चीन का Tianwen-1 मिशन इतना अहम क्यों है, जानिए
नई दिल्ली- बुधवार को चाइनीज स्पेस एजेंसी ने मंगल के लिए एक स्पेसक्राफ्ट रवाना किया है, जिससे एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर जोड़ा गया है। इस मिशन के बारे में विस्तार से जानें उससे पहले तियानवेन-1 का मतलब समझ लेना चाहिए। अगर मोटे तौर पर चाइनीज से हिंदी में इसका अनुवाद किया जाए तो इसका अर्थ निकलेगा- 'स्वर्ग से सवाल'। अब चीन जैसे नास्तिक साम्यवादी देश की चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को 'स्वर्ग' से क्या सवाल हो सकता है ये तो पता नहीं, लेकिन हमारे लिए इस मिशन के मकसद को समझने की दरकार जरूर है। क्योंकि, चीन क्या करता है, क्यों करता है यह अक्सर एक पहेली ही बनी रहती है।
चीन का तियानवेन-1 मिशन
इस जुलाई महीने के अंत में रेड प्लैनेट यानि मंगल ग्रह पृथ्वी के सबसे नजदीक होगा, लेकिन फिर भी इसकी दूरी धरती से करीब 5.8 करोड़ किलोमीटर होगी। लेकन, चीन का यह तियानवेन-1 मिशन इससे भी ज्यादा दूरी तय करके 2021 के अप्रैल-मई महीने में किसी समय मंगल की सतह पर लैंड करेगा। वैसे यह जान लेना भी जरूरी है कि मार्स मिशन अपनी नाकामियों के लिए भी कुख्यात रहा है और अब तक 50 फीसदी से ज्यादा ऐसे मिशन फेल हो चुके हैं। जानकारों की राय में तियानवेन-1 मिशन के लिए चुनौतियां कुछ ज्यादा ही हैं। क्योंकि, इसके तीन हिस्से हैं और मिशन की कामयाबी के लिए सभी को पूरी ही सटीकता से अपना काम करना है- मतलब ऑर्बिटिंग स्पेसक्राफ्ट, लैंडर और रोवर को। इस मिशन के चीफ साइंटिस्ट ने जर्नल नेचर एस्ट्रोनोमी को 13 जुलाई को जो थोड़ी सी जानकारी ये दी थी वो यह था कि 'तियानवेन-1 ऑर्बिट में जा रहा है, लैंड करेगा और उसमें से सबसे पहले रोवर को निकालने की कोशिश की जाएगी और ऑर्बिटर के जरिए उससे समन्वय बनाकर रखा जाएगा।'
चाइनीज मार्स मिशन का वैज्ञानिक मकसद
चीन को उम्मीद है कि उसके इस मिशन से वह 'संपूर्ण मंगल ग्रह का वैश्विक और व्यापक सर्वेक्षण' कर पाएगा, जबकि रोवर के जरिए वह मंगल की सतह से अपने वैज्ञानिकों हितों के लिए गहन तथ्य जुटा सकेगा। कुल मिलाकर उसके 5 खास वैज्ञानिक मकसद बताए जा रहे हैं। मसलन, मंगल ग्रह का भूगर्भीय नक्शा तैयार करना, मंगल ग्रह की मिट्टी की विशेषताओं का पता लगाना और उसकी सतह पर संभावित वॉटर-आइस की क्षमता का पड़ताल करना, मंगल की सतह जिस चीज से बनी है उसका विश्लेषण करना, मंगल की सतह पर मौजूद वातावरण और जलवायु की पड़ताल करना और उसके इलेक्ट्रोमैगनेटिक और ग्रैविटेशनल फिल्ड के बारे में जानकारी जुटाना।
मंगल के उत्तरी सतह पर उतारने की योजना
इस मिशन को पूरा करने के लिए चीन ने पूरी तैयारी की है। ऑर्बिटर में 7 उपकरण लगाए गए हैं। इसमें दो कैमरे, एक सतह के अंदर घुसने लायक रडार, स्पेक्ट्रोमीटर और एनालाइजर शामिल हैं। इनके अलावा 240 किलो वजनी रोवर में भी 6 उपकरण मौजूद हैं, जिनमें दो कैमरे, रडार और तीन डिटेक्टर लगाए गए हैं। जानकारी के मुताबिक इस मिशन को मंगल के उत्तरी हिस्से के यूटोपिया प्लानिटिया के आसपास उतारने की योजना है, जहां नासा ने 1970 में अपना विकिंग 2 मिशन उतारा था। यह मिशन मंगल के ऑर्बिट में पहुंचकर भी दो से तीन महीने तक उसी में ही चक्कर काटता रहेगा और अगले साल अप्रैल या मई में किसी भी वक्त उसकी सतह पर लैंड करेगा।
यूएई और अमेरिका ने भी की है मिशन भेजने की तैयारी
लगता है कि जुलाई-अगस्त का महीना मंगल मिशन के लिए बहुत ही व्यस्त रहने वाला है। चीन के तियानवेन-1 मिशन के बाद यूएई भी 'होप' नाम का अपना एक मिशन मंगल पर भेजने वाला है। इसका मकसद मंगल के वातावरण का विश्लेषण करना है कि ये इतना असामान्य क्यों है। यही नहीं नासा भी 30 जुलाई या उसके बाद नेक्स्ट जेनरेशन के रोवर भेजने की तैयारी कर चुका है, जो अपने साथ Ingenuity नाम का एक हेलीकॉप्टर भी ले जाएगा जो एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर पहुंचने वाला पृथ्वी का पहला वाहन होगा।
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