ध्रुवीय भालू पर संकट, कनाडा के इस क्षेत्र में तेजी से घट गई संख्या, विलुप्त होने की हुई भविष्यवाणी
कनाडा में आर्कटिक सागर से लगे वेस्टर्न हडसन बे इलाके में ध्रुवीय भालुओं की संख्या बहुत तेजी से घट गई है। वहां मादा और नवजात ध्रुवीय भालू की मृत्यु दर बढ़ गयी है और व्यस्कों पर भी संकट छाया है।
ध्रुवीय भालू के इस सदी के अंत तक विलुप्त होने की भविष्यवाणी पहले ही की गई है। इस बीच कनाडा में एक शोध हुआ है, जिससे पता चला है कि सिर्फ पांच वर्षो में उनकी संख्या अप्रत्याशित रूप से कम हो गई है। ध्रुवीय भालू की संख्या घटना आखिरकार इंसानों को भी बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। सवाल है कि ध्रुवीय भालू के साथ क्या हो रहा है? वह इतनी तेजी से क्यों मरते जा रहे हैं ? उनके बच्चों का जिंदा बच पाना क्यों मुश्किल हो गया है? मादाओं पर ज्यादा संकट क्यों है ? और इनकी आबादी से मानवीय जीवन का क्या रिश्ता है ? आइए इन सवालों की जवाब तलाशते हैं।
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कनाडा के वेस्टर्न हडसन बे में तेजी से कम हुए ध्रुवीय भालू
आर्कटिक सागर से सटे कनाडा के वेस्टर्न हडसन बे इलाके में ध्रुवीय भालू बहुत ही भयानक गति से मरने लगे हैं। एसोसिएट प्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस भात की भनक एक ताजा सरकारी सर्वे में मिली है। सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि ध्रुवीय भालू पर आया यह संकट सबसे ज्यादा मादाओं और ध्रुवीय भालू के बच्चों पर कहर बरपा रहा है। हडसन बे कनाडा का एक आंतरिक समुद्री इलाका है। जिस इलाके में ध्रुवीय भालू की संख्या तेजी से घट रही है, वहीं चर्चिल जैसे क्षेत्र भी हैं, जिसे 'दुनिया की ध्रुवीय भालू की राजधानी' के रूप में जाना जाता है।
शोध में पहले ही जताई जा चुकी ध्रुवीय भालू के विलुप्त होने की आशंका
रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में कुछ शोधकर्ताओं ने वेस्टर्न हडसन बे में ध्रुवीय भालुओं की जो गिनती की, तब वहां 618 ऐसे भालू ही बचे हुए थे। जबकि, 2016 में जब इससे पहले ऐसा सर्वे किया गया था, तब वहां पर भालुओं की संख्या 842 थी। शोधकर्ताओं के मुताबिक 1980 के दशक के बाद से वेस्टर्न हडसन बे में ध्रुवीय भालुओं की संख्या में लगभग 50% की गिरावट आई है। यह सर्वे कई रिपोर्ट और रिसर्च की एक अगली कड़ी मात्र है, जिसने जलवायु परिवर्तन की वजह से ध्रुवीय भालू पर छाए संकट को उजाकर किया है। 2020 में नेचर क्लाइमेट चेंज में एक शोध प्रकाशित हुआ था, जिसके मुताबिक इस सदी के अंत में ध्रुवीय भालू विलुप्त हो जाएंगे।
जलवायु परिवर्तन ध्रुवीय भालू को कैसे प्रभावित कर रहा है ?
आर्कटिक सागर का बर्फ ध्रुवीय भालू के लिए जीवन दायिनी है। क्योंकि, उन्हें यहीं पर सील मिलती हैं, जो उनका मुख्य भोजन स्रोत है। वह यात्रा के लिए भी इसी का इस्तेमाल करते हैं, यहीं पर वह मेटिंग भी करते हैं और आराम भी फरमाते हैं। लेकिन, ग्लोबल वार्मिंग के चलते गर्मियों में बर्फ जल्दी ही टूट जाते हैं और जाड़े में बर्फ बनने में देरी हो जाती है। इस वजह से ध्रुवीय भालू को शिकार के लिए बहुत ही कम समय मिल पाता है और उन्हें लंबे समय तक भूखा रहना पड़ता और शिकार की तलाश में बहुत ज्यादा भाग कर एनर्जी जाया करनी पड़ती है।
ध्रुवीय भालू की संख्या क्यों घट रही है ?
जलवायु विज्ञान पर यूके स्थित एक वेबसाइट कार्बन ब्रिफ में हाल में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भोजन की कमी के चलते ध्रुवीय भालू की सेहत में गिरावट आ रही है, व्यस्क भालू का औसत वजन कम हो रहा। भालुओं के बच्चों की ज्यादा मृत्यु दर के लिए इसे बहुत बड़ा जिम्मेदार माना गया है। 2020 में आए एक और शोध में बताया गया था कि तापमान बढ़ने और बर्फ की कमी के चलते मादा भालू कम वजन के बच्चों को जन्म देती हैं। यही नहीं मादा भालू बच्चों को जन्म देने और उनकी रक्षा के लिए जो मांद बनाती हैं, ज्यादा तापमान के चलते उनके भी ढहने का खतरा बढ़ जाता है।
ध्रुवीय भालू का क्या महत्त्व है ?
ध्रुवीय भालू आर्कटिक क्षेत्र के सबसे महत्वपूर्ण परभक्षी हैं। वहां की जैविक आबादी को संतुलित रखने में इनकी बहुत ही बड़ी भूमिका है। वह जो शिकार करते हैं, उनके भरोसे आर्कटिक लोमड़ियां और आर्कटिक पक्षियां रहती हैं, जो बचे-खुचे अवशेषों को साफ करते हैं। यदि ध्रुवीय भालू सील जैसे जानवरों का शिकार नहीं कर पाएंगे, तो पूरा भोजन चक्र बिगड़ सकता है और वहां का इकोसिस्टम तहस-नहस हो सकता है।
ध्रुवीय भालू से इंसानी रिश्ता ?
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि जब ध्रुवीय भालू को भोजन के लीए सील नहीं मिलेंगी तो वह जिंदा रहने के लिए आर्कटिक क्षेत्र के दूसरे जीवों का शिकार शुरू कर देंगे। इससे आर्कटिक लोमड़ियां और वहां के दरियाई घोड़ों जैसी प्रजातियां खतरे में पड़ सकती हैं। दूसरी तरफ सील की जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हो जाने की भी आशंका है। इससे क्रस्टैशन और मछलियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ सकता है, जो कि ना सिर्फ स्थानीय इंसानों का मुख्य भोजन है, बल्कि दूसरे आर्कटिक वन्य जीवों पर भी संकट मंडराना शुरू हो सकता है। (तस्वीरें- सांकेतिक)