फ्रांस के वैज्ञानिकों को अंदेशा, चीन में आने से पहले ही दुनिया में चुपचाप फैलने लगा था कोरोना वायरस
पेरिस। चीन में कोरोना वायरस का पहला केस पिछले वर्ष 2019 में नजर आया था। लेकिन ऐसी शंकाएं भी अब सामने आ रही हैं जिसमें माना जा रहा है कि चीन में पहला केस सामने आने के पहले ही वायरस किसी को संक्रमित कर चुका था। वैज्ञानिक अब अपने सवालों के जवाब तलाशने के लिए 'पेशेंट जीरो' की तलाश कर रहे हैं। वो इसके विकास का पता लगाने में लगे हुए हैं। न्यूज एजेंसी एएफपी ने बताया है कि जेनेटिक डिटेक्टिव्स अब कोरोना वायरस की फैमिली ट्री का पता लगाने में लगे हैं जिसने अब तक दो लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली है।

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27 दिसंबर को फ्रांस के अस्पताल में भर्ती एक मरीज
डिटेक्टिव्स अब इस बात का पता लगा रहे हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि जब इसका पहला केस रिकॉर्ड हुआ हो तो उससे पहले ही इसने दूसरे देशों के लोगों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया हो। फ्रांस में जनवरी के अंत में कई ऐसे केस सामने आए थे जिसमें कोरोना के लक्षण देखे गए। लेकिन इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एंटी-माइक्रोबायल एजेंट्स की तरफ से जो स्टडी सामने आई है उसमें इस तरफ इशारा किया गया है कि जनवरी से पहले ही वायरस फ्रांस में दस्तक दे चुका था। आईसीयू में भर्ती 14 मरीजों के सैंपल्स की व्याख्या की गई है जिनमें फ्लू जैसे लक्षण मिले थे। ये मरीज पेरिस के एविकेने एंड जीन वर्डियर हॉस्पिटल में भर्ती थे। इनमें से 42 साल का एक ऐसा फ्रेंच नागरिक जासूसों को मिला है जो चीन गया ही नहीं था। इस मरीज को 27 दिसंबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
चुपचाप वायरस बना रहा था लोगों को निशाना
अस्पताल में संक्रमित बीमारी विभाग के मुखिया ओलिवर बोशाड कहते हैं कि वायरस चुपचाप लोगों के बीच फैलता गया और किसी को इसकी मौजूदगी का पता ही नहीं लग पा रहा था। उन्होंने कहा कि शुरुआत संक्रमणों की पुष्टि उसी समय की गई जब वैज्ञानिकों को कोरोना वायरस का अंदेशा हुआ। 57 साल की मेडिकल सेक्रेटी आइशा को जनवररी माह के मध्य में सांस की बीमारी के लक्षणों के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। फ्रांस में तब तक कोरोना का कोई केस नहीं था और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की तरफ से बीमारी को कोई नाम नहीं दिया गया था। चीन में वुहान हेल्थ अथॉरिटीज के मुताबिक आठ दिसंबर को कोरोना का पहला केस सामने आया था।