अमेरिका के बेचने से मना करने के बाद भारत ने कैसे बनाया ताकतवर स्टील्थ ड्रोन? चीन पर नजर
एशिया टाइम्स ने भारतीय रक्षा अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि, भारत ने अपनी वायुसेना की मारक क्षमता में इजाफा करने के लिए घातक प्रोग्राम को शुरू किया है, जिसके तहत इंडियन एयरफोर्स की स्ट्राइक कैपेबिलिटी में सुधार...
नई दिल्ली, जुलाई 05: भारत ने अपने घर में ही महाविनाशक ड्रोन तैयार कर लिया है और इस ड्रोन की चर्चा सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशी मीडिया में की जा रही है और विदेशी मीडिया दावा कर रहा है, कि भारत अपने इस विध्वंसक हथियार को कहीं और नहीं, बल्कि चीन से लगती सीमा पर तैनात करेगा। वहीं, विदेशी मीडिया ने ये भी दावा किया है, कि भारत का ये महाविनाशक हथियार मानव रहित विमानों के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को साबित करने में एक प्रमुख मील का पत्थर है।
भारत ने बनाया महाविनाशक ड्रोन
भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने एक जुलाई को घोषणा की है, कि कर्नाटक के चित्रदुर्ग में वैमानिकी परीक्षण रेंज में अपने ऑटोनॉमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। यानि, भारत ने अपने घर में स्वदेशी टेक्नोलॉजी से ड्रोन हथियार का निर्माण कर लिया है। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा कि, 'ये ड्रोन हथियार पूरी तरह से ऑटोनॉमस है और इसका पूरी तरह से सफल परीक्षण किया गया है जिसमें टेक-ऑफ, वेपॉइंट नेविगेशन और एक स्मूथ टचडाउन शामिल है'। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने आगे कहा कि, 'इस तरह की रणनीतिक रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है'।
स्टील्थ विंग फ्लाइंग टेस्टबेड
प्रसिद्ध अखबार एशिया टाइम्स ने लिखा है कि, मानव रहित विमान, जिसे स्टील्थ विंग फ्लाइंग टेस्टबेड या SWIFT के रूप में भी जाना जाता है, विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए अपने सशस्त्र बलों को स्वदेशी बनाने के भारत के प्रयास में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारतीय रक्षा मंत्रालय के अनुसार और रक्षा समाचार में रिपोर्ट के अनुसार, ड्रोन के एयरफ्रेम, अंडर कैरिज, फ्लाइट कंट्रोल और एवियोनिक्स सिस्टम सभी स्वदेशी रूप से बने हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का ये ड्रोन हथियार 3.96 मीटर लंबा, 4.8-मीटर पंखों के साथ और लगभग 1,043 किलोग्राम वजन का है। वहीं, अंतर्राष्ट्रीय रक्षा मामलों को कवर करने वाली वेबसाइट, डिफेंस न्यूज के मुताबिक, करीब 1 टन वजनी ये भारतीय ड्रोन एक रूसी NPO सैटर्न 36MT टर्बोफैन इंजन द्वारा संचालित है।
अभी लगा है रूसी इंजन
इस ड्रोन में फिलहाल रूसी इंजन लगा हुआ है, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक, DRDO के गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टाब्लिशमेंट (GTRE) द्वारा स्मॉल टर्बो फैन इंजन (STFE) रूसी निर्मित इंजन की जगह लेगा। डीआरडीओ ने अपनी टेक्नोलॉजी बुलेटिन में कहा कि, SWIFT घटक लड़ाकू ड्रोन का एक छोटा संस्करण है और इसका उद्देश्य स्वायत्त मोड में साइलेंट टेक्नोलॉजी और उच्च गति लैंडिंग का परीक्षण करना है। डीआरडीओ के एक अज्ञात वैज्ञानिक ने डिफेंस न्यूज में कहा कि, ड्रोन के पूर्ण उत्पादन के साथ आगे बढ़ने से पहले स्विफ्ट प्लेटफॉर्म के साथ दस और परीक्षण उड़ानों की आवश्यकता है। ये घातक ड्रोन, भारतीय नौसेना के लिए डीआरडीओ के वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (एडीई) द्वारा विकास के तहत डेक-लॉन्च संस्करण के साथ सटीक-निर्देशित युद्धपोतों को ध्वस्त करने में पूरी तरह से सक्षम होगा।
अमेरिका ने ड्रोन बेचने से किया था इनकार
आपको बता दें कि, साल 2017 में अमेरिका ने भारत को ड्रोन बेचने से इनकार कर दिया था। इंडियन डिफेंस रिसर्च विंग की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 में अमेरिका ने भारत को एवेंजर जेट-संचालित लड़ाकू ड्रोन बेचने से इनकार कर दिया था और उसके बाद ही भारत ने अपना स्टील्थ ड्रोन कार्यक्रम शुरू किया था। अमेरिका के इनकार करने के बाद भारत को कम रडार क्रॉस-सेक्शन वाले मानव रहित विमान के लिए अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए स्वदेशी समाधान तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ा। भारत द्वारा निर्मित इस स्वदेशी ड्रोन में काफी देर तक हवा में स्थिर रहने की क्षमता, खुफिया निगरानी करने की क्षमता होने के साथ साथ काफी तेज रफ्तार से हमला करने की क्षमता मौजूद है और इस ड्रोन के रिमोट के जरिए पिन-प्वाइंट निशाना लगाया जा सकता है। इस ड्रोन को हाईस्पीड के साथ सटीक स्ट्राइक के लिए तैयार किया गया है। साथ ही हिमालय के वातावरण में सटीकता से काम करे, इस लिहाज से इसे बनाया गया है।
