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फ्रांस में आज चलाई जाएगी पृथ्वी की महामशीन, निकलेगी अथाह ऊर्जा, ब्रह्मांड के खुलेंगे राज, भारत से है रिश्ता

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर एक विशाल, जटिल मशीन है जिसे उन कणों का अध्ययन करने के लिए बनाया गया है, जो किसी भी चीज के निर्माण में सबसे पहला पार्टिकल होते हैं, जिसे बिल्डिंग ब्लॉक भी कहते हैं।

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पेरिस, जुलाई 07: दुनिया का सबसे शक्तिशाली पार्टिकल कोलाइडर, लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर मशीन, जिसे LHC भी कहा जाता है, उसे आज एक बार फिर से स्टार्ट किया जाएगा। हिग्स बोसॉन, जिसे गॉड पार्टिकल भी कहा जाता है, उसकी खोज के 10 सालों के बाद एक बार फिर से लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर मशीन को शुरू किया जाएगा, जिसपर पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों की निगाहें बनी हुई हैं। दुनिया के सबसे शक्तिशाली कहे जाने वाले इस मशीन के जरिए प्रोटोन को तोड़ा जाएगा, जिससे विशालकाय ऊर्जा निकलेगी।

ब्रह्मांड के खोज में मिलेगी मदद

ब्रह्मांड के खोज में मिलेगी मदद

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर मशीन को चलाने के पीछे सबसे बड़ी वजह ब्रह्मांड के रहस्य को समझना और ब्रह्मांड से जुड़े फिजिक्स का विश्लेषण करना है। वैज्ञानिक उम्मीज लगाए हुए हैं, कि इस मशीन के चलने के बाद जब प्रोटोन को तोड़ा जाएगा, तो ऊर्जा के विशालकाय भंडार का संचार होगा, जिससे हमें पता चल पाएगा, कि ये ब्रह्मांड कैसे काम करता है और ब्रह्मांड से जुड़े रहस्य क्या हैं? इस मशीन को चलाने के बाद वैज्ञानिक डेटा को रिकॉर्ड और विश्लेषण करेंगे और इस बात की पूरी उम्मीद है, कि इस मशीन के चलने के बाद वैज्ञानिकों हाथ जो जानकारी लगेगी, वो फिजिक्स की दुनिया के लिए बिल्कुल नई होगी और फिजिक्स के बने बनाए मॉडल्स से अलग होंगे, जो बताता है कि, चार मौलिक बलों द्वारा शासित पदार्थ के बुनियादी निर्माण खंड कैसे आपस में इटरेक्ट करते हैं।

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर मशीन क्या है?

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर मशीन क्या है?

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर एक विशाल, जटिल मशीन है जिसे उन कणों का अध्ययन करने के लिए बनाया गया है, जो किसी भी चीज के निर्माण में सबसे पहला पार्टिकल होते हैं, जिसे बिल्डिंग ब्लॉक भी कहते हैं। धरती से 100 मीटर नीचे एक 27 किलोमीटर लंबे ट्रैक सुरंग मे इस मशीन को स्टार्ट किया जाएगा। एक बार जब इस मशीन को स्टार्ट कर दिया जाएगा, तो फिर यह सुपरकंडक्टिंग इलेक्ट्रोमैग्नेट्स की एक रिंग के अंदर विपरीत दिशाओं में लगभग प्रकाश की गति से दो प्रोटॉनों को फायर करता है। सुपरकंडक्टिंग इलेक्ट्रोमैग्नेट्स द्वारा बनाया गया चुंबकीय क्षेत्र प्रोटॉन को एक संकरे बीम में रखता है और उन्हें रास्ते में आगे ले जाता है और बीम पाइप से यात्रा करने के बाद प्रोटोन पार्टिकल्स आपस में टकरा जाते हैं।

कैसे काम करता है लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर मशीन?

कैसे काम करता है लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर मशीन?

यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च के अनुसार, टक्कर से ठीक पहले, एक अन्य प्रकार के चुंबक का उपयोग कणों को एक साथ 'निचोड़ने' के लिए किया जाता है ताकि टकराव की संभावना बढ़ जाए। कण इतने छोटे हैं, कि उन्हें टकराने का कार्य 10 किमी की दूरी पर दो सुइयों को इतनी सटीकता से फायर करने जैसा है. कि वे आधे रास्ते में टकरा जाएं। यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च के बयान के मुताबिक, करीब चार सालों के अंतराल के बाद एक बार फिर से इस मशीन को शुरू किया जाएगा और इससे करीब 13.6 ट्रिलियन इलेक्ट्रोनवोल्ट की ऊर्जा निकलेगी। जिस जगह पर ये परीक्षण किया जाएगा, वो फ्रांस और स्विटजरलैंड की सीमा पर धरती से करीब 100 मीटर नीचे स्थित है।

दो प्रोटॉन के बीच प्रति सेकंड 1.6 अरब टक्कर

दो प्रोटॉन के बीच प्रति सेकंड 1.6 अरब टक्कर

ये मशीन जिस तरह से काम करती है, वो आश्चर्यजनक है और दिखाता है, कि इंसानों ने विज्ञान की दिशा में कितने महत्वपूर्ण काम किए हैं। जब इस मशीन को चलाया जाएगा, तो परीक्षण स्थल पर विश्व के टॉप 1000 से ज्यादा वैज्ञानिक मौजूद रहेंगे और इस परीक्षण का अध्ययन करेंगे। चूंकि, LHC के शक्तिशाली विद्युत चुम्बकों में बिजली के बोल्ट के बराबर धारा प्रवाहित होती है, इसलिए उन्हें ठंडा रखा जाना चाहिए। एलएचसी अपने महत्वपूर्ण घटकों को शून्य से 271.3 डिग्री सेल्सियस कम तापमान पर अल्ट्राकोल्ड रखने के लिए तरल हीलियम की वितरण प्रणाली का उपयोग करता है, जो इंटरस्टेलर स्पेस की तुलना में ठंडा है। इन आवश्यकताओं को देखते हुए, विशाल मशीन को गर्म या ठंडा करना आसान नहीं है। यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च ने बताया कि, उनका लक्ष्य एक सेकंड में प्रोटॉन और प्रोटॉन के बीच 1.6 अरब बार टक्कर करवाई जाए और इस दौरान जो ऊर्जा निकलेगी, उससे हिग्स बोसोन की जांच से ज्यादा जानकारी मिलेगी। आपको बता दें कि, इस मशीन ने जुलाई 2012 में गॉड पार्टिकल की खोज की थी।

अप्रैल में फिर से किया गया था स्टार्ट

अप्रैल में फिर से किया गया था स्टार्ट

रखरखाव और अपग्रेडेशन के लिए बंद होने के तीन साल बाद, इस मशीन को इस साल अप्रैल में फिर से एक्टिव कर दिया गया और एलएचसी का तीसरा रन होने वाला है। और इस बार जब ये मशीन स्टार्ट होगी , तो 13 टेरा इलेक्ट्रॉन वोल्ट के अभूतपूर्व ऊर्जा स्तरों पर चार साल के लिए चौबीसों घंटे काम करेगा और इस दौरान हजारों वैज्ञानिक इसको लेकर रिसर्च करेंगे। एएफपी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सर्न के एक्सेलेरेटर और प्रौद्योगिकी के प्रमुख माइक लैमोंट ने कहा कि, इस बार, टकराव की दर को बढ़ाने के लिए प्रोटॉन बीम को 10 माइक्रोन से कम तक संकुचित किया जाएगा, एक मानव बाल लगभग 70 माइक्रोन मोटा होता है। टीएलएएस एलएचसी में सबसे बड़ा सामान्य प्रयोजन कण डिटेक्टर प्रयोग है, कॉम्पैक्ट म्यूऑन सोलेनोइड (सीएमएस) प्रयोग इतिहास में सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोगों में से एक है, जिसमें एटलस के समान लक्ष्य हैं, लेकिन जो एक अलग चुंबक-प्रणाली डिजाइन का उपयोग करता है।

मशीन बनाने में कितना खर्च आया?

मशीन बनाने में कितना खर्च आया?

