क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

इसराइल: चीन ने अमेरिका से पूछा, फ़लस्तीनी मुसलमानों पर ऐसी ख़ामोशी क्यों

चीन ने कहा, अमेरिका को सिर्फ़ शिनजियांग के मुसलमानों की चिंता होती है. फ़लस्तीनी मुसलमानों को लेकर वो खामोश है. जानिए, इसराइल और फ़लस्तीनियों के संघर्ष में चीन किस तरफ़ है.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
चीन
Getty Images
चीन

चीन ने कहा है कि ख़ुद को मानवाधिकारों का संरक्षक और 'मुसलमानों का शुभचिंतक' बताने वाले अमेरिका ने इसराइल के साथ टकराव में मारे जा रहे फ़लस्तीनियों (मुसलमानों) से आँखें फेर ली हैं.

फ़लस्तीनियों को किस तरह युद्ध और आपदा की स्थिति में धकेल दिया गया है, वो अमेरिका को दिखाई नहीं दे रहा.

चीन ने कहा है कि अमेरिका को सिर्फ़ शिनजियांग (चीन) के वीगर मुसलमानों की चिंता होती है. फ़लस्तीनी मुसलमानों को लेकर वो खामोश है.

दरअसल, शुक्रवार को चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआं चनयिंग से पूछा गया था कि इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की जो बैठक 14 मई को होनी थी, उसे अमेरिका द्वारा अड़चन डालने की वजह से 16 मई के लिए टाल दिया गया. अमेरिका ने ऐसा क्यों किया? ऐसी स्थिति में जब तनाव पहले ही बहुत ज़्यादा है, मीटिंग को कुछ और दिन के लिए टाल देने का मतलब और फ़लस्तीनी लोगों को ख़तरे में डाल देना है. इस बारे में चीन क्या सोचता है?

चीन
fmprc.gov.cn
चीन

इसके जवाब में हुआं चनयिंग ने कहा, "चीन इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष की गंभीरता को समझता है. हम स्थिति पर नज़र बनाये हुए हैं और लगातार बढ़ते तनाव को लेकर चिंतित हैं. हम मध्यस्थता की तमाम कोशिशें कर रहे हैं. हमने इसे लेकर दो आपातकालीन बैठकें बुलाईं ताकि हिंसक संघर्ष को रोका जा सके. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अधिकांश सदस्य देश भी चाहते हैं कि चीज़ों को आगे बढ़ने से रोका जाये, इससे पहले कि बात हाथ से निकल जाये. लेकिन अमेरिका इसके विपरीत है. उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को प्रेस वक्तव्य जारी करने से रोका. यानी अमेरिका एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भावना के ख़िलाफ़ खड़ा है. अमेरिका ऐसा क्यों कर रहा है? इस सवाल का जवाब हम भी जानना चाहते हैं. और शायद अमेरिका ही इसका सही जवाब दे सकता है."

इसके बाद हुआं चनयिंग ने कहा कि "अमेरिका दावा करता है कि उसे मुसलमानों के अधिकारों की बड़ी चिंता है. लेकिन उसे फ़लस्तीनी मुसलमान दिखाई नहीं देते. उनकी पीड़ा नहीं दिखाई देती. वो उनके मामले पर अपनी आँखें मूंद लेता है. बल्कि अमेरिका और यूके-जर्मनी जैसे उसके साथी देश शिनजियांग से जुड़े मुद्दे पर एक बेमतलब की बैठक करते हैं जो राजनीति से प्रेरित है. इसके पीछे उनकी क्या नीयत है? अमेरिका को यह पता होना चाहिए कि फ़लस्तीनी मुसलमानों की ज़िंदगियाँ भी उतनी ही क़ीमती हैं."

इस मामले में चीन की कोशिशों पर बात करते हुए हुआं ने कहा, "चीनी विदेश मंत्री इसी साल मार्च में मध्य-पूर्व के दौरे पर गये थे. वहाँ उन्होंने मध्य-पूर्व क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के लिए पाँच सूत्रीय योजना पेश की थी. जिनमें से एक योजना फ़लस्तीनियों के लिए न्याय और समानता के लिए थी. चीन का मानना है कि मौजूदा स्थिति को जल्द से जल्द शांत कराया जाना चाहिए. लोगों की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए. चीन चाहेगा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद हर वो कोशिश करे, जो अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए की जानी चाहिए."

इसराइल
EPA
इसराइल

इसराइल-फ़लस्तीनी विवाद पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की जो बैठक अब 16 मई को होने वाली है, उसका प्रस्ताव ट्यूनिस, नॉर्वे और चीन ने रखा था. चीनी विदेश मंत्रालय के अनुसार, इस बैठक में पूरी स्थिति पर चर्चा होगी.

बताया गया है कि पूर्वी यरुशलम से बनी टकराव की स्थिति पर चीन चर्चा चाहता है.

चीन ने आम जनता को निशाना बनाकर की जाने वाली हिंसक कार्रवाइयों की आलोचना की है. चीन ने कहा है कि लोगों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बड़ी ज़िम्मेदारी से दखल देना चाहिए.

चीन को उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस मामले पर जल्द ही कोई क़दम उठायेगी.

