क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

चीन के आने के बाद स्पेस की रेस से कितनी बदल रही दुनिया? - दुनिया जहान

अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना राष्ट्रीय सम्मान का मसला है या फिर देश के विकास के लिए उठाया गया क़दम. अंतरिक्ष में आगे बढ़ने की होड़ धरती पर किस तरह के बदलाव ला रही है.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
गैलिलियो नैविगेशन सैटलाइट
GSA
गैलिलियो नैविगेशन सैटलाइट

दशकों से अंतरिक्ष वो जगह रहा है जिसे मुल्क अपनी महत्वाकांक्षा से जोड़ कर देखते रहे हैं. अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में दुनिया के कई मुल्क ख़ुद को एक-दूसरे से आगे साबित करने की रेस में हैं.

शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच केवल हथियारों की दौड़ नहीं थी बल्कि वो धरती से परे अंतरिक्ष तकनीक में भी एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में थे.

लेकिन, हाल के वक्त में चीन चांद के धरती से न दिखने वाले इलाक़े में सफलतापूर्वक मानवरहित यान उतारने में कामयाब रहा है.

2019 में पहली बार चांद की उस जगह पर मिशन उतारा गया जो धरती से नहीं दिखता. इस जगह को चांद का दक्षिणी ध्रुव या फ़ार साइड कहा जाता है. वैज्ञानिक मानते हैं कि जिस वॉन कार्मन क्रेटर के नज़दीक यान उतरा वो अब तक अनछुआ रहा है.

कुछ सप्ताह पहले यान के साथ गए रोवर ने क्रेटर से 80 मीटर दूर एक घनाकार चीज़ देखी जिसे 'मिस्ट्री हट' नाम दिया गया. ये उपलब्धि है चीन के चांग-ई 4 मिशन की.

https://twitter.com/AJ_FI/status/1466677831929405443

इस क्षेत्र में भारत का भी अपना रिकॉर्ड है. 2017 में उसने एक साथ 104 सैटेलाइट प्रक्षेपित करने का रिकॉर्ड बनाया.

इनके अलावा दूसरे कई मुल्क भी अंतरिक्ष में अपने मिशन या तो भेज चुके हैं या फिर इसकी तैयारी में हैं. भूटान ने 2018 में अपना पहला नैनोसैटलाइट अंतरिक्ष भेजा और इस साल के अंत तक दूसरा भेजने की तैयारी कर रहा है.

इस दशक के अंत तक नाइजीरिया स्पेस में अंतरिक्ष यात्री भेजना चाहता है. किर्गिस्तान भी अपना पहला सैटलाइट बना रहा है और ओमान ने इस साल अपना पहला सैटलाइट लॉन्च करने का लक्ष्य रखा है.

दुनिया जहान में इस बार पड़ताल इस बात की कि स्पेस रेस आख़िर क्यों है, ये राष्ट्रीय सम्मान का मामला है या विकास का? पड़ताल इस बात की भी कि अंतरिक्ष में आगे बढ़ने की होड़ धरती में किस तरह के बदलाव ला रही है.


स्पेस में एशियाई मुल्कों का दखल

डॉक्टर क्रिस्टोफ़ बाइशेल, लंदन के इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्पेस पॉलिसी एंड लॉ में रीसर्च फ़ेलो हैं. वो अमेरिका की वजह से कैसे चीन को अंतरिक्ष कार्यक्रम में मदद मिली, इसकी कहानी सुनाते हैं.

चीनी अंतरिक्ष वैज्ञानिक चेन चुएशेन 1934 से अमेरिका में थे, पहले बतौर छात्र और फिर बतौर स्पेस वैज्ञानिक. अमेरिका के लिए रॉकेट प्रक्षेपण की तकनीक बनाने और नासा का एक अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र बनाने में उन्होंने अहम योगदान दिया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वो अमेरिकी सरकार की साइंटिफ़िक एडवाइज़री बोर्ड में भी शामिल थे.

