ब्रिटेन में हिन्दू कैसे बने अमीर, स्मार्ट और संस्कारी, जानिए संघर्ष से शिखर तक पहुंचने की गर्व वाली कहानी
द टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि, पिछले 50 सालों में हिन्दू अब ब्रिटेन के कोने-कोने तक फैल चुके हैं और अपनी मेहनत की बदौलत अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
Britain's Hindus: ब्रिटेन के लीसेस्टर शहर में पिछले दिनों हिन्दू और पाकिस्तानी मुस्लिमों के बीच एक सांप्रदायिक हिंसा फैली थी, जिसमें पाकिस्तानी मुस्लिमों ने हिन्दू मंदिरों से ध्वज उतार लिया था और खुलेआम धमकियां दी थीं। लिहाजा, दुनियाभर में एक उत्सुकता बनी, कि पाकिस्तानी मुसलमान तो चलिए जैसे हैं, वैसे हैं ही, लेकिन, ब्रिटेन में रहने वाले हिन्दुओें की स्थिति कैसी है, उनकी आर्थिक, सामाजिक हैसियत कैसी है और इन्हीं सवालों का जवाब एक नई रिपोर्ट में तलाशा गया है, जिसे जानकर हर भारतवासी को गर्व होगा।
ब्रिटेन के हिन्दुओं पर गर्व
ब्रिटेन में हिंदू "स्मार्ट, अमीर और बहुत अच्छे व्यवहार वाले" हैं, ये एक नई रिपोर्ट में पता चला है। 2021 में ब्रिटिश सरकार के ऑफिशियल रिपोर्ट से पता चला है, कि ब्रिटेन के जेलों में बंद अलग अलग धर्मों के लोगों में सिर्फ 0.4 प्रतिशत ही हिन्दू हैं, जो किसी भी अन्य धार्मिक समूहों के मुकाबले काफी ज्यादा कम है। ब्रिटेन में रहने वाले हिन्दुओं पर ये रिपोर्ट ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बाद की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, इंग्लैंड और वेल्स अब 983,000 हिंदुओं का घर है और दस्तावेजों से पता चलता है, कि लंदन में हिन्दुओं का आना पिछले 500 सालों से जारी है। रिपोर्ट में कहा गया है, कि ये रिपोर्ट इमिग्रेशन की सफलता की कहानी है। द टाइम्स अखबार की रिपोर्ट में कहा गया है कि, ब्रिटेन की जेलों में सिर्फ 329 हिन्दू बंद हैं।
ब्रिटिश हिन्दू, अमीर और स्मार्ट
द टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 'ब्रिटेन में रहने वाले हिन्दू ईसाइयों से काफी ज्यादा पढ़े-लिखे हैं और उनसे काफी ज्यादा कमाते हैं। वहीं, प्रधानमंत्री बने ऋषि सुनक, जिनके पिता ब्रिटेन में आकर बसे थे, वो आर्थिक स्थिति के मामले में ब्रिटेन में 10वें नंबर पर आते हैं।' स्वतंत्रता मिलने और भारत के खूनी विभाजन के बाद साल 1947 में भारी संख्या में हिन्दू प्रवासियों की लहर का ब्रिटेन पहुंचना शुरू हुआ और ब्रिटेन के लेबर मार्केट ने भी इनका दिल खोलकर स्वागत किया। इसकी सबसे बड़ी वजह ब्रिटेन में मजदूरों की भारी कमी थी। यहां तक किसी और देश के लोगों के ब्रिटेन के आने के सबसे बड़े विरोधी ब्रिटिश नेता हनोक पॉवेल भी जब ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री बने, तो उन्होंने भारत से आए स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती की थी।
1970 में पहुंची दूसरी लहर
ब्रिटेन में पहली बार भारी तादाद में हिन्दू 1947 में पहुंचे थे, जबकि दूसरी लहर 1970 के दशक में पूर्वी अफ्रीका से पहुंची, जब ईदी अमीन ने युगांडा की एशियाई आबादी को देश से निष्कासित कर दिया। इस दौरान युगांडा में रहने वाले 4500 भारतीय भागकर भारत पहुंचे थे, जबकि 27000 भारतीय भागकर ब्रिटेन पहुंचे थे। वहीं, साल 1990 के दशक में जब ब्रिटिश सरकार ने विदेशी छात्रों के लिए इमिग्रेशन कानून में ढील दी थी, उस वक्त ब्रिटेन में भारतीयों की तीसरी लहर पहुंची थी। रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन में बसने वाले हिन्दू ज्यादातर धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों की तरह ही बड़े शहरों के आसपास ही रहते हैं। करीब 47 प्रतिशत हिन्दू लंदन में रहते हैं, जो राजधानी की आबादी का 5 प्रतिशत है। वहीं, ईस्ट मिडलैंड्स, लीसेस्टर जैसे शहरों के आसपास ब्रिटेन के 10 प्रतिशत हिंदुओं का घर है।
