श्रीलंका में 9 साल बाद महंगी हुई बिजली तो भड़के बौद्ध भिक्षु, पुजारी और नन, कहा- जनता न भरें बिल
कोलंबो, 21 सितंबरः आजादी के बाद सबसे गहरे आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका में बिजली संकट अभी भी चरम पर है। मंगलवार को भिक्षुओं, पुजारियों और ननों के एक समूह ने राजधानी कोलंबो में बिजली की बढ़ी हुई दरों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। यह विरोध प्रदर्शन मंगलवार को फोर्ट रेलवे स्टेशन के सामने हुआ। स्थानीय मीडिया डेली मिरर के मुताबिक धार्मिक नेताओं ने दावा किया कि वे बिलों का भुगतान करने में असमर्थ हैं।
सौर पैनल आयात के लिए प्रयास में जुटा श्रीलंका
श्रीलंका में प्रभावशाली बौद्ध भिक्षुओं द्वारा विरोध प्रदर्शन के बाद बिजली और ऊर्जा मंत्री कंचना विजेसेकारा ने कहा कि देश सौर पैनलों की खरीद के लिए भारत या चीन से ऋण सहायता की तलाश कर रहा है। उन्होंने कहा कि बिजली की अत्यधिक लागत को कम करने के लिए यह फैसला किया गया है। ऊर्जा मंत्री ने संसद को बताया, ''हम विदेशी मुद्रा की कमी का सामना कर रहे हैं, जिससे आयात के लिए भुगतान करना मुश्किल हो गया है। हमें एक समाधान के बारे में सोचना होगा कि भारत या चीन से ऋण सहायता हासिल की जाए और उससे सौर पैनल आयात किए जाएं।''
9 वर्षों के बाद बढ़ी बिजली दर
श्रीलंका ने अगस्त में 9 वर्षों के बाद बिजली की दरों में औसतन 75 प्रतिशत की वृद्धि की थी। सरकार को इस फैसले पर बौद्ध भिक्षुओं की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने विरोध में जनता से बिजली बिलों का भुगतान नहीं करने को कहा है। ऊर्जा मंत्री विजेसेकारा ने कहा कि धार्मिक स्थलों के लिए 48,000 से अधिक उपभोक्ता कनेक्शन हैं। उनमें से 15,000 से अधिक प्रति माह 30 यूनिट से कम खपत कर रहे हैं। ऊर्जा मंत्री ने दावा किया कि टैरिफ वृद्धि से इन धार्मिक स्थलों को अधिक फर्क नहीं पड़ रहा है।
घाटे में जा रहा था बिजली बोर्ड
ऊर्जा मंत्री विजेसेकारा ने कहा कि सभी धार्मिक स्थलों, जिनमें बौद्ध मंदिर, चर्च, हिंदू कोविल (मंदिर) और मस्जिद शामिल हैं, उन्हें सलाह दी गई है कि वे सोलर पैनल लगाएं। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थलों पर बिजली आपूर्ति पर हमेशा सब्सिडी दी जाती रही है। ऊर्जा मंत्री ने टैरिफ वृद्धि का बचाव करते हुए कहा कि यह जरूरी था। 2013 के बाद पहली बार टैरिफ दर में बदलाव हुआ है। राज्य ईंधन इकाई सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड अत्यधिक ऋणी हो चुकी थी।
सबसे खराब दौर से गुजर रहा श्रीलंका
गौरतलब है कि श्रीलंका आजादी के बाद से सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। भोजन और ईंधन की कमी, बढ़ती कीमतों और बिजली कटौती से बड़ी संख्या में नागरिक प्रभावित हुए हैं, जिसके चलते बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा, जिसके बाद रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री बने। राजनीतिक संकट लगभग दूर होने के बाद भी देश में बाकी संकट दूर होने का नाम नहीं ले रहे हैं।
भारत कर रहा आर्थिक मदद
भारत श्रीलंका को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार आर्थिक सहायता प्रदान करने में सबसे आगे रहा है और उन देशों में से एक है जिसने आवश्यकता के समय में अधिकतम सहायता प्रदान की है। भारतीय दूतावास के मुताबिक भारत ने इस वर्ष श्रीलंका को 4 बिलियन अमरीकी डॉलर की मदद दी है। दूतावास ने कहा कि इसके अलावा भी श्रीलंका में हमारी द्विपक्षीय विकास सहयोग परियोजनाएं चल रही हैं, जो कुल मिलाकर लगभग 3.5 बिलियन डॉलर की हैं।
भारत ने दिया 21 हजार टन उर्वरक
भारत ने 22 अगस्त को भारत ने श्रीलंका को 21 हजार टन उर्वरक सौंपा था। भारत अपनी 'पड़ोसी पहले' की नीति के तहत कर्ज में डूबे द्वीप देश की मदद के लिए हमेशा आगे आया है। भारत ने बीते एक दशक में श्रीलंका को 1,850.64 मिलियन अमेरीकी डॉलर की 8 लाइन ऑफ क्रेडिट प्रदान की हैं। भारत ने श्रीलंका को उनकी आर्थिक आवश्यक्ताओं के समय में अधिकतम सहायता प्रदान की है।