1950 के मैकार्थी युग में अमेरिका में तथाकथित कम्यूनिस्ट जासूसों की खोज शुरू हुई.

क्रिस्टोफ़ बाइशेल कहते हैं, "उन्हें नज़रबंद कर दिया गया और फिर कोरियाई युद्ध के दौरान पकड़े गए अमेरिकी पायलट्स के बदले उन्हें चीन भेज दिया गया. उस वक्त अमेरिका के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने कथित तौर पर कहा था कि उन्हें चीन भेजना अमेरिका की सबसे बड़ी ग़लती थी."

जोसेफ़ मेक्कार्थी
Bettmann
जोसेफ़ मेक्कार्थी

अमेरिका के इस फ़ैसले से चीन ख़ुश था.

वो कहते हैं, "चीन के पास अचानक ऐसा एक्सपर्ट आ गया था जो उनके वैज्ञानिकों को ट्रेन कर सकता था. उन्हीं के काम की बदौलत चीन ने अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम खड़ा किया."

चीन के नेता माओ त्से तुंग ने 1958 में स्पेस कार्यक्रम की घोषणा की. इसके दशकभर बाद चेन चुएशेन के नेतृत्व में पूरी तरह देश में बना सैटेलाइट लॉन्च किया गया. इस क़दम से चीन ने पूरी दुनिया को एक मज़बूत संदेश दिया.

क्रिस्टोफ़ बाइशेल कहते हैं, "उस वक्त बैकग्राउंड में 'द ईस्ट इज़ रेड' गीत गाया जा रहा था. ये एक तरह का अनाधिकारिक राष्ट्रगान बन गया था जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी और माओ त्से तुंग का बखान था."

इस वक़्त तक अमेरिका और सोवियत संघ स्पेस में अपने अंतरिक्षयात्री भेज चुके थे. 2003 में यांग ली वे स्पेस जाने वाले पहले चीनी अंतरिक्ष यात्री बने.

तब से लेकर अब तक चीन 11 अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस भेज चुका है. जनवरी 2019 में उसने चांद के फ़ार साइड में सफलतापूर्वक यान उतारा. लेकिन इससे दूसरे मुल्कों को वो क्या संदेश देना चाहता है?

वो कहते हैं, "वो बताना चाहता है कि उसने वो कर दिखाया है जो अमेरिका अब तक नहीं कर सका और इस क्षेत्र में वो दुनिया में सबसे आगे चल रहे मुल्कों में एक है. चीन ने लंबे वक्त तक गृहयुद्ध की मुसीबत का सामना किया है. वो कृषि आधारित मुल्क था, लेकिन 70 सालों में वो तकनीक के क्षेत्र में सबसे आगे रहने वाले मुल्कों में शुमार हुआ है."

चेन चुएशेन
Getty Images
चेन चुएशेन

आने वाले कुछ सालों में बजट की कमी के कारण अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन का काम बंद हो सकता है. ये चीन के लिए इस क्षेत्र में और ताक़तवर बनने का मौक़ा होगा.

वो कहते हैं, "चीन इकलौता मुल्क होगा जिसके पास अंतरिक्ष में अपना स्पेस स्टेशन होगा. वो इस साल के आख़िर तक इसका काम पूरा करना चाहता है. ऐसा हुआ तो ये अपने आप में एक मज़बूत संदेश होगा. मेरे हिसाब से चीन कह सकता है कि अगर आपको वैज्ञानिक अनुसंधान करना है या अंतरिक्षयात्री को भेजना है तो हम आपका स्वागत करेंगे. चीन दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क बनने की महत्वाकांक्षा रखता है."

और स्पेस में चीन के लिए ये मुश्किल नहीं. इस साल मई में चीन ने ज़ूरॉन्ग नाम का मानवरहित यान मंगल पर उतारा. ऐसा करने वाला वो एशिया का पहला देश बना.

क्रिस्टोफ़ बाइशेल मानते हैं कि स्पेस में अमेरिका के सामने सही मायनों में चीन ही मुख्य प्रतिद्वंदी है और वो इसके लिए वो अपने स्पेस कार्यक्रम पर अरबों ख़र्च भी कर रहा है.

