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मसूद अजहर के आगे क्‍यों बेबस हैं चीन के शी जिनपिंग, 5 बड़ी वजहें

कई वजहें हैं जो चीन को जैश-ए-मोहम्‍मद के चीफ मौलाना मसूद अजहर के आगे उसे बैन कर देती है। बलूचिस्‍तान में चीन-पाकिस्‍तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) चीन की मजबूरी की सबसे बड़ी वजह है।

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बीजिंग। चीन ने एक बार फिर से जैश-ए-मोहम्‍मद के चीफ और भारत में कई आतंकी हमलों के मास्‍टरमाइंड मौलाना मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने की कोशिशों में पेंच पैदा कर दिया है। इस बार चीन ने अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन की ओर से मसूद अजहर को बैन करने वाले प्रस्‍ताव में रोड़ा अटकाया है।

पिछले वर्ष अप्रैल से मसूद अजहर का समर्थन

चीन के शिनजियांग प्रांत के उयघूर में पिछले कुछ माह से आतंकवादियों की गतिविधियां जारी हैं। ऐसे में जब मसूद अजहर के प्रस्‍ताव पर चीन ने फिर से मुश्किलें पैदा कीं तो फिर से भारत को हैरानी नहीं हुईं। चीन भी इस बात से वाकिफ है उसका अड़‍ियल रवैया उसकी साख के लिए संकट बन सकता है लेकिन फिर भी चीन अपने हठी रवैये से पीछे हटने को तैयार ही नहीं है। मसूद अजहर पर पिछले वर्ष भारत ने सबसे पहले यूनाइटेड नेशंस (यूएन) में प्रस्‍ताव दिया था और उसके बाद से लेकर दिसंबर 2016 तक चीन की ओर से इसका विरोध जारी रहा। चीन के रुख की आलोचना भले ही हो लेकिन यह भी सच है कि जैश चीफ के एशिया की आर्थिक महाशक्ति कमजोर है, या यों कहें कि बेबस और मजबूर है। एक नजर डालिए उन वजहों पर जो आपको बताएंगी जैश चीफ के आगे चीन क्‍यों मजबूर है। यह भी पढ़ें- मसूद अजहर पर बैन के लिए ट्रंप के एक्‍शन मोड में आने की वे 6 वजहें

बलूचिस्‍तान और चीन के प्रोजेक्‍ट

बलूचिस्‍तान और चीन के प्रोजेक्‍ट

चीन ने पाकिस्‍तान में वन बेल्‍ट वन रोड प्‍लान के तहत 51 बिलियन डॉलर चीन-पाकिस्‍तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के जरिए इनवेस्‍ट करने का वादा किया है। इकोनॉमिक कॉरिडोर में चल रहे ये प्रोजेक्‍ट्स पाकिस्‍तान के ज्‍यादातर हिस्‍सों में फैले हैं। इन प्रोजेक्‍ट्स के जरिए चीन का शिनजियांग प्रांत अरब सागर में स्थित ग्‍वॉदर पोर्ट से जुड़ेगा। यह पोर्ट चीन के लिए बहुत जरूरी है क्‍योंकि यहां से वह साउथ चाइना सी के जरिए अफ्रीका और वेस्‍ट एशिया तक अपनी पकड़ बना पाएगा। सभी बड़े प्रोजेक्‍ट्स बलूचिस्‍तान में चल रहे जो पाकिस्‍तान का सबसे पिछड़ा इलाका है और जहां पर पिछले कई दशकों से आतंकवाद ने अपनी जड़ें जमा रखी है। मसूद अजहर पर बैन की मंजूरी का मतलब चीन के लिए मुसीबतों का दोगुना होना होगा।

