तालिबान का सत्ता पर क़ब्ज़ा बाइडन की सियासत पर कितना गहरा धब्बा?
अफ़ग़ानिस्तान में जो भी हो रहा है, उसके लिए एक तबका अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन को ज़िम्मेदार मान रहा है. घरेलू मोर्चे पर भी बाइडन आलोचना झेल रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान संकट से पहले तक बाइडन प्रशासन कई महत्वपूर्ण मामलों पर दुनिया का नेतृत्व करने की अपनी स्थिति को दोबारा हासिल करने में कामयाब होने का दावा कर रहा था.
बाइडन प्रशासन चीन के ख़िलाफ़ अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ मिलकर कामयाबी से मोर्चा बनाने की बातें कर रहा था, अर्थव्यवस्था में बेहतरी के संकेत दिखाए जा रहे थे और कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ टीकाकरण की मुहिम की तारीफ़ हो रही थी.
लेकिन अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने का निर्णय और इसकी 'लापरवाह वापसी की रणनीति' बाइडन प्रशासन के लिए पहली बड़ी संकट बनकर उभरी है और अमेरिका के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी का कारण बनी है.
राष्ट्रपति जो बाइडन और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, दोनों ही विदेशी मामलों के अनुभवी विशेषज्ञ माने जाते हैं और इसीलिए उनकी इस चूक पर विशेषज्ञ ज़्यादा हैरान हैं.
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क्या कह रहे हैं जानकार?
शिकागो यूनिवर्सिटी में 'पॉलिटिक्स एंड एडमिनिस्ट्रेशन' के प्रोफ़ेसर टॉम गिंसबर्ग कहते हैं, "ये वास्तव में योजना की एक बड़ी नाकामी है, हालाँकि मेरा मानना है कि तालिबान का सत्ता पर क़ब्ज़ा करना तया था, बाइडन सैनिकों की वापसी को लेकर इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकलने की योजना बनाने की सलाह का पालन भी नहीं किया."
प्रोफ़ेसर गिंसबर्ग अफ़गान पक्ष को भी दोषी ठहराते हैं, वो कहते हैं, "हालाँकि, अंततः कोई भी देश अफ़ग़ानिस्तान की तरह भ्रष्ट सरकार के साथ लंबे समय तक स्थिर नहीं रह सकता है, कुलीन वर्ग के भ्रष्टाचार की क़ीमत अब लाखों महिलाओं को चुकानी पड़ सकती है."
वॉशिंगटन में विदेशी मामलों के विशेषज्ञ माइकल हर्श कहते हैं, "एक ऐसे प्रशासन के लिए, जो आर्थिक सफलता के साथ आगे बढ़ रहा था और जलवायु और विदेश-नीति के दूसरे मुद्दों पर कुछ प्रगति का दावा कर रहा था, अफ़ग़ानिस्तान नीति की नाकामी बाइडन के लिए पहला बड़ा झटका है."
और शायद इसीलिए अमेरिका के बाहर और अंदर भी राष्ट्रपति बाइडन को भारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है, हालाँकि वे बार-बार अपने निर्णय को सही ठहरा रहे हैं.
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अमेरिका में राजनीतिक माहौल गर्म
अमेरिका में बहस इस बात पर अधिक है कि उनके इस फ़ैसले का सीधा प्रभाव अगले साल होने वाले कांग्रेस के लिए होने वाले चुनावों पर कितना पड़ेगा और इससे राष्ट्रपति बाइडन की सियासी विरासत को कितना भारी नुक़सान पहुँचेगा.
अमेरिका में सैन डिएगो यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अहमत कुरु के अनुसार फ़िलहाल देश में ये मुद्दा चर्चा में ज़रूर है, लेकिन बाइडन के इस फ़ैसले का असर कांग्रेस के चुनावों पर नहीं पड़ेगा.
वो कहते हैं, "अफ़ग़ानिस्तान से अचानक सैनिकों को वापस बुलाने के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के फ़ैसले की देश-विदेश में आलोचना हो रही है लेकिन मुझे नहीं लगता कि मिड-टर्म चुनावों पर इसका कोई बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा."
प्रोफ़ेसर कुरु की दलील है, "सबसे पहले, अमेरिकी समाज पूरी तरह से ध्रुवीकृत है. बाइडन और डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक इस पर अपना रवैया नहीं बदलेंगे. दूसरा, सार्वजनिक सर्वेक्षणों के अनुसार, अधिकांश अमेरिकियों ने अफ़ग़ानिस्तान में सैनिक मौजूदगी ख़त्म करने का समर्थन किया है. ये युद्ध बहुत महंगा था और पहले से ही मुख्य लक्ष्य (अल-क़ायदा का विनाश) हासिल किया जा चुका था. अंत में, अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी की ज़िम्मेदारी बाइडन पर नहीं डाली जा सकती, उनसे पहले बुश, ओबामा और ट्रंप राष्ट्रपति रह चुके हैं जिनके दौर में अहम फ़ैसले हुए थे."