लेकिन दुनिया के दूसरे मुल्कों के लिए स्पेस कार्यक्रम ख़र्च का कम और विकास का मामला ज़्यादा है.

चीनी स्पेस स्टेशन
BBC
चीनी स्पेस स्टेशन

सैटेलाइट का इस्तेमाल

डी रघुनंदन ऑल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क के अध्यक्ष हैं. वो दिल्ली साइंस फ़ोरम के पूर्व सचिव रह चुके हैं. भारत लो अर्थ ऑर्बिट में अपने अलावा दूसरे मुल्कों के सैटलाइट प्रक्षेपित करने वाला अहम देश बन चुका है. 2017 में भारत ने एक साथ 104 सैटलाइट प्रक्षेपित करने का रिकॉर्ड बनाया था.

वो कहते हैं, "पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था, ये अपने आप में अभूतपूर्व था. इससे लो अर्थ ऑर्बिट सैटलाइट लॉन्च करने वाली भरोसेमंद एजेंसी के रूप भारत की छवि बनी."

भारत ने ये काम बेहद कम ख़र्च में किया. इसके बाद से कई दूसरे देश, विदेशी कंपनियां और एजेंसियां इस सुविधा का इस्तेमाल करना चाहती हैं.

भारत ने अपने स्पेस कार्यक्रम की शुरूआत 1960 के दशक में की थी. उसका उद्देश्य न तो स्पेस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना था और न ही अंतरिक्ष अनुसंधान में आगे रहना, बल्कि इसका लक्ष्य देश की आर्थिक तरक्की में योगदान करना था.

डी रघुनंदन कहते हैं, "भारत जैसे विकासशील देश के लिए ये क़दम महत्वपूर्ण इसलिए था क्योंकि उसके लिए पैसों का सही इस्तेमाल ज़रूरी था. विकास के काम के लिए स्पेस के इस्तेमाल का फ़ैसला किया गया. सैटलाइट तस्वीरों के ज़रिए मैप बनाए गए जिसकी मदद से खनिज पदार्थों के खनन की योजना बनाना आसान था."

लेकिन मैपिंग के लिए सैटेलाइट तस्वीरों का ही इस्तेमाल ही क्यों?

डी रघुनंदन समझाते हैं, "भारत जैसे बड़े देश में कोई और तरीका अपनाने का मतलब होगा हर इलाक़े में जाना, जो महंगा साबित होगा. दूरदराज़ के इलाक़ों तक पहुंचने के लिए सैटलाइट का इस्तेमाल सस्ता सौदा था. सैटलाइट तस्वीरों से पानी के स्रोतों के बारे में जानकारी मिली और ये भी कि वनीकरण की कोशिशें कितनी सफल हो रही हैं. परिवर्तन से निपटने में भी सैटलाइट का इस्तेमाल बढ़ा है. ये मछुआरों को समंदर में जाने और मछली तलाशने में भी मदद करते हैं."

इसके लिए अंतरिक्ष से सैटलाइट के ज़रिए ट्रैकिंग की जाती है और लोगों को उनके मोबाइल फ़ोन पर जानकारी दी जाती है.

डी रघुनंदन मानते हैं कि भारत के आर्थिक विकास में उसके स्पेस कार्यक्रम का ख़ासा योगदान रहा है. लेकिन हाल के दिनों में इसका उद्देश्य बदल रहा है.

2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि भारत अपने यान में 2022 तक स्पेस में इंसान भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बनेगा.

वो कहते हैं, "भारत को एहसास हुआ है कि उसे अब आगे बढ़ने की ज़रूरत है. मुझे लगता है कि चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने उसके लिए प्रेरणा का काम किया है. आने वाले वक्त में हम भारत को महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स करते देख सकते हैं. मानव को ले जाने वाले यान बनाए जाएंगे जो पहले से अलग होंगे. ये तापमान और गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव झेल सकेंगे. इससे स्पेस कार्यक्रम पर ख़र्च बढ़ेगा लेकिन सीधे तौर पर लाभ नहीं होगा."

