अरब वर्ल्ड से अमेरिका OUT! चीन के गले लगने को तैयार प्रिंस सलमान, शी जिनपिंग का 'सऊदी प्लान' शुरू
बाइडेन प्रशासन के सत्ता में आने के साथ ही करीब 8 दशकों तक सहयोगी रहे अमेरिका और सऊदी अरब के संबंध खराब होने लगे। नौबत ये आ गई, कि प्रिंस सलमान ने बाइडेन का फोन नहीं उठाया, तो अमेरिका ने परिणाम भुगतने की धमकी दे दी।
Saudi Arabia Xi Jinping: सऊदी अरब और अमेरिका के बीच की बढ़ती दूरी का फायदा उठाने के लिए चीन के महाप्लान का आगाज हो रहा है, जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सऊदी अरब का 'महादौरा' करने जा रहे हैं। चीनी राष्ट्रपति का सऊदी अरब दौरा उस वक्त हो रहा है, जब अमेरिका ने सऊदी अरब को 'परिणाम भुगतने' की धमकी दे रखी है और प्रिंस सलमान के खिलाफ जो बाइडेन प्रशासन पत्रकार जमाल खशोगी हत्याकांड में शामिल होने का आरोप लगा चुका है। शी जिनपिंग के सऊदी अरब दौरे के साथ ही आज से अरब वर्ल्ड से अमेरिका के बाहर होने का रास्ता भी पूरी तरह से खुल गया है और खुद प्रिंस सलमान चीन के गले लगने के लिए पूरी तरह से बेकरार हो चुके हैं। ऐसे में आईये जानते हैं, कि सऊदी अरब और चीन के बीच बनने वाले नये रिश्ते से दुनिया की राजनीति किस तरह से बदलने वाली है?
सऊदी दौरे पर शी जिनपिंग
अमेरिका और सऊदी अरब के बीच चल रहे तनाव के बीच शी जिनपिंग अपने सऊदी अरब दौरे के दौरान अमेरिका को अरब देशों से पूरी तरह से बाहर करने की प्लान पर काम करेंगे। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, चार आधिकारिक सूत्रों ने बताया है कि, शी जिनपिंग की रियाद यात्रा के दौरान चीन-अरब शिखर सम्मेलन और चीन-जीसीसी सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। अरब डिप्लोमेटिक स्रोत के मुताबिक, शी जिनपिंग की रियाद यात्रा के दौरान कम के कम 14 अरब देशों के राष्ट्राध्यक्ष चीन-अरब शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे और चारों आधिकारिक सूत्रों ने शी जिनपिंग की सऊदी अरब यात्रा को 'मील का पत्थर' बताया है। सीएनएन के मुताबिक, ये चारों सूत्र आधिकारिक तौर पर मीडिया से बात नहीं कर सकते थे, लिहाजा उन्होंने नाम नहीं छापने की शर्त पर बात की।
यात्र की आधिकारिक पुष्टि नहीं
सबसे दिलचस्प ये है, कि शी जिनपिंग की सऊदी अरब यात्रा को लेकर कयास पिछले कई महीनों से लगाए जा रहे हैं, लेकिन अभी तक चीन की तरफ से आधिकारिक तौर पर यात्रा की पुष्टि नहीं की गई है। बीजिंग ने कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है, कि शी जिनपिंग सऊदी अरब जाएंगे। मंगलवार को नियमित विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग के दौरान संभावित यात्रा के बारे में पूछे जाने पर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि, उनके पास प्रदान करने के लिए कोई जानकारी नहीं है। लेकिन, पिछले हफ्ते सऊदी सरकार ने सटीक तारीखों की पुष्टि किए बिना शिखर सम्मेलन को कवर करने के लिए पत्रकारों को रजिस्ट्रेशन फॉर्म भेजे हैं। हालांकि, इसके बाद भी सऊदी सरकार ने शी जिनपिंग की यात्रा और नियोजित शिखर सम्मेलन के बारे में कोई और जानकारी देने से इनकार कर दिया।
चीन से क्या चाहता है सऊदी अरब?
सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्ते पिछले कुछ महीनों में, या यूं कहें, बाइडेन प्रशासन के आने के साथ ही खराब होने शुरू हो गये थे और अभी दोनों देशों के बीच का तनाव काफी बढ़ा हुआ है। लिहाजा, प्रिंस सलमान की सबसे पहली कोशिश अमेरिका के खिलाफ चीन से इंश्योरेंस हासिल करना होगा, ताकि अमेरिकी कार्रवाई अगर हो, तो चीन उसे छत प्रदान करे। वहीं, तेल उत्पादन को लेकर अमेरिका और सऊदी अरब अभी भी एक गर्म विवाद में उलझे हुए हैं और अमेरिका की लाख कोशिशों के बाद भी सऊदी अरब ने तेल का प्रोडक्शन नहीं बढ़ाया। उल्टा, ओपेक प्लस ने नवंबर महीने से तेल के प्रोडक्शन में हर दिन 20 लाख बैरल की कमी कर दी है। वहीं, पिछले आठ दशक से सऊदी अरब अमेरिका के सबसे खास सहयोगियों में शामिल रहा है, लेकिन सऊदी का चीन के खेमे में जाना, अरब वर्ल्ड में अमेरिका के लिए खतरों को बढ़ाएगा। वहीं, अमेरिका से अलग होकर सऊदी अरब भी कई दुश्मनों के बीच अकेला होगा, लिहाजा सऊदी की कोशिश चीन से सुरक्षा सहायता पाने की भी होगी।
सऊदी अरब से चीन क्या चाहता है?
ताइवान पर कब्जा करने की कोशिश में लगा चीन अपने लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की तलाश में है, लिहाजा अरब वर्ल्ड को अपने पाले में करना उसके लिए सबसे बड़ी सफलता होगी। अमेरिका ने ताइवान पर हमले की स्थिति में ताइवान को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा कर चुका है। लिहाजा अमेरिका और चीन एक कांटेदार अनिश्चित संबंध में फंसे हुए हैं, लिहाजा चीन अपने लिए'आपात स्थिति' के लिए इंतजाम कर रहा है। अगर चीन ताइवान पर हमला करता है, तो फिर उसपर चीन और पश्चिमी देशों का प्रतिबंध लगना तय है, लिहाजा चीन की कोशिश अरब देशों में अपना बाजार तैयार करने की है, ताकि वो प्रतिबंधों को बेअसर कर सके। इसके साथ ही अरब की खाड़ी में अमेरिकी सहयोगियों ने अमेरिका पर अपनी सुरक्षा गारंटियों से पीछे हटने का आरोप लगाया है, तो दूसरी तरफ चीन अरब देशों के साथ तो अपने संबंधों को मजबूत कर ही रहा है, इसके अलावा वो सऊदी अरब के जानी दुश्मन ईरान के साथ ही दोस्ती को मजबूत कर चुका है, जो अमेरिकी प्रतिबंधों से भारी प्रभावित है।
बदल रहा है जियो पॉलिटिक्स
यूक्रेन युद्ध के संबंध में चीन और सऊदी अरब, दोनों ने पश्चिमी देशों से अलग रूख अपना रखा है और दोनों ही देशों ने रूस की आलोचना नहीं की है। चीन और सऊदी अरब, दोनों ने रूस पर प्रतिबंधों का समर्थन करने से परहेज किया है, और रियाद ने बार-बार कहा है, कि मास्को एक प्रमुख ऊर्जा उत्पादक भागीदार और ओपेक+ का सदस्य है, लिहाजा तेल के मुद्दों पर उसके लिए रूस से परामर्श करना आवश्यक रहता है। पिछले महीने बड़े पैमाने पर तेल कटौती के बाद कुछ अमेरिकी अधिकारियों ने सऊदी अरब पर रूस का पक्ष लेने और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन पर युद्ध में सहायता करने का आरोप लगाया है। हालांकि, सऊदी अरब ने तेल को हथियार बनाने के आरोप से इनकार कर दिया, लेकिन सऊदी भी जानता है, कि दुनिया तेजी से जैविक ईंधन से छुटकारा पाने की दिशा में बढ़ रही है, लिहाजा उसके लिए अर्थव्यवस्था के नये अवसर बनाने होंगे, लिहाजा चीन उसके लिए सबसे बड़ा विकल्प बन सकता है।
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