दूध की नदियों के देश में भारतीय रिश्ते का रसगुल्ला, ऐसी मिठास देखी नहीं
नई दिल्ली, 07 मई। डेनमार्क को दूध की नदियों का देश कहा जाता है। भारत रसगुल्लों का देश है। इस मेल की मिठास पूरी दुनिया ने देखी। डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब कोपेनहेगेन में मिले तो 'मैत्री मिष्ठान' को और भी सुस्वादु बना दिया। रिश्तों की ऐसी मिठास पहले कभी नहीं दिखी। दोस्ती और भरोसे की यह तस्वीर मंत्रमुग्ध कर देने वाली है।
दोनों देशों में नौ समझौते हुए जिनमें सबसे अहम पशुपालन, डेयरी और जलप्रबंधन है। भारत में सबसे अधिक दूध का उत्पादन होता है। लेकिन प्रति गाय दूध उत्पादन के मामले में डेनमार्क दुनिया का नम्बर एक देश है। अब दोनों देश मिल कर 'मिष्टी दोई' जमाएंगे।
रिश्ता : एक मीठा एहसास
वैश्विक शांति सूचकांक के अनुसार डेनमार्क दुनिया का दूसरा सबसे शांत देश है। जैसा देश वैसी नेता। डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन भी बेहद शांत, सौम्य और शिष्ट दिखीं। भारत पौराणिक काल से अपने अतिथियों के स्वागत के लिए विख्यात रहा है। यहां अतिथि को देवता का दर्जा प्राप्त है। फ्रेडरिक्शन जब पिछले साल भारत के दौरे पर आयीं थीं तब वे अपने स्वागत-सत्कार से अभिभूत हो गयीं थीं। जब तीन दिन पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोपेनहेगेन पहुंचे तो फ्रेडरिक्शन ने भारत के अतिथि सत्कार की महान परम्परा को अनुकरणीय बताया। उन्होंने कहा कि डेनमार्क के लोग भी भारत से स्वागत-सत्कार की यह परम्परा सीखना चाहते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र को दोस्त कहा। जब मेटे फ्रेडरिक्सन ने नरेन्द्र मोदी को डेनिस प्रधानमंत्री आवास की सैर करायी तो उनकी यह दोस्ती साफ तौर पर नुमाया हुई। फ्रेडरिक्सन 2019 में डेनमार्क की प्रधानमंत्री चुनी गयीं थीं। तब उनकी उम्र 41 साल थी। वे अपने देश की सबसे युवा प्रधानमंत्री हैं। उनके कार्यकाल में भारत-डेनमार्क संबंध पहले से ज्यादा मजबूत हुए हैं। भारत, रूस का मित्र है। रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत एक तरह से निरपेक्ष रहा है। जब कि डेनमार्क, नाटो का सदस्य है और उसने यूक्रेन की मदद की है। इस अंतरविरोध के बावजूद फ्रेडरिक्सन ने भारतीय प्रधानमंत्री का दिल खोल कर स्वागत किया। हालांकि फ्रेडरिक्सन ने यह जरूर कहा कि भारत को युद्ध रोकने के लिए पहल करनी चाहिए।
सौम्य लेकिन मजबूत महिला हैं फ्रेडरिक्सन
मेटे फ्रेडरिक्सन देखने में जितनी शांत और सौम्य हैं इरादों से उतनी ही अटल और मजबूत हैं। ग्रीनलैंड डेनमार्क का एक स्वायत्त क्षेत्र है। यह उत्तर अटलांटिक और आर्कटिक महासागर के बीच एक विशालकाय द्वीप है। ग्रीनलैंड का 85 फीसदी भाग बर्फ से ढका हुआ है जो फिलहाल जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रहा है। यहां की आबादी करीब 58 हजार है। तीन साल पहले जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे तब उन्होंने सामरिक उपयोग के लिए ग्रीनलैंड को खरीदना चाहा था। उन्होंने डेनमार्क की प्रधानमंत्री फ्रेडरिक्सन को प्रस्ताव दिया था कि वे ग्रीनलैंड के बेच दें। लेकिन फ्रेडरिक्सन ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था। ट्रंप डेनमार्क की यात्रा पर जाने वाले थे जिसमें वे इस विषय पर चर्चा करते। लेकिन फ्रेडरिक्सन ने साफ कह दिया के वे राष्ट्रपति ट्रंप का अपने देश में समुचित स्वागत करेंगी लेकिन ग्रीनलैंड के मसले पर कोई बात नहीं होगी। तब इस खीज में ट्रंप ने डेनमार्क की यात्रा रद्द कर दी थी।
दुनिया में भारत की बढ़ रही धाक
कोपेनहेगेन के बेला सेंटर में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रवासी भारतीयों से बात की तो वहां के लोगों का उत्साह देखने लायक था। डेनमार्क में रहने वाले भारतीय लोगों ने मराठी वेशभूषा में ढोल की थाप पर परम्परागत लोकनृत्य प्रस्तुत किया। यह देख कर प्रधानमंत्री मोदी खुद को नहीं रोक पाये। एक स्टैंड पर बड़ा सा ढोल रखा हुआ था। वे ढोल के पास गये और अन्य साजिंदों को देख कर ताल के मुताबिक ढोल बजाने लगे। डेनमार्क की प्रधानमंत्री वहीं खड़ी उन्हें देख रही थीं। कुछ दूर पर भारतीय समुदाय के लोग कतार में खड़े हो कर पीएम मोदी की तरफ निहार रहे थे। एक साधारण रस्सी के घेरा से उन्हें दूर रखा गया था। नरेन्द्र मोदी उनके पास गये। कुछ महिलाएं अपने बच्चों को गोद में लिये खड़ी थीं। उन्होंने अपने बच्चों का हाथ नरेन्द्र मोदी की तरफ आगे बढ़ाया। तब उन्होंने मुसकुरा कर बच्चों के हाथ छुए और दुलार किया। वैसे तो किसी देश की विदेश नीति में सैन्य और व्यापारिक हितों को अधिक महत्व दिया जाता है। लेकिन नरेन्द्र मोदी, भारतीय विदेश नीति में सांस्कृतिक हित को भी बढ़ावा दे रहे हैं। वे विदेशों में रहने वाले भारतीयों को किसी चुम्बक की तरह खींच रहे हैं। डेनमार्क हो, जर्मनी हो या अमेरिका, भारतीय मूल के लोग अपने तकनीकी ज्ञान का परचम फहराये हुए हैं। डेनमार्क के विकास में भी भारतवंशियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। दुनिया में अब भारत की महत्ता बढ़ गयी है। नरेन्द्र मोदी को दुनिया में सबसे लोकप्रिय नेता माना जाता है। यहां तक कि अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडेन भी उनसे पीछे हैं। इससे दुनिया में भारत की धाक बढ़ रही है।
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