रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर आमने-सामने क्यों आए पोप और रूसी धर्मगुरू?
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पोप फ्रांसिस और रूसी धर्मगुरू पैट्रियार्क किरिल के बीच बातचीत हुई थी
24 फ़रवरी से ही पोप फ्रांसिस, रूस-यूक्रेन संघर्ष में शांति की मांग कर रहे हैं. उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि युद्ध के पहले ही दिन उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को फ़ोन किया था.
उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फ़ोन तो नहीं किया लेकिन कार्डिनल पेत्रो पारोलीन के ज़रिए मौजूदा संकट के 20वें दिन रूसी राष्ट्रपति को संदेश भिजवाया कि वे रूस आने के लिए तैयार हैं.
उन्होंने यूक्रेन की यात्रा की बात भी की लेकिन इन यात्राओं को लेकर किसी निर्धारित दिन की बात नहीं की है.
मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि उन्होंने रूसी राष्ट्रपति से यूक्रेन के मारियुपोल से आम नागरिकों को निकलने के लिए सुरक्षित रास्ता देने के लिए पुतिन से तीन बार मांग की, जिसमें एक बार तो वेटिकन सिटी का पवित्र झंडा लगाए विमान से भी लोगों को निकालने की बात शामिल थी, लेकिन उन्हें इसका कोई सकारात्मक उत्तर नहीं नहीं मिला.
रूस के ऑर्थोडॉक्स चर्च के प्रमुख धर्मगुरु पैट्रियार्क किरिल की वेबसाइट पर मौजूद 16 मार्च की रिलीज़ में कहा गया है कि यूक्रेन की स्थिति पर विस्तृत बातचीत हुई है और मौजूदा संकट के दौरान मानवीय पहलुओं पर ख़ास ध्यान दिया जाएगा.
राजनीतिक भाषा में बातचीत
पोप फ्रांसिस ने अपने इंटरव्यू में कहा, "उन्होंने रूस के आक्रमण को सही ठहराते हुए अपने हाथों में लिए पेपर को पढ़ना शुरू कर दिया था. मैंने उन्हें सुनने के बाद कहा कि मुझे कुछ समझ नहीं आया भाई, हम लोग कोई सरकारी अधिकारी नहीं हैं. हमें राजनीतिक ज़ुबान में बात नहीं करना चाहिए, हमें प्रभु जीसस की भाषा में बात करनी चाहिए. हमें शांति के रास्ते देखने चाहिए, हमें युद्ध बंद कराना चाहिए. धर्म गुरू को पुतिन के सहयोगी की भूमिका नहीं निभानी चाहिए."
पोप फ्रांसिस ने कहा है कि उन्हें नहीं मालूम कि क्या पुतिन को उकसाया गया लेकिन ये माना कि नेटो ने रूस की सीमाओं पर सैन्यबल को तैनात करने को उकसाना माना जा सकता है.
पोप फ्रांसिस के इस इंटरव्यू के बाद मास्को स्थित धर्म गुरू के विदेशी चर्चों से संबंध रखने वाले विभाग ने चार मई को प्रतिक्रिया दी है.
इसमें पोप के इंटरव्यू को लेकर बहुत लंबा स्पष्टीकरण दिया गया है. विभाग ने पोप फ्रांसिस पर बातचीत के विषय को सही टोन में व्यक्त नहीं किए जाने पर खेद जताया है. इतना ही नहीं, यह भी कहा गया है कि ऐसी बातों से दोनों धर्मगुरुओं के बीच किसी सार्थक बातचीत में कोई मदद नहीं मिलेगी.
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रूस की ओर से आया जवाब
बातचीत के पहले 20 मिनट में रूसी आक्रमण को सही ठहराए जाने के आरोप पर स्पष्टीकरण दिया गया है. इस स्पष्टीकरण में कहा गया कि पैट्रियार्क किरिल ने विभिन्न क्षेत्रों से मिलने वाली जानकारी पर बातचीत शुरू की और कहा कि पश्चिमी मीडिया जो बातें नहीं कर रहा है उस पर मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं.
बातचीत के दौरान पैट्रियार्क किरिल ने 2014 में कीएव में हुई घटनाओं का हवाला दिया, साथ ही ओडेसा की घटनाओं का जिक्र भी किया और कहा कि "हम लोगों ने टेलीविज़न पर सबकुछ लाइव देखा था, उन डराने वाले अनुभवों के चलते ही दक्षिण पूर्व यूक्रेन के लोग अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े हो गए हैं."
इस बयान के मुताबिक़, इसके बाद पैट्रियार्क किरिल ने बातचीत में कहा कि सोवियत संघ के विघटन के बाद नेटो ने भरोसा दिया था कि नेटो, पूर्व की ओर एक इंच भी नहीं बढ़ेगा. लेकिन यह वादा नेटो की तरफ़ से तोड़ा गया और इससे रूस के लिए बहुत ख़तरनाक स्थिति पैदा हुई है.
इसमें यह भी कहा गया कि पैट्रियार्क किरिल ने पोप फ्रांसिस को बताया कि "सेंट पीटसबर्ग से कुछ ही मिनटों की दूरी पर नेटो मिसाइलें तैनात कर रहा है और यूक्रेन ने नेटो को इज़ाज़त दी तो मास्को भी इससे ज्यादा दूरी पर नहीं होगा. ऐसे में रूस यह कभी नहीं होने देगा."
इस स्पष्टीकरण में केवल एक पैराग्राफ़ मानवीय पहलुओं को लेकर है, जिसमें रूसी धर्म गुरु की ओर से स्थिति को दुखद बताया गया है और कहा गया है कि इस संघर्ष में दोनों तरफ़ हमारे लोग हैं इसलिए हमें शांति और न्याय की स्थिति लाने की कोशिश करनी चाहिए.
पोप फ्रांसिस और पैट्रियार्क किरिल के बीच मुलाक़ात?
हालांकि इस स्पष्टीकरण में अहम सवालों का जवाब नहीं दिया गया है.
जैसे कि क्या रूस के परंपरागत ऑर्थोडोक्स चर्च के धर्म गुरु और रोमन कैथोलिक चर्च के धर्मगुरु की मुलाक़ात होगी?
पैट्रियार्क किरिल और पोप फ्रांसिस के बीच पहली बार मुलाक़ात साल 2016 में क्यूबा में हुई थी. इस भेंट से पहले लंबी तैयारियों का सिलसिला जारी रहा था.
तब धर्मगुरु किरिल ने कहा था, "इस बातचीत के बाद मैं केवल इतना कह सकता हूं कि दोनों चर्च आपस में मिलकर दुनिया भर में ईसाई समुदाय की रक्षा के लिए सक्रियता से काम करेंगे. हम अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए एकजुटता से काम करेंगे, ताकि कोई लड़ाई न हो."
दोनों धर्मगुरूओं की अगली मुलाक़ात 14 जून को यरूशलम में प्रस्तावित थी. लेकिन पोप फ्रांसिस ने इस मुलाक़ात के बारे में अपने इंटरव्यू में कहा, "यह हमारी दूसरी मुलाक़ात होती. इसका युद्ध से कोई लेना देना नहीं था, लेकिन हमने इसे रद्द किया क्योंकि हमारे ख़्याल से इससे दुनिया को ग़लत संदेश जाएगा."
रूसी धर्मगुरू के स्पष्टीकरण में अगली मुलाक़ात की किसी संभावना का उल्लेख नहीं है.
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