Nomura ने भारत के ग्रोथ रेट का अनुमान घटाया, निर्यात में भारी नुकसान, आर्थिक मंदी में फंसेगा देश?
नोमुरा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, कोरोना महामारी से ऊबरकर भारत फिर से आर्थिक विकास के रास्ते पर लौट रहा है और भारतीय अर्थव्यवस्था एक बार फिर से महामारी के पहले की स्थिति में पहुंच रही है।
टोक्यो, जुलाई 13: दुनियाभर में भारी महंगाई और आर्थिक मंदी की आहट के बीच जापानी रेटिंग एजेंसी नोमुरा ने भारत का ग्रोथ रेट भी घटा दिया है, जिसके बाद सवाल उठ रहे हैं, कि क्या दुनिया के कई देशों के साथ भारत भी आर्थिक मंदी में फंस सकता है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, मुद्रास्फीति के माहौल में दुनिया भर में मंदी की चिंताओं को देखते हुए, नोमुरा के विश्लेषकों ने भारत के 2023 के विकास दर के अनुमान को घटाकर 4.7% कर दिया है, जो भारत के लिहाज से बड़ा झटका है।
भारत का अनुमानित विकास दर घटाया
नोमुरा के विश्लेषकों ने भारत के विकास दर के अनुमान को 5.4% से घटाकर 4.7% कर दिया है और नोमुरा ने अनुमान लगाया है, कि अगले साल भारत के विकास की दर धीमी रहेगी। रेटिंग एजेंसी नोमुरा ने जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें कहा गया है कि, "उच्च मुद्रास्फीति, सख्त मौद्रिक नीति ,बिजली की कमी और वैश्विक विकास मंदी ने मध्यम अवधि के हेडविंड को जन्म दिया है। नतीजतन, हमने अपने 2023 जीडीपी विकास अनुमान को 5.4% से घटाकर 4.7% कर दिया।" अरूदीप नंदी और सोनल वर्मा इस रिपोर्ट के सह लेखके हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, नोमुरा ने ये अनुमान विश्व बाजार और कई देशों में आई आर्थिक मंदी और अलग अलग देशों के सेंट्र्ल बैंकों के द्वारा ब्याज दरों में किए गये इजाफे को ध्यान में रखकर लगाया है और भारत के विकास दर की अनुमानित रफ्तार को कम करने आका है। आपको बता दें कि, इस वक्त वैश्विक अस्थिरता की वजह से दुनिया के कई देश आर्थिक मंदी और आर्थिक सुस्ती का सामना कर रहे हैं और कई देशों के आर्थिक मंदी में जाने की आशंका है।
विकास में हो रहा है सुधार
नोमुरा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, कोरोना महामारी से ऊबरकर भारत फिर से आर्थिक विकास के रास्ते पर लौट रहा है और भारतीय अर्थव्यवस्था एक बार फिर से महामारी के पहले की स्थिति में पहुंच रही है, क्योंकि भारत में एक बार फिर से खपत, निवेश और उद्योग बढ़ रहे हैं। नोमुरा ने FY23 के लिए, वे GDP वृद्धि 7.0% और FY24 के लिए 5.5% पर रखा है। हालांकि, नोमुरा ने कहा है कि, महंगाई अभी भी भारत के लिए एक चिंता का सबब बना हुआ है, लेकिन धीरे धीरे उसमें भी कमी आ रही है और मई में वार्षिक आधार पर सीपीआई मुद्रास्फीति अप्रैल में 7.8% से घटकर 7.0% हो गई, जबकि कोर सीपीआई मुद्रास्फीति 7.1% से घटकर 5.9% हो गई। यह नरमी अनुकूल आधार, ईंधन शुल्क में कटौती और बुलियन की कम कीमतों से प्रेरित थी।
आयात निर्यात में परेशानी