भारत को नीचा दिखाना

भारत को नीचा दिखाना

चीन और पाकिस्‍तान की दोस्‍ती जगजाहिर है और चीन अपने इस दोस्‍त को हर हाल में खुश रखना चा‍हता है। चीन, भारत को अपने प्रतिद्वंदी के तौर पर देखता है। भारत को रोकने के लिए चीन उसे किसी न किसी तरह की चुनौती या फिर मुश्किल में फंसाकर रखना चाहता है। चीन यह भी जानता है कि अगर पाक के भारत के शांति प्रयास सफल हुए या फिर उस पर दूसरे देशों की ओर से कोई कार्रवाई हुई तो फिर भारत के लिए दूसरे क्षेत्रों में अपना ध्‍यान लगाना काफी आसान हो जाएगा। चीन ऐसा हरगिज नहीं होने देना चाहता है।

 पाकिस्‍तान का समर्थन चीन को

पाकिस्‍तान का समर्थन चीन को

चीन में मौजूद कुछ ग्रुप जैसे ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्‍लामिक को-ऑपरेशन (ओआईसी) और दूसरे आंदोलनों जैसे नॉन-अलाइंड मूवमेंट का समर्थन करता है। इन दोनों ही जगहों पर चीन का प्रतिनिधित्‍व जीरो है और यह एक और वजह हो सकती है जो चीन को मसूद अजहर के मुद्दे पर पाक का समर्थन करने के लिए मजबूर कर देती है। ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्‍लामिक को-ऑपरेशन (ओआईसी) की ओर से जब-जब चीन के मुस्लिम प्रांत उग्‍यूइर में कार्रवाई करने की आलोचना की गई है, पाक ने चीन की समर्थन किया है। इसके अलावा नॉन-अलाइंड मूवमेंट में चीन के खिलाफ कड़े शब्‍दों के प्रयोग का विरोध किया है। यह मूवमेंट साउथ चाइना सी से जुड़ा और चीन इस पर अपना दावा करता है।

अमेरिका के साथ भारत की करीबियों से चिढ़ता चीन

अमेरिका के साथ भारत की करीबियों से चिढ़ता चीन

भारत और अमेरिका के बीच संबंध किस तरह के हैं ये बताने की जरूरत किसी को नहीं है। इस बात से चीन को काफी परेशानी है और चीन इसे एक चुनौती के तौर पर देखता है। भारत और अमेरिका के रिश्‍यों में बीच वर्ष 2008 में बड़ा बदलाव आया जब दोनों देशों के बीच सिविल न्‍यूक्लियर डील अपने अंजाम तक पहुंची। चीन समझ गया कि अमेरिका ने उसका जवाब देने के लिए ही भारत के साथ इस डील को मंजूरी दी है। चीन ने अपनी परेशानी को दूर करने के लिए मसूद अजहर का सहारा लिया। सिर्फ इतना ही नहीं उसने न्‍यूक्लियर सप्‍लायर ग्रुप यानी एनएसजी में भी भारत की एंट्री का विरोध करना शुरू किया। विशेषज्ञों के मुताबिक यह भी चीन की ओर से ताकत का प्रदर्शन ही है।

दलाई लामा को भारत का समर्थन

दलाई लामा को भारत का समर्थन

दलाई लामा को समर्थन देकर भारत ने चीन की वन चाइना पॉलिसी को मानने से इंकार कर दिया है। दिसंबर में तिब्बितयों के 14वें धर्मगुरु दलाई लामा नोबेल पुरस्‍कार विजेता कैलाश सत्‍यार्थी के चिल्‍ड्रंस फाउंडेशन के कार्यक्रम में शामिल होने राष्‍ट्रपति भवन गए थे। उन्‍होंने राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात भी की। चीन को इस पर काफी मिर्ची लगी थी। दलाई लामा मार्च 2017 में अरुणाचल प्रदेश जाएंगे। चीन के तिब्‍बत पर कब्‍जे के बाद से दलाई लामा वहां से निर्वासित हैं। भारत में वह धर्मशाला में रहते हैं। चीन, अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्‍सा बताता है इसके चलते वह वहां के यात्रियों को भी स्‍टेपल वीजा देता है। चीन, दलाई लामा को अलगाववादी मानता है और यह एक अहम वजह है जो चीन को मसूद अजहर के लिए मजबूर कर देती है।

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English summary
China has again put a technical hold on the proposal of banning Jaish chief Maulana Masood Azhar, this time brought by US in UN.
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