डी रघुनंदन कहते हैं कि इससे इतर आर्थिक विकास में सैटेलाइट का इस्तेमाल अभी भी भारत के लिए अहम है, और दूसरे कई मुल्क भी यही रास्ता अपना रहे हैं.


स्पेस की तरफ़ बढ़ने के लिए विदेशी मदद

ओलिफ़ंकी फ़ाबेज़ा नाइजीरिया कम्यूनिकेशन्स सैटलाइट (एनआईजीकॉमसैट) में काम करती हैं. ये कंपनी ख़ुद के सैटलाइट का संचालन करती है.

स्पेस के क्षेत्र में नाइजीरिया अभी नया है. सैटलाइट से पहले यहां इंटरनेट तक लोगों की पहुंच फ़ाइबर के ज़रिए थी. लेकिन इतने बड़े मुल्क में ख़ासकर दूरदराज के इलाक़ों में ऐसा करना महंगा काम था.

वो कहती हैं, "कम्यूनिकेशन सैटलाइट के माध्यम से नाइजीरिया में 100 फ़ीसदी कवरेज मिलता है. आप कहीं भी हों, इंटरनेट से जुड़े रह सकते हैं. ग्रामीण इलाक़ों के स्कूल इंटरनेट के ज़रिए शहरी स्कूलों से जुड़े हैं. इसके अलावा यूनिवर्सिटी शिक्षा में भी काफ़ी मदद मिलती है. अबुजा में पढ़ाने वाले शिक्षक के साथ ग्रामीण इलाक़ों के छात्र भी जुड़ सकते हैं."

कंपनी के पास फ़िलहाल एक ही सैटेलाइट है. कंपनी न तो देश के भीतर सैटेलाइट बनाने और न ही उसे लॉन्च करने की क्षमता विकसित कर पाई है. ऐसे में उसने चीन से मदद ली.

नाइजीरिया का सैटलाइट लॉन्च
www.nigcomsat.gov.ng
नाइजीरिया का सैटलाइट लॉन्च

ओलिफ़ंकी फ़ाबेज़ा कहती हैं, "जब सैटेलाइट तैयार हो रहा था हमारे 50 इंजीनियर्स चीन में थे, जो वहां 12 से 18 महीने तक थे. ये वो लोग थे जो सैटेलाइट का संचालन कर रहे थे. हमारे पास अबूजा में सैटलाइट कंट्रोल सेंटर का काम यही इंजीनियर्स संभालते हैं. ये अब दूसरों को तालीम दे सकते हैं."

कंपनी ने 2025 तक दो और सैटलाइट लॉन्च करने का लक्ष्य रखा है. तो क्या इन्हें देश के भीतर बनाया जाएगा?

वो कहती हैं, "अभी हमारी इतनी क्षमता नहीं है. ज़रूरी नहीं कि सैटलाइट देश में ही बने लेकिन मैं आपको बता सकती हूं कि नाइजीरियाई इंजीनियर्स इसका हिस्सा ज़रूर होंगे. मैं ये तो नहीं कह सकती कि हम कब तक देश में सैटलाइट बना सकेंगे, लेकिन हम इस पर काम कर रहे हैं."

नाइजीरिया अभी शुरूआती दौर में तो है, लेकिन उसकी महत्वाकांक्षा बड़ी है. 2030 तक वो स्पेस में अपना अंतरिक्षयात्री भेजना चाहता है.

लेकिन फिलहाल स्पेस तकनीक के मामले में वो दूसरों पर निर्भर है. हालांकि ऐसा करना वाला वो अकेला मुल्क नहीं.


तारों तक पहुंचने की उड़ान

किज़ीबेक बेटिकानोवा किर्गिस्तान के अंतरिक्ष कार्यक्रम की निदेशक हैं. वो कहती हैं कि उनके समाज में महिलाओं को घर पर रहकर काम सीखना होता है न कि करियर में आगे बढ़ना.