नोमुरा ने अपनी रिपोर्ट में भारत को लेकर कई अनुमान लगाए हैं। नोमुरा के एशिया हेड (जापान छोड़कर) और चीफ इकोनॉमिस्ट सोनल वर्मा ने अरूदीप मंदी के साथ लिखे नोट में भारत को लेकर अनुमान लगाया है कि, 'भारत में निर्यात के मोर्च पर परेशानी आ रही है, जबकि, भारत में आयात काफी ज्यादा बढ़ गया है। भारत में आयात-निर्यात के बीच मंथली ट्रे़ड डेफिसिट रिकॉर्ड ऊंचाई से ऊपर बढ़ा है'। नोमुरा ने कहा कि, "मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए सरकार के हालिया राजकोषीय कदमों के बावजूद, उच्च इनपुट लागत, सेवाओं को फिर से खोलने के दबाव, लंबित बिजली टैरिफ संशोधन और उच्च मुद्रास्फीति का जोखिम बना हुआ है'। इसके साथ ही नोमुरा ने साल 2022 में खुदरा महंगाई औसतन 6.9 प्रतिशत और 2023 में 5.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। नोमुरा ने कहा है कि, ये स्थिति भारत में कुछ समय के लिए अस्थिरता ला सकती है।
सेंट्रल बैंक्स ने बढ़ा दिए हैं ब्याज दर
ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, ये हफ्ता दुनियाभर के केन्द्रीय बैंकों के लिए काफी व्यस्त रहा है, क्योंकि दुनिया भर में एक दर्जन से अधिक देशों के केन्द्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर दी है, जिससे हंगरी में 200 अंक,पाकिस्तान में 125 आधार अंक और अन्य आठ देशों में 50 या 100 के बीच अंक बढ़े हैं। वॉल स्ट्रीट पर मंदी के आह्वान जोर से गाए जा रहे हैं, लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था बनाने वाले कई घरों और व्यवसायों के लिए मंदी पहले से ही आ चुकी है। छोटे व्यवसाय के मालिकों, उपभोक्ताओं और अन्य लोगों के बीच की चिंताओं को तथाकथित मिसरी इंडेक्स द्वारा चित्रित किया गया है, जो बेरोजगारी और मुद्रास्फीति दर को दिखाते हैं। कोरोना वायरस के हर लहर ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी से उतानरे का काम किया। वहीं, साल 2022 की दूसरी छमाही को लेकर भी डर है, कि आपूर्ति तनाव प्रभावित हो सकती है और मजदूर वर्ग गंभीर प्रभावित होंगे।
अमेरिका की क्या है स्थिति?
पिछले एक महीने में अमेरिका में करीब 4 लाख नये लोगों को नौकरी लगी है, लेकिन इसके बाद भी अमेरिका में महंगाई दर पिछले 50 सालों में सबसे ज्यादा है। 50 साल के निचले स्तर के करीब बेरोजगारी दर शायद अमेरिकी श्रम बाजार में अत्यधिक तंगी का पर्याप्त सबूत बन चुका है। लेकिन जून रोजगार रिपोर्ट और अन्य हालिया आंकड़ों से पता चलता है, कि असल में तनाव कितना ज्यादा गंभीर बना चुका है।
एशिया की क्या है स्थिति?
जापान के परिवारों ने मई में तीन महीने में पहली बार खर्च में कटौती की है, जो इस का संकेत देता है, कि आर्थिक सुधार पहले की तुलना में कमजोर साबित हो रहा है। वहीं, संकेत बढ़ रहे हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था 2020 के बाद पहली बार दूसरी तिमाही में सिकुड़ गई है, देश के आधिकारिक आंकड़ों को नए सिरे से जांच के दायरे में रखा गया है, क्योंकि विश्लेषकों का मानना है कि सरकार उस मंदी को स्वीकार नहीं कर रही है और शायद भी करेगी भी नही। वहीं, बात भारत की करें, तो वैश्विक संकट का भारत पर भी असर पड़ा है और तेल की कीमतों में इजाफा होने से भारतीय आयात में खर्च बढ़ा है। पहली बार ऐसा हुआ है, कि डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 79 के आंकड़े को पार कर गया है। वहीं, थाईलैंड की खुदरा मुद्रास्फीति जून में बढ़कर 14 साल के नए उच्च स्तर पर पहुंच गई है। यानि, कई एक्सपर्ट्स का कहना है, कि वैश्विक आर्थिक मंदी आ चुकी है और अब इससे लड़ने की जरूरत है।
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