अब पूरे देश में फैले हिन्दू
द टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि, पिछले 50 सालों में हिन्दू अब ब्रिटेन के कोने-कोने तक फैल चुके हैं। इस रिपोर्ट में ब्रिटिश फ्यूचर थिंक टैंक के संस्थापक सुंदर कटवाला कहते हैं कि, ''पिछली पीढ़ी के दौरान साधारण तरीके से हिन्दू ब्रिटेन के अलग अलग क्षेत्रों में फैले हैं।" उन्होंने कहा कि, "अगली जनगणना में हम देखेंगे कि हर जगह थोड़ी अधिक विविधता है।" सुंदर कटवाला का मानना है कि, दो या तीन पीढ़ियों के बाद, अप्रवासी आबादी ज्यादातर उपनगरीय हो जाती है। भारतीय जनरल प्रैक्टिशनर्स, न्यूजएजेंट और कॉर्नरशॉप मालिकों ने नए क्षेत्रों में प्रवास बढ़ाया है। 45 साल की बबीता शर्मा बीबीसी की पूर्व पत्रकार हैं, जिनके माता-पिता ब्रिटेन में जाकर बस गये थे और वो अपने पैरेंट्स के दुकान में बड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा कि, 'कॉर्नर शॉप ने अश्वेस समुदाय के लोगों को पूरे ब्रिटेन में फैलाया है। ये एक सुनहरा मौका था, लेकिन इसने शहरों से लोगों को निकालने का भी काम किया है।'
कैसी है हिन्दुओं की शिक्षा?
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 में 59 प्रतिशत ब्रिटिश हिंदुओं ने उच्च शिक्षा प्राप्त की, जबकि तुलना करने पर पता चलता है, कि सिर्फ 30 प्रतिशत ईसाइयों ने ही उच्च शिक्षा प्राप्त की है। यानि, ईसाइयों के मुकाबले दोगुने हिन्दुओ ने उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहीं, ब्रिटेन में रहने वाले सिर्फ 7.8 प्रतिशत हिन्दू ही ऐसे हैं, जिनके पास ही GCSE (भारत में मैट्रिक) की डिग्री है, जबकि ईसाइयों की ये संख्या 20 प्रतिशत है। वहीं, ब्रिटेन में रहने वाले 5.5 प्रतिशत ब्रिटिश हिन्दुओं के पास ही आधिकारिक तौर पर कोई डिग्री नहीं है। इससे पता चलता है, कि ब्रिटिश हिन्दुओं में शिक्षा को लेकर कितनी जागरूकता रही है।
संघर्ष के बाद बनाई मजबूत स्थिति
रिपोर्ट में कहा गया है कि, शुरूआत में ब्रिटेन पहुंचने वाले प्रवासी भारतीयों के साथ कारखानों में काफी खराब सलूक किया गया। लेबर मार्केट में हिन्दुओं को काफी दुत्कारा गया, लिहाजा धीरे धीरे ब्रिटेन में बसने वाले हिन्दुओं ने अपना व्यवसाय करना शुरू कर दिया। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह खराब व्यवहार, भेदभाव और काफी कम सैलरी थी। लेकिन, शुरूआती संघर्ष अब रंग ला रहा है। साल 2012 तक लंदन में रहने वाले हिंदुओं के पास 277,400 पाउंड (संपत्ति सहित) की शुद्ध संपत्ति थी, जो यहूदी समुदाय के बाद दूसरे स्थान पर थी। ब्रिटेन में रहने वाले हिन्दू यहूदी समुदाय और ईसाई समुदाय के बाद तीसरे सबसे कम गरीब हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन में रहने वाले यहूदी समुदाय के बाद हिन्दू समुदाय के लोगों को ही प्रति घंटे सबसे ज्यादा कमाई मिलती है। ब्रिटिश हिन्दुओं की प्रति घंटे कमाई 13.80 पाउंड है।
अपराध से दूर, पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान
रिपोर्ट में कहा गया है कि, सबसे हालिया जनगणना से पता चला है कि 15.4 फीसदी ब्रिटिश भारतीय, जिनमें से लगभग 50 फीसदी हिंदू हैं, वो प्रोफेशनल हैं और मैनेजमेंट के काम में बड़ी भूमिकाओं में हैं, जो किसी भी समूह का उच्चतम अनुपात है। साल 2018 में 40 प्रतिशत से अधिक ब्रिटिश हिंदू "हाई स्किल्ड जॉब" में थे। और इस फील्ड में हिन्दुओं के बाद यहूदियों का स्थान है, वहीं ब्रिटिश सिख तीसरे स्थान पर आते हैं। ब्रिटिश हिन्दुओं को लेकर अब आम राय ऐसी बन चुकी है, जिनकी अपराध में भूमिका काफी कम होती है और जो शांत रहना पसंद करते हैं। इसीलिए पूरे ब्रिटेन में सिर्फ 329 कैदी ही हिन्दू हैं, जो दूसरे समुदायों के मुकाबले काफी ज्यादा कम है। द टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ये आंकड़े हिन्दुओं के डेलवपमेंट को दिखाती हैं। हिंदू फोरम ऑफ ब्रिटेन की अध्यक्ष तृप्ति पटेल का कहना है कि, आस्था ही मजबूत सामुदायिक संबंधों के साथ-साथ अपराध को भी रोकती है और हिन्दुओं की सबसे अच्छी बात ये है, कि अगर कोई हिन्दु शख्स कुछ गलत करने की कोशिश करता है, तो पूरा समुदाय उसके खिलाफ खड़ा हो जाता है। उन्होंने कहा कि, हिन्दुओं की परवरिश ही ऐसे माहौल में होती है, कि वो खुद ही क्राइम से दूर रहना पसंद करते हैं।
हिन्दुओं की राजनीतिक स्थिति
द टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि, पिछले महीने लीसेस्टर में मुस्लिमों ने हिन्दुओं के घर और दुकान लूटे, जिसको लेकर हिन्दुओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। वहीं, इन घटनाओं के बाद अब हिन्दुओं में भी मुस्लिम विरोधी भावनाओं का विकास हो रहा है और इसके पीछे कुछ हद तक भारत में नव-राष्ट्रवाद का उदय भी है। जबकि, एक वक्त ब्रिटेन में बसने वाले हिन्दुओं में इस तरह की कोई भावना नहीं होती थी। पहले ब्रिटिश हिन्दुओं का झुकाव 'लेबर पार्टी' की तरफ हुआ करता था, लेकिन हाल के दिनों में हुए चुनाव से पता चलता है, कि अब ब्रिटिश हिन्दू कंजर्वेटिव पार्टी की तरफ झुके हैं, जो एक बड़ा बदलाव देखा गया है। ऋषि सुनक भी इसी पार्टी से आते हैं। वहीं, दक्षिण एशिया के मुसलमान और सिख समुदाय के लोग लेबर पार्टी से जुड़े हुए हैं। इसके पीछे की एक और बड़ी वजह ये है, कि लेबर पार्टी के नेताओं ने पिछले कुछ सालों में काफी बयान भारत और हिन्दू विरोधी दिए हैं, जिनसे हिन्दुओं ने इस पार्टी का साथ छोड़ना शुरू किया, जबकि कंजर्वेटिव पार्टी के नेता हमेशा से भारत समर्थक रहे हैं।
हिन्दुओं को पार्टी से जोड़ने की कोशिश
कंजर्वेटिव पार्टी ने भी पार्टी में काफी विविधता लाते हुए सभी जातीय अल्पसंख्यकों को अपनी पार्टी से जोड़ने की कोशिश की और इसमें पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने काफी अहम भूमिता निभाई। उन्होंने अपनी पार्टी में हिन्दुओं को काफी स्थान दिया, जिसने भी हिन्दुओं को कंजर्वेटिव पार्टी की तरफ मोड़ा। हालांकि, कटवाल का कहना है कि, "अब किसी भी पार्टी के साथ कोई विशेष पहचान नहीं है और कंजर्वेटिव पार्टी ने पार्टी के अंदर जो विविधता लाई है, सिर्फ उससे ही उन्हें फायदा नहीं मिला है।" उन्होंने कहा कि, 'चुनाव में हिन्दू बाहुल्य इलाकों में किसी भारतीय मूल के उम्मीदवार होना ही जीत की गारंटी नहीं है, क्योंकि हिन्दुओं के लिए ये मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं है। ज्यादातर हिन्दुओं का मानना है कि, हिन्दुओं के विकास के लिए किसी हिन्दू का ही चुनाव जीतना महत्वपूर्ण नहीं है।'