मेंग वांग्ज़ो: वो महिला, जिसकी वजह से अमरीका-चीन में भारी तनाव
अगर ये सिलसिला जारी रहा तो ख्वावे अपनी ज़मीन खो सकती है. एशियाई देशों के उभरते बाज़ारों पर भी अमरीका का दबाव बढ़ रहा है. सोलोमन द्वीप और पापुआ न्यू गिनी इसके हालिया उदाहरण हैं. अगला नंबर भारत का भी हो सकता है.
तो इसका मतलब क्या? सबकुछ साफ़ है. इसमें कोई शक़ नहीं कि अमरीका का ये क़दम दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के रिश्तों को और ख़राब करेगा.
चीन की मशहूर कंपनी ख्वावे की सीफ़ओ (चीफ़ फ़ाइनेंशियल ऑफ़िसर) मेंग वांग्ज़ो को गिरफ़्तार कर लिया गया है. वांग्ज़ो पर ईरान पर लगाए गए अमरीकी प्रतिबन्धों की शर्तों के उल्लंघन का आरोप है.
वांग्ज़ो कंपनी के संस्थापक की बेटी भी हैं. ऐसे में उनकी गिरफ़्तारी की अहमियत और उससे मिले संकेतों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना मुश्किल है. इसमें कोई शक नहीं कि ख्वावे चीनी तकनीक के ताज में लगे हीरे जैसा है और वांग्ज़ो इसकी राजकुमारी.
एक दिसंबर को एक तरफ़ जहां अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप जी-20 समिट में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मिलकर ट्रेड वॉर में नर्मी लाने पर विचार कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ़ मेंग वांग्ज़ो को कनाडा में गिरफ़्तार किया जा रहा था. अब वांग्ज़ो को अमरीका में प्रत्यर्पित किए जाने की तैयारी हो रही है.
हालांकि अभी ये पूरी तरफ़ साफ़ नहीं है कि वांग्ज़ो पर असल में क्या आरोप हैं. लेकिन ईरान पर लगाए अमरीकी प्रतिबन्धों की शर्तों के उल्लंघन मामले में उनकी जांच चल रही है. ये सिर्फ़ एक महिला की गिरफ़्तारी या एक कंपनी का मामला नहीं है.
ये गिरफ़्तारी अमरीका और चीन के उन रिश्तों को बुरी तरह नुक़सान पहुंचा सकती है जो पहले ही काफ़ी नाज़ुक हैं. ख़ासकर, जब दोनों देशों के सम्बन्धों का लंबा और कटु इतिहास रहा है.
सिल्क रोड रिसर्च के विनेश मोटवानी के मुताबिक, "इन सबके लिए इससे ज़्यादा ख़राब वक़्त दूसरा नहीं हो सकता था. गिरफ़्तारी के बाद अब दोनों देशों के बीच हो रही बातचीत और मुश्किल हो जाएगी. हाल के दिनों में जी-20 समिट को लेकर बाज़ार वैसे ही आशंकित थे और अब हालात पहले से कहीं ज़्यादा आंशकापूर्ण हो जाएंगे."
अमरीका और चीन के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है और इसकी वजह सिर्फ़ ट्रेड वॉर नहीं है. लेकिन ब्यूनस आयर्स में चल रही जी-20 शिखरवार्ता के बीच ऐसा लगा कि कम से कम दोनों पक्षों ने बात करने का फ़ैसला तो किया है. ऐसा भी लग रहा था कि दोनों देश मिलकर 90 दिनों के भीतर किसी सहमति पर पहुंच सकते हैं.
सम्बन्धों में कड़वाहट और ट्रेड वॉर की केंद्र में टेक्नॉलजी से जुड़े मसले भी हैं. ब्यूनस आयर्स में ये तो साफ़ नहीं हुआ था कि मतभेद सुलझाने को लेकर चीन और अमरीका किस स्तर तक एकजुट हुए हैं. लेकिन ये सच है कि इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए कुछ सकारात्मक माना जा रहा था.
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ख्वावे पर लंबे वक़्त से नज़र रखने वाले पत्रकार ऐलियट ज़ैगमन का मानना है कि चीन इस गिरफ़्तारी को हमले और 'बंधक बनाए' जाने की तरह देखेगा.
ऐलियट के मुताबिक़, "चीन की छवि एक ऐसे देश की रही है जो समझौते करता ज़रूर है लेकिन उनका पालन नहीं करता. एक बात यह भी कही जा रही है कि इस गिरफ़्तारी से अमरीका को ट्रेड वॉर के मोर्चे पर चीन को घेरने का मौक़ा मिल सकता है.''