2018 में किज़ीबेक और अन्य कुछ छात्राओं ने मिलकर देश का पहला सैटलाइट बनाने का फ़ैसला किया. इसके लिए उन्होंने क्राउडफंडिंग से पैसा जमा किया.

वो कहती हैं, "हमारे कार्यक्रम के ज़रिए हम महिलाओं का सशक्तिकरण चाहते हैं. हम उन्हें बताना चाहते हैं कि उनके लिए दूसरे रास्ते भी हैं. जब हमने अपने कार्यक्रम के बारे में लोगों से बात की तो हमें नकारात्मक प्रतिक्रिया भी मिली कि हम महिलाएं है, इमोशनल हैं और ये काम नहीं कर सकेंगी. हम चाहते हैं कि महिलाओं में अधिक आत्मविश्वास हो."

अपने कार्यक्रम में वो महिलाओं को विज्ञान और इंजीनियरिंग जैसे विषय पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं.

वो कहती हैं, "हमारे देश में माना जाता है कि ये केवल पुरुषों का काम हैं."

https://twitter.com/KyrgyzSatellite/status/1460935733015986182

किर्गिस्तान का अपना स्पेस कार्यक्रम कभी नहीं था लेकिन 1991 में सोवियत संघ के विघटन से पहले यहां टॉप सीक्रेट स्पेस कार्यक्रम के लिए उपकरण बनाए जाते थे. बाद में इसे यहां से हटा कर रूस ले जाया गया.

किज़ीबेक का उद्देश्य देश का अपना स्पेस कार्यक्रम खड़ा करना है, और इसके लिए वो अपने सैटलाइट में एक कैमरा लगाना चाहती हैं.

वो कहती हैं, "हम चाहते हैं कि लोग हमें समझें. जब हमारे पास तस्वीरें होंगी और लोग उन्हें देखेंगे तो शायद उन्हें हमारे कार्यक्रम में दिल्चस्पी होगी. हम चाहते हैं कि ये देश के लिए गर्व की बात हो."

किज़ीबेक को उम्मीद है कि देश का पहला सैटलाइट लॉन्च अपने आप में एक और बड़े कदम की शुरूआत होगी.

वो कहती हैं, "मुझे लगता है कि देश के लिए इतना बड़ा योगदान करने के बाद हम यहां के सामाजिक ढांचे को भी बदल सकेंगे. हमारी सफलता दूसरों को प्रेरित करेगी, महिलाएं आगे आएंगी. मैं ये बदलाव अभी से देख पा रही हूं."

लौटते हैं अपने सवाल पर- स्पेस रेस हमारी धरती को कैसे प्रभावित कर रहा है.

ये केवल दुनिया के दो ताकतवर मुल्कों के बीच की दौड़ नहीं है, जो खुद को दूसरे से बेहतर साबित करना चाहते हैं. इस रेस में चीन एक नया और मज़बूत खिलाड़ी बनकर उभरा है.

दूसरी ओर सैटलाइट्स ने दुनिया के कई अन्य मुल्कों के लिए उम्मीदों के नए दरवाज़े खोले हैं. ये लोगों को पहले से कहीं अधिक बेहतर तरीके से एकदूसरे से जुड़ने का मौक़े दे रहे हैं.

इनके ज़रिए इकट्ठा किए डेटा का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था के विकास और पर्यावरण को बचाने के लिए किया जा रहा है. और किर्गिस्तान की महिला टीम ये दिखाती है, कि ये समाज में बदलाव का ज़रिया भी हो सकते हैं.

मुल्कों के बीच की होड़ को दरकिनार कर देखा जाए, तो हम कह सकते हैं कि धरती से और दूर अंतरिक्ष में जाकर हम ये संभावना तलाश रहे हैं कि धरती पर मानव जीवन कैसे और बेहतर हो सकता है.

(प्रोड्यूसर: मानसी दाश)

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
How much world changing in space race after theChina entry
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X