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कितने अहम हैं चुनाव?
ये मध्यावधि चुनाव अमेरिका के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण होते हैं. अमेरिका में प्रतिनिधि सभा की सभी 435 सीटों और सीनेट की 200 सीटों में से एक-तिहाई सीटों के लिए हर दो साल पर चुनाव होते हैं. अगले चुनाव नवंबर 2022 में होने वाले हैं.
डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी दोनों की कोशिश होती है कि मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस के दोनों सदनों में बढ़त हासिल करना, जीत हासिल करना काफ़ी हद तक इस बात पर निर्भर है कि सत्ता में बैठे राष्ट्रपति की नीतियों से जनता कितनी संतुष्ट है. ज़ाहिर है, घरेलू मामलों का असर ज़्यादा होता है.
प्रोफ़ेसर माइकल हर्श कहते हैं, "अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका समर्थित सरकार का पतन इतनी तेज़ी से होगा इसकी कल्पना वॉशिंगटन या काबुल में किसी ने भी नहीं की थी. यह आश्चर्यजनक मोड़ है, और ये कांग्रेस के चुनाव से एक साल पहले बाइडन के ख़िलाफ़ बढ़ते रिपब्लिकन पार्टी के हमलों में एक और मुद्दा जोड़ देगा."
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लेकिन उनका ख़्याल ये भी है कि 2022 के मध्यावधि और 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के समय तक अफ़ग़ानिस्तान सुर्ख़ियों में शायद नहीं रहेगा, ख़ासकर अगर अमेरिका और उसके सहयोगी तालिबान की हरकतों को नियंत्रित में रखने में कामयाब रहे तो.
काबुल में बाइडन की चूक के बाद अमेरिका में सियासी बयानबाज़ी चरम पर है. कई पूर्व सैनिक जनरल, राजनीतिक विश्लेषक और पूर्व राजनयिक बाइडन की जमकर आलोचना कर रहे हैं. कुछ ने उनके फ़ैसले को सही भी कहा है. विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी के नेता बाइडन के फ़ैसले के ख़िलाफ़ रोज़ बयान दे रहे हैं.
रिपब्लिकन पार्टी के नेता और सीनेटर मार्को रूबियो ने एक ट्वीट में कहा, "जब बाइडन प्रशासन ने अपनी अफ़ग़ानिस्तान से निकलने की योजना की घोषणा की, तो इंटेल कमेटी में हम में से कई ने उन्हें बताया कि आगे क्या होगा, अब हम देख रहे हैं कि हमारी चेतावनी कितनी सच साबित हुई."
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फ़ैसला ट्रंप का या बाइडन का
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने भी बाइडन प्रशासन की जमकर आलोचना की है और बाइडन को अमेरिका के इतिहास में सबसे बड़ी ग़लती करने वाला राष्ट्रपति कहा है.
अमेरिकी जनता युद्ध का अंत चाहती थी, जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है कि अधिकांश अमेरिकी अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी का समर्थन करते हैं.
आम जनता इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में लंबी अमेरिकी जंग से हताश हो चुकी है. और ये राष्ट्रपति के लिए एक बड़ी इत्मीनान की बात होगी, लेकिन राष्ट्रपति बाइडन को काबुल से वापसी के तरीक़े को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है.
पहले तो उन्होंने अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लिया और फिर वापसी में मदद करने के लिए हज़ारों सैनिकों को दोबारा भेज दिया.
सबसे लंबी चली इस अमेरिकी जंग में, अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकेन के मुताबिक़, "एक खरब डॉलर ख़र्च हुए, 2,300 अमेरिकी मारे गए और अमेरिका ने अफ़ग़निस्तान में एक बड़ा निवेश किया." सोमवार को ब्लिंकन ने मीडिया से कहा, "इससे राष्ट्रपति ने निष्कर्ष निकाला कि इस युद्ध को समाप्त करने का समय आ गया है."
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विशेषज्ञों के अनुसार अब राष्ट्रपति की कोशिश ये होगी कि इस फ़ैसले को जनता के फ़ैसले की तरह से पेश किया जाए. सोमवार को राष्ट्रपति बाइडन ने ऐसी ही एक कोशिश की.