भारत ने बनाया 'घातक प्रोग्राम'
एशिया टाइम्स ने भारतीय रक्षा अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि, भारत ने अपनी वायुसेना की मारक क्षमता में इजाफा करने के लिए घातक प्रोग्राम को शुरू किया है, जिसके तहत इंडियन एयरफोर्स की स्ट्राइक कैपेबिलिटी में सुधार करना और उच्च जोखिम वाले मिशनों में सैनिक किसी खतरे में ना पड़े और हमला भी सटीकता के साथ हो जाए, इसे ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इस प्रकार फ्लाइंग विंग डिजाइन वाला ड्रोन भारत की आवश्यकताओं के लिए काफी महत्वपूर्ण समाधान साबित हो सकता है। वहीं, रूसी रक्षा वेबसाइट 'टॉप वॉर' के अनुसार, भारत ने जिस ड्रोन का निर्माण किया है, उसमें फ्लाइंग विंग डिजाइन है, जो उसे काफी तेज रफ्तार से उड़ान भरने में मदद करेगा और ये ड्रोन हथियार काफी नीचे की उड़ान भरने में सक्षम है, लिहाजा रडार के लिए इसे पकड़ना काफी मुश्किल है। वहीं, इस ड्रोन की देखने की क्षमता भी काफी तेज है, जबकि इस ड्रोन की सबसे खास बात ये है, कि इसकी कीमत काफी कम है और इसके रखरखाव में भी काफी कम पैसे खर्च करने पड़ेंगे।
कुछ ही देशों के पास है ये टेक्नोलॉजी
रूसी वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, इतनी सारी मिश्रित विशेषताएं होने के बाद भी इस भारतीय ड्रोन में जर्मन हॉर्टन हो 229 प्रोटोटाइप फाइटर-बॉम्बर और यूएस बी 2 स्टील्थ बॉम्बर में फ्लाइंग विंग डिज़ाइन शामिल गिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत के अलावा कई सैन्य शक्तियों ने अपने फ्लाइंग विंग ड्रोन डिजाइन किए हैं, जिसमें अमेरिका अपने RQ-170 सेंटिनल, रूस ने अपने Su-70 ओखोटनिक B और चीन ने अपने Hongdu GJ-11 को संचालित किया है। एशिया टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत का ये विध्वंसक ड्रोन चीन के HQ-9/P जैसे दुर्जेय हवाई सुरक्षा को दरकिनार करने के लिए एक खतकनवाक जवाब हो सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का घातक ड्रोन यूएस RQ-180 स्टील्थ ड्रोन की तरह हो सकता है, जिसे फोर्ब्स ने नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन द्वारा डिजाइन किए गए एक मानव रहित स्टील्थ बॉम्बर के रूप में वर्णित किया है, जो भारी बचाव वाले हवाई क्षेत्र में लंबी दूरी के गहरे-प्रवेश मिशनों के लिए अमेरिकी वायु सेना की आवश्यकता को पूरा करता है।
पाकिस्तान को भी मिलेगा करारा जवाब
एशिया टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, पाकिस्तानी वायुसेना ने चीन से ड्रोन हथियार खरीदकर अपनी वायुसेना की मारक क्षमता में विकास किया है, लिहाजा अपनी वायु रक्षा के आधुनिकीकरण करने के लिए भारत को अपना स्टील्थ ड्रोन विकसित करने के लिए प्रेरित होना पड़ा। अक्टूबर 2021 में, जेन्स ने बताया कि भारत के 2019 बालाकोट हवाई हमलों के जवाब में पाकिस्तान ने चीन निर्मित HQ-9/P लंबी दूरी की वायु रक्षा प्रणाली खरीदी थी। हालांकि, चीन के इस ड्रोन में कई खामिया हैं। चीन के इस ड्रोन की सबसे बड़ी खामी ये है, कि ये सिर्फ सिंगल शॉट लगा सकता है और उसकी मारक क्षमता करीब 100 किलोमीटर होने की बात कही गई है, लेकिन क्रूज मिसाइलों के खिलाफ ये ड्रोन काफी कमजोर हो जाता है और क्रूज मिसाइलों को पता लगाने की इसकी क्षमता काफी कमजोर हो जाती है, वहीं मारक क्षमता घटकर सिर्फ 25 किलोमीटर रह जाती है। पाकिस्तानी वायु रक्षा प्रणालियों को हराने के अलावा, भारत का घातक ड्रोन हिमालय में चीन-भारत सीमा विवाद में समान भूमिका निभा सकता है। साल 2020 में, भारतीय समाचार आउटलेट द प्रिंट ने बताया कि चीन ने इस क्षेत्र में अपने वायु रक्षा नेटवर्क में अंतराल को बंद करने के लक्ष्य के साथ, चीन-भारत-नेपाल त्रि-सीमा क्षेत्र के अपनी तरफ एक सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल साइट का निर्माण किया था।