इस महामशीन को बनाने में वैज्ञानिकों को कुस 31 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़े हैं और इस मशीन को चलाने के पीछे का मकसद डार्क मैटर और ब्लैक होल को समझना है। आपको बता दें कि, ब्लैकहोल वो जगह होती है, जिसके पास कोई भी चीज आए, उसे वो अपने खींच लेती है, भले ही वो चीज रोशनी ही क्यों ना, इसीलिए ये ब्लैक होल कहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, इस मशीन को चलाने के लिए 1.98 केल्विन यानि माइनस 271 डिग्री सेल्सियस तापमान का इस्तेमाल किया जाएगा और आपको जानकर हैरानी होगी, कि इस जगह को बनान में फ्रांस को अपने विख्यात एफिल टावर जितना लोहे का इस्तेमाल करना पड़ा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस टक्कर के वक्त वैसी ही परिस्थितियां पैदा करने की कोशिश की जाएंगी, जिस तरह की परिस्थितियां आज से करीब 13.7 अरब साल पहले थी, जब बिग बैंग यूनिवर्स का निर्माण हुआ था। अगर वैज्ञानिक इसमें कामयाब हो जाते हैं, तो उन्हें बिग बैंग और हमारे ब्रह्मांड के निर्माण से जुड़े रहस्य को समझने का मौका मिलेगा।

गॉड पॉर्टिकल की खोज

गॉड पॉर्टिकल की खोज

आपको बता दें कि, आज से करीब दस साल पहले, 4 जुलाई, 2012 को, सर्न के वैज्ञानिकों ने एलएचसी के पहले रन के दौरान दुनिया को हिग्स बोसोन या 'गॉड पार्टिकल' की खोज की घोषणा की थी। इस खोज ने 'बल-वाहक' उप-परमाणु कण के लिए दशकों से चली आ रही खोज को समाप्त कर दिया, और हिग्स तंत्र के अस्तित्व को साबित कर दिया, एक सिद्धांत जो साठ के दशक के मध्य में सामने आया था। इसके कारण पीटर हिग्स और उनके सहयोगी फ्रांस्वा एंगलर्ट को 2013 में भौतिकी के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। माना जाता है कि हिग्स बोसोन और इससे संबंधित ऊर्जा क्षेत्र ने ब्रह्मांड के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। LHC का दूसरा रन (रन 2) 2015 में शुरू हुआ और 2018 तक चला। डेटा लेने के दूसरे सीज़न ने रन 1 की तुलना में पांच गुना अधिक डेटा का उत्पादन किया। तीसरे रन में रन 1 की तुलना में 20 गुना अधिक टक्कर देखने को मिलेगी।

वैज्ञानिकों ने कहा, नया फिजिक्स

वैज्ञानिकों ने कहा, नया फिजिक्स

हिग्स बोसोन की खोज के बाद, वैज्ञानिकों ने मानक मॉडल से परे देखने के लिए एक उपकरण के रूप में एकत्र किए गए डेटा का उपयोग करना शुरू कर दिया है, जो वर्तमान में ब्रह्मांड के सबसे प्राथमिक निर्माण खंडों और उनकी बातचीत का सबसे अच्छा सिद्धांत है। सर्न के वैज्ञानिकों का कहना है कि, वे नहीं जानते कि इस बार इस मशीन के चलने के बाद हमारे सामने क्या होगा, लेकिन वैज्ञानिकों को उम्मीद है, कि उन्हें "डार्क मैटर" की समझ को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी, जिससे फिजिक्स और ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ पूरी तरह से बदल सकती है।

भारत के साथ क्या है रिश्ता

भारत के साथ क्या है रिश्ता

आपको बता दें कि, इस मशीन के स्टार्ट होने का भारत भी इंतजार कर रहा है, क्योंकि इस मशीन को बनाने में भारत ने भी निवेश किया है। इसके साथ ही, इस मशीन और इससे जुड़े खोज से भारत के कई इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट और वैज्ञानिक शोध केन्द्र जुड़े हुए हैं। इनके साथ ही भारत का इस मिशन से एक और बड़ा कनेक्शन ये है, कि जिस गॉड पार्टिकल यानि हिग्स बोसोन की खोज इस मशीन ने आज से करीब 10 साल पहले की थी और ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ को पूरी तरह से बदल दिया, उस हिग्स बोसोन का नाम भारत के महान वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस और ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स के नाम पर रखा गया था। आपको बता दें कि, सत्येन्द्र नाथ बोस ने परमाणु की दुनिया में काफी महत्वपूर्ण काम किए हैं और सत्येन्द्र नाथ बोस ही वो वैज्ञानिक थे, जिन्होंने इस खोज के होने से कई साल पहले गॉड पार्टिकल होने की बात कही थी, जो बाद में रिसर्च में साबित हो गया था।

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English summary
The world's most powerful Large Hadron Collider machine will be run in France today, which will release immense amounts of energy.
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