उन्होंने कहा कि वो अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध का नेतृत्व करने वाले लगातार चौथे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, और वो अब पाँचवें को ये ज़िम्म्मेदारी नहीं सौंपेंगे. "मैं ये दावा करके अमेरिकी जनता को गुमराह नहीं करूँगा कि अफ़ग़ानिस्तान में बस थोड़े और समय रह जाते तो सब कुछ बदल जाता."
राष्ट्रपति के मुताबिक़ उन्हें अफ़ग़ानिस्तान से निकलने का फ़ैसला पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से विरासत में मिला था, पिछले साल ट्रंप ने तालिबान के साथ सीधी बातचीत शुरू की थी जिसमें ये समझौता हुआ था कि अमेरिका अपनी सेना अफ़ग़ानिस्तान से इस साल मई तक वापस बुला लेगा.
रिपब्लिकन पार्टी की कोशिश ये है कि जनता की राय बाइडन के ख़िलाफ़ बनाई जाए. सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के नेता मिच मैककोनेल ने एक ट्वीट में कहा, "हम अफ़ग़ाननिस्तान में जो देख रहे हैं वो एक निरंतर आपदा है, बाइडन प्रशासन की वहाँ से वापसी का फ़ैसला अमेरिका की प्रतिष्ठा पर एक दाग़ है "
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अमेरिका की शर्मनाक हार का इतिहास
अमेरिका में इन दिनों इतिहास के उन पन्नों को खोला जा रहा है, जो कई देशों में नाकाम अमेरिकी सैनिक कार्रवाइयों की दास्तानों से भरे पड़े हैं. इसमें कोरिया, वियतनाम, इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिक कार्रवाइयों में विफलता की ख़ास तौर से चर्चा की जा रही है.
सियासी विश्लेषक काबुल एयरपोर्ट से अमेरिकियों की आपातकालीन स्थिति में निकासी को 1975 के उस संकट से जोड़ रहे हैं जब वियतनाम युद्ध के अंत में सैगोन में अमेरिकी दूतावास की छत से लोगों को सैनिक हेलिकॉप्टर की मदद से निकाला गया था.
उस समय बाइडन एक जूनियर सीनेटर थे और उन्हें क़रीब से जानने वाले कहते हैं कि वो उस वक़्त से ही विदेशों में अमेरीकी युद्ध और सैनिक कार्रवाइयों के पक्ष में नहीं थे.
राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव की मुहिम के दौरान उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना को वापस बुलाने का वादा किया था.
आज से 20 साल पहले 11 सितंबर 2001 के दिन अमेरिका पर अल क़ायदा ने हमले किए थे. हमलों के लिए ज़िम्मेदार माने जाने वाले ओसामा बिन लादेन को तालिबान ने पनाह दी थी. जब तालिबान ने ओसामा को अमेरिका को सौंपने से इनकार कर दिया, तो तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने हमले के आदेश दिए.
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इसके बाद अमेरिका ने सद्दाम हुसैन पर जन संहार के हथियार जमा करने के इल्ज़ाम में इराक़ पर हमला किया, दोनों हमले राष्ट्रपत्ति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के नेतृत्व में किए गए, इन दोनों युद्धों को कैसे समाप्त किया जाए , ये बाद के अमेरिकी राष्ट्रपतियों के लिए एक चुनौती रही है.
बुश ने बाद में अफ़ग़ानिस्तान को नज़रअंदाज़ किया, इसके बजाय उन्होंने इराक़ पर चढ़ाई के बाद वहाँ शासन परिवर्तन और फिर राष्ट्र-निर्माण के एक निरर्थक और महंगे प्रयास की ओर रुख़ किया.
2008 में बराक ओबामा राष्ट्रपति बने. उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान पर फिर से ध्यान केंद्रित किया और उनका मुख्य मिशन था बिन लादेन को ढूँढना और मारना, इसमें उन्हें कामयाबी मिली. इसके बाद उन्होंने अपने सैनिकों वापस बुलाने का काम शुरू किया, लेकिन वे ये काम पूरी तरह से कभी नहीं कर पाए.
इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने. उन्होंने तालिबान के साथ एक समझौता करके वापसी की नींव रखी. अब राष्ट्रपति बाइडन ने इसे पूरा किया.
विश्लेषक कहते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान छोड़ना राष्ट्रीय हित में था या नहीं, ये वक़्त बताएगा. उनके अनुसार फ़िलहाल जो स्पष्ट है वो ये कि मध्यावधि चुनाव से एक साल पहले राष्ट्रपति बाइडन के ख़िलाफ़ आक्रमण तेज़ हो गया है और उन्होंने विपक्ष को आलोचना करने का एक सुनहरा मौक़ा दिया है.
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