चीनी अख़बार ग्लोबल टाइम्स के चीनी और अंग्रेज़ी संस्करणों के संपादक हु शिजिन का मानना है कि अमरीका चीन पर हमला करने का एक तरीक़ा ढूंढ रहा है. 'ग्लोबल टाइम्स' को चीनी सरकार के मुखपत्र की तरह देखा जाता है.
हु शिज़िन कहते हैं, "ये ख्वावे को नीचा दिखाने की कोशिश है. इसीलिए अमरीका ने अपने सहयोगी देशों पर ख्वावे के उत्पाद इस्तेमाल न करने का दबाव डाला है. ये ख्वावे की प्रतिष्ठा नष्ट करने की कोशिश है."
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और ब्रिटेन समेत अमरीका के कई सहयोगी देशों ने कहा है कि ये ख्वावे के फ़ोन इस्तेमाल नहीं करेंगे. हालांकि ब्रिटेन में इसके एंटीना और दूसरे उत्पादों के इस्तेमाल पर रोक लगाने की अभी कोई योजना नहीं है.
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अभी तक कोई ऐसे कोई सुबूत नहीं मिले हैं जिनसे ये साबित हो सके कि ख्वावे ने कभी जासूसी की है या चीनी सरकार को लोगों का निजी डेटा दिया है.
इसके बावजूद मैंने जब भी कंपनी के बड़े अधिकारियों से बात की है वो इस बात को लेकर बेहद निराश और ग़ुस्सा नज़र आए हैं कि किस तरह अमरीकी सरकार और पश्चिमी मीडिया ख्वावे को ग़लत तरीके से पेश करता है .
कंपनी के अधिकारी इस बात से भी ख़फ़ा हैं कि उन्हें चीनी सरकार के स्वामित्व वाली ऐसी कंपनी है जो सरकार के इशारों पर चलती है.
कंपनी के सूत्रों का कहना है कि ख्वावे को एक आधुनिक और वैश्विक कंपनी के तौर पर देखा जाना चाहिए जो क़ानून का पालन करती है. कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि इसे लेकर अमरीका का रवैया ग़लत और बेबुनियाद है.
ख्वावे के संस्थापक और वांग्ज़ो के पिता रेन ज़ेन्फ़ेई चीनी सेना में अधिकारी रह चुके हैं. यही वजह है कि एलियट ज़ैगमन ने अपने एक हालिया लेख में लिखा था कि कंपनी का चाइनीज़ पीपल्स लिबरेशन आर्मी के सम्बन्ध चिंता और अष्पटता का एक कारण है.
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यही वजह है कि अमरीका जैसे देश ख्वावे जैसी कंपनियों को लेकर सशंकित रहते हैं. ये भी सच है कि अगर चीन की सरकार चाहे तो क़ानून के तहत प्राइवेट कंपनियों को उसे डेटा सौंपना पड़ सकता है.
हालांकि ख्वावे समेत चीन का बाकी कारोबारी समुदाय इस आशंका को ग़लत बताता है.
ग्लोबल टाइम्स के संपादक हु शिज़िन कहते हैं, "चीनी सरकार ऐसा नहीं करेगी. चीन अपनी ही कंपनियों का नुक़सान नहीं करेगा. अगर सरकार ऐसा करती भी है तो इससे देश का फ़ायदा कैसे होगा? और अगर कोई अधिकारी ऐसा कहता भी है तो ख्वावे के पास सरकार के अनुरोध को ठुकराने का अधिकार है."
वाग्ज़ो की गिरफ़्तारी को चीन के तमाम लोग उनके देश को आगे बढ़ने से रोकने की एक कोशिश के तौर पर देखेंगे. कंप्लीट इंटेलिजेंस के टोनी नैश कहते हैं कि अगर ख्वावे को दुनिया के बाकी देशों में कारोबार करने से इसी तरह रोका जाता रहा तो उभरते बाजारों में इसके 5जी पहुंचाने के इरादे को ख़तरा हो सकता है.
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नैश के मुताबिक, "अगर ख्वावे की जांच होती है तो ख्वावे और ZTE दोनों बैकफ़ुट पर आ सकते हैं. इसके उत्तरी अमरीका में दूसरे उत्पाद हावी हो जाएंगे."
अगर ये सिलसिला जारी रहा तो ख्वावे अपनी ज़मीन खो सकती है. एशियाई देशों के उभरते बाज़ारों पर भी अमरीका का दबाव बढ़ रहा है. सोलोमन द्वीप और पापुआ न्यू गिनी इसके हालिया उदाहरण हैं. अगला नंबर भारत का भी हो सकता है.
तो इसका मतलब क्या? सबकुछ साफ़ है. इसमें कोई शक़ नहीं कि अमरीका का ये क़दम दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के रिश्तों को और ख़राब करेगा.
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