हफ़्तों के तनाव के बाद, पिछले शुक्रवार को इसराइली सेना और फ़लस्तीनियों के बीच पूर्वी-यरुशलम से हिंसक संघर्ष की शुरुआत हुई थी जो धीरे-धीरे अलग इलाक़ों तक फैल गया.

इसराइल
Reuters
इसराइल

सोमवार को गज़ा पर शासन करने वाले चरमपंथी संगठन हमास ने इसराइली सेना को यरुशलम की अल-अक़्शा मस्जिद से पीछे हटने की धमकी दी थी, जिसके बाद हमास ने इसराइली क्षेत्र पर रॉकेट दागे और इसके जवाब में इसराइली सेना ने फ़लस्तीनियों पर हवाई हमले किए.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की शांति की अपील के बावजूद, बीती पाँच रातों से दोनों पक्षों के बीच लड़ाई जारी है.

फ़लस्तीनी चिकित्सा अधिकारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि सोमवार से लेकर अब तक गज़ा में कम से कम 132 लोगों की मौत हो चुकी है जिनमें 32 बच्चे और 21 महिलाएं शामिल हैं. इनके अलावा लगभग एक हज़ार लोग घायल हो चुके हैं. वहीं इसराइल में संघर्ष की शुरुआत से लेकर अब तक 8 लोगों की मौत हुई है.

शनिवार को सऊदी अरब ने भी इसराइल की फिर से आलोचना की.

सऊदी अरब
Reuters
सऊदी अरब

सऊदी अरब के विदेश मंत्री ने कहा कि इसराइल द्वारा आम नागरिकों के ख़िलाफ़ की जा रही कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन है.

सऊदी अरब ने इसराइल से इस मुद्दे का संपूर्ण और वाजिब हल ढूंढने की अपील की है.

इसराइली सैनिकों और फ़लस्तीनियों के बीच जारी हिंसक संघर्ष अब गज़ा के बाद कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक के अधिकांश इलाक़ों तक भी फैल गया है.

वेस्ट बैंक के अलग-अलग हिस्सों में हुई हिंसा में कम से कम 10 फ़लस्तीनी मारे गये हैं जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए हैं.

इसराइली सेना इन इलाक़ों में आंसू गैस के गोलों और रबर की गोलियों का इस्तेमाल कर रही है. वहीं फ़लस्तीनियों ने कई जगहों पर पेट्रोल बम फेंके हैं.

वेस्ट बैंक के कुछ इलाक़ों में बहुत गंभीर संघर्ष होने की ख़बरें लगातार आ रही हैं, जिन्हें क्षेत्र में वर्षों में हुई 'सबसे ख़राब हिंसा' बताया जा रहा है.

इसराइल
Reuters
इसराइल

कैसे भड़की ताज़ा हिंसा

संघर्ष का ये सिलसिला यरुशलम में पिछले लगभग एक महीने से जारी अशांति के बाद शुरू हुआ है.

इसकी शुरुआत पूर्वी यरुशलम से फ़लस्तीनी परिवारों को निकालने की धमकी के बाद शुरू हुईं जिन्हें यहूदी अपनी ज़मीन बताते हैं और वहाँ बसना चाहते हैं. इस वजह से वहाँ अरब आबादी वाले इलाक़ों में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हो रही थीं.

शुक्रवार को पूर्वी यरुशलम स्थित अल-अक़्सा मस्जिद के पास प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच कई बार झड़प हुई.

अल-अक़्सा मस्जिद के पास पहले भी दोनों पक्षों के बीच झड़प होती रही है मगर पिछले शुक्रवार को हुई हिंसा 2017 के बाद से सबसे गंभीर थी.

अल अक़्सा मस्जिद को मुसलमान और यहूदी दोनों पवित्र स्थल मानते हैं.

इसराइल
EPA
इसराइल

क्या है यरूशलम और अल-अक़्सा मस्जिद का विवाद?

1967 के मध्य पूर्व युद्ध के बाद इसराइल ने पूर्वी यरुशलम को नियंत्रण में ले लिया था और वो पूरे शहर को अपनी राजधानी मानता है.

हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसका समर्थन नहीं करता. फ़लस्तीनी पूर्वी यरुशलम को भविष्य के एक आज़ाद मुल्क की राजधानी के तौर पर देखते हैं.

पिछले कुछ दिनों से इलाक़े में तनाव बढ़ा है. आरोप है कि ज़मीन के इस हिस्से पर हक़ जताने वाले यहूदी फलस्तीनियों को बेदख़ल करने की कोशिश कर रहे हैं जिसे लेकर विवाद है.

अक्तूबर 2016 में संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक शाखा यूनेस्को की कार्यकारी बोर्ड ने एक विवादित प्रस्ताव को पारित करते हुए कहा था कि यरुशलम में मौजूद ऐतिहासिक अल-अक़्सा मस्जिद पर यहूदियों का कोई दावा नहीं है.

यूनेस्को की कार्यकारी समिति ने यह प्रस्ताव पास किया था.

इस प्रस्ताव में कहा गया था कि अल-अक़्सा मस्जिद पर मुसलमानों का अधिकार है और यहूदियों से उसका कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं है.

जबकि यहूदी उसे टेंपल माउंट कहते रहे हैं और यहूदियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता रहा है.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
israel palestine conflict china asked America why such silence on Palestinian Muslims
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X