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, कई पश्चिमी विश्लेषकों ने तो इसे पूर्वी देशों का नाटो तक करार दे दिया है। वहीं, चीनी पक्ष पूरी कोशिश कर रहा है, कि शी जिनपिंग और पीएम मोदी की मुलाकात हो और इसीलिए पूर्वी लद्दाख में चीनी सैनिक पीछे हटने के लिए तैयार हो गये हैं। वहीं, रूस की भी कोशिश है, कि राष्ट्रपति पुतिन के साथ साथ शी जिनपिंग की मुलाकात पीएम मोदी से हो, ताकि वो पश्चिमी देशों को एकजुटता का संदेश दे सके। हालांकि, चीन की कोशिश एससीओ को अपनी राजनीतिक शक्ति दिखाने का एक टूल की तरह दिखाने की कोशिश जरूर है, लेकिन नाटो के समकक्ष एससीओ खड़ा नहीं हो सकता है, क्योंकि ये सैन्य सुरक्षा की गारंटी देने वाला संगठन नहीं है, वहीं एससीओ में शामिल ज्यादातर देश भी इसे पश्चिमी देशों के खिलाफ एक संगठन के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं करना चाहते हैं।

भारत की तरफ देख रहे पश्चिमी देश

भारत की तरफ देख रहे पश्चिमी देश

रूस और चीन का पश्चिमी देशों के साथ छत्तीस का आंकड़ा है, लेकिन भारत एकमात्र वो देश है, जो हर खेमे में शामिल है। क्वाड का हिस्सा होने के साथ साथ भारत एससीओ का भी हिस्सा है, लिहाजा भारत का महत्व इस गुट में काफी ज्यादा बढ़ जाता है। हालांकि, भारत नहीं चाहता है, कि एससीओ में चीन का दादागीरी चले, लिहाजा भारत तेजी से पश्चिमी देशों का भागीदार भी बन रहा है, लेकिन भारत ये भी नहीं चाहता है, कि उस पश्चिम का 'हिस्सा' कहा जाए, लिहाजा भारत अपना रास्ता खुद बनाना चाहता है, जो ना अमेरिकी खेमे का है और ना ही रूस के खेमे का। लेकिन, भारत एससीओ को ज्यादा महत्व देकर क्वाड को भी कमजोर नहीं करना चाहता है, क्योंकि असली कहानी इंडो-पैसिफिक में बनाई जा रही है, जो दुनिया के शक्तिशाली देशों के लिए नया अखाड़ा बन चुका है।

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English summary
Established on June 15, 2001 in the industrial city of Shanghai, China, the Shanghai Cooperation Organization is an intergovernmental organization consisting of eight member countries – China, India, Kazakhstan, Kyrgyzstan, Russia, Pakistan, Tajikistan and Uzbekistan.
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