करतारपुर कॉरिडोर और दो अलग उद्घाटनी हांडियों का नतीजाः वुसत का ब्लॉग
और अगर भारत से आर्थिक संबंध बढ़ाने की बात इमरान खान के अलावा किसी और प्रधान के मुंह से निकलती तो एक बार फिर मोदी का जो यार है, गद्दार है - का गदर मच चुका होता.
हालांकि कोई वजह नहीं, मगर जाने क्यों मुझे अब भी उम्मीद है कि भारतीय चुनाव के बाद अगर मोदी दोबारा पद संभालते हैं तो हो सकता है वो इमरान खान के साथ संबंध सामान्य करके का एक बड़ा जुआ खेलने का सोचें.
अगर करतारपुर कॉरिडोर पर अपनी-अपनी सियासी दुकान सजाने से पहले दोनों देशों के बीच दिल्ली या इस्लामाबाद या किसी तीसरी जगह या स्काइप पर ये तय होता कि यात्री इस कॉरिडोर को कैसे इस्तेमाल करेंगे, वीज़ा या परमिट की शक्ल क्या होगी, दोनों देश मिलकर यात्रियों को क्या-क्या सुविधाएं देंगे और अगर ये भी तय हो जाता कि इस कॉरिडोर की नींव रखने के उद्घाटन के लिए एक ही समारोह होगा या दो अलग-अलग समारोह होंगे और इसमें दोनों देशों की बराबर शिरकत होगी. और ये भी तय होता कि ऐतिहासिक मोड़ पर बदतमीज़ मीडिया के सामने कैसा रवैया बरता जाएगा, तो फिर शायद उस अफरा-तफरी और बयानबाज़ी से बचा जा सकता था जो अपनी-अपनी उद्घाटनी हांडियाँ अलग-अलग चूल्हों पर चढ़ाने से पैदा हुई.
इस वक्त करतारपुर कॉरिडोर के मुकम्मल होने की उम्मीद से सिख समुदाय तो यकीनन बहुत खुश है, मगर बाकियों का रवैया दूध में मेंगनी डालने जैसा है.
पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी करतारपुर बॉर्डर योजना को भारत को डाली गुई गुगली कहते हैं.
और भारत सरकार के रवैये को बहुत-से सिख और गैर-सिख इस तरह महसूस कर रहे हैं, जैसे कोई घर आए बिन बुलाए मेहमान को कहे, "ले अब तू आ ही गया है तो कुछ खाना ठूँस ले और दफ़ा हो जा."
ये कैसी खुशी है जिसके बारे में ये ही नहीं मालूम कि क्यों है और कबतक है.
होठों पर मशीनी मुस्कुराहट से तो अच्छा था कि मुझपर एहसां जो ना करते तो ये एहसां होता. ये बात अब हल्दी राम और मोहम्मद असलम भी समझ चुका है कि अगर किसी दिन पाकिस्तान-भारत संबंधों का पेच सुलझा तो वो बीजेपी और उस पाकिस्तानी नेता के हाथों ही सुलझेगा, जिसकी पुष्टि फ़ौज करेगी.
ऐसा होता तो गदर मचता
लेकिन अगर इस वक्त भारत में कांग्रेस सरकार होती और करतारपुर की बात करती को हिंदू राष्ट्रवादी, देशद्रोह का वो झंडा फहराते कि तौबा ही भला.
और अगर भारत से आर्थिक संबंध बढ़ाने की बात इमरान खान के अलावा किसी और प्रधान के मुंह से निकलती तो एक बार फिर मोदी का जो यार है, गद्दार है - का गदर मच चुका होता.
हालांकि कोई वजह नहीं, मगर जाने क्यों मुझे अब भी उम्मीद है कि भारतीय चुनाव के बाद अगर मोदी दोबारा पद संभालते हैं तो हो सकता है वो इमरान खान के साथ संबंध सामान्य करके का एक बड़ा जुआ खेलने का सोचें.
दोनों देशों के आपसी संबंध जिस स्थित में है, ऐसे में अच्छा सोचने के सिवा कोई दूसरा रास्ता है भी तो नहीं.
इस मामले में मेरी सोच नवजोत सिंह सिद्धू के साथ है. हो सकता है कि ये सोच इस वक्त पागलपन लगे, मगर ये पागलपन उस पागलपन से बेहतर है जिसकी चपेट में इस वक्त भारत और पाकिस्तान हैं.
वैसे भी ये दुनिया पागलों ने ही बनाई है, ताकि सामान्य लोग इसमें एक दूसरे के साथ गुज़ारा कर सकें.