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चीन के सीक्रेट हाइपरसोनिक सुरंग की तस्वीरें आईं सामने, ड्रैगन की टेक्नोलॉजी देखकर चकराया अमेरिका

चीन की ये नई फैसिलिटी से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से पलायन वेग का अनुकरण करके स्क्रैमजेट-संचालित विमान जैसे हाइपरसोनिक वाहनों के डेवलपमेंट के लिए जमीनी परीक्षण समर्थन प्रदान कर सकती है।

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वॉशिंगटन/बीजिंग, सितंबर 12: चीन ने आखिरकार दुनिया की सबसे बड़ी फ्री-पिस्टन ऑपरेशनल शॉक सुरंग का निर्माण कर लिया है, जिसके बाद चीन ने हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अमेरिका पर निर्णायक बढ़त हासिल र ली है और चीन की इस टेक्नोलॉजी को देखने के बाद अमेरिका का सिर चकरा गया है। साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की सिचुआन-आधारित फैसिलिटी सेंटर में मच 33 स्पीड यानिस 2.5 से 11.5 किलोमीटर प्रति सेकंड तक स्पीड से चलने वाले हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण करने के लिए सुरंग पाइप का निर्माण कर लिया है। इस फैसिलिटी का व्यास 80 सेंटीमीटर है, जो ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड विश्वविद्यालय में X3 एक्सपेंशन ट्यूब के आकार का दोगुना है, जो हाल के दिनों तक अपनी तरह की सबसे बड़ी फैसिलिटी थी।

हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी का होगा परीक्षण

हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी का होगा परीक्षण

चीन की ये नई फैसिलिटी सेंटर से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से पलायन वेग का अनुकरण करके स्क्रैमजेट-संचालित विमान जैसे हाइपरसोनिक वाहनों के डेवलपमेंट के लिए जमीनी परीक्षण समर्थन प्रदान कर सकती है। यानि, इस सुरंग के जरिए चीन स्क्रैमजेट-संचालित हाइपरसोनिक विमानों का परीक्षण कर सकता है। चीन की ये नई हाइपरसोनिक वायु सुरंग एक ऑस्ट्रेलियाई आविष्कार पर आधारित है, जिसे स्टाकर ट्यूब के रूप में जाना जाता है, जिसका नाम ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक रेमंड स्टाकर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने शीत युद्ध के दौरान इस डिजाइन का प्रस्ताव रखा था। पहले हाइपरसोनिक पवन सुरंगों में गर्म हाइड्रोजन गैस का भंडारण महंगा, विस्फोटक और चुनौतीपूर्ण होता था, जिससे इन सुविधाओं का निर्माण और रखरखाव काफी ज्यादा महंगा और जटिल हो जाता था, लेकिन चीन की ये नई टेक्नोलॉजी काफी अलग है।

क्या था स्टाकर का डिज़ाइन

क्या था स्टाकर का डिज़ाइन

इसके विपरीत, स्टाकर का डिज़ाइन, पिस्टन को कई सौ किलोमीटर प्रति घंटे तक चलाने के लिए अपेक्षाकृत सस्ते और निष्क्रिय उच्च दबाव वाली नाइट्रोजन गैस का उपयोग करता है। ये डिजाइन हवा को कंप्रेस कर सकता है और कई मजबूत झिल्लियों के माध्यम से फट सकता है, ताकि अत्यधिक गर्म और तेज शॉक तरंगें उत्पन्न हो सकें, जैसा कि हाइपरसोनिक गति से उड़ान भरने के लिए विमानों को चाहिए होता है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के लेख में कहा गया है कि, ये डिजाइन इतना सफल था कि, इसने ऑस्ट्रेलिया को हाइपरसोनिक से संबंधित तकनीक विकसित करने में सक्षम बनाया, जैसे कि स्क्रैमजेट, जिसने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद हाइपरसोनिक स्पीड हासिल की।

अमेरिका ने किया था ऑस्ट्रेलिया से समझौता

अमेरिका ने किया था ऑस्ट्रेलिया से समझौता

आपको जानकर हैरानी होगी, कि हाइपरसोनिक हथियारों की रेस में रूस और चीन के मुकाबले अमेरिका पिछड़ता नजर आ रहा है और साल 2020 मे अमेरिका ने हाइपरसोनिक हथियार विकसित करने के लिए और चीन और रूस के मैक-8 हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन की स्पीड का मुकाबला करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। वहीं अब, साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट का दावा है, कि चीन की हाइपरसोनिक पवन सुरंग उसके पश्चिमी निर्मित समकक्षों की तुलना में काफी अलग और अपडेटेड है। इसमें पिस्टन लॉन्चिंग ट्यूब के चारों ओर लपेटा हुआ एक हाई प्रेशर नाइट्रोजन टैंक है, जो कंपन को कम करता है और परीक्षण परिणामों की सटीकता को प्रभावित कर सकता है। चीन का ये नया फैसिलिटी स्टॉकर की तुलना में उसके आकार और उसकी जटिलता को भी कम कर देता है। चीन के इस नये फैसिलीटी में 840 किलोग्राम के पिस्टन में एक अद्वितीय संरचना डिजाइन और नई सामग्री भी शामिल है, जिसकी वजह से कम लागत में इसे फिर से इस्तेमाल करने के लिए तैयार किया जा सकता है।

चीन की ये टेक्नोलॉजी क्यों है खास?

चीन की ये टेक्नोलॉजी क्यों है खास?

साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि, स्टाकर ट्यूब लघु सिमुलेशन लंबाई तक सीमित है, जो एक सेकंड के केवल एक हजारवें हिस्से तक चलती है, जो किसी भी परीक्षण के लिए काफी कम सयम है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, चीन की नई फैसिलीटी इस सीमा को पार करने के लिए अन्य प्रकार की पवन सुरंगों के साथ काम करेगी। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने जनवरी में रिपोर्ट दी थी, कि चीन ने दुनिया की पहली पवन सुरंग का अनावरण किया है जो उड़ान के विभिन्न चरणों में एक पूर्ण आकार की हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण करने में सक्षम है। चीन का दावा था, कि उसका डिजाइन काफी महत्वपूर्ण है और इंजीनियरिंग समस्याओं की पहचान करता है। अमेरिका जिस फैसिलिटी का इस्तेमाल करता है, वो काफी ज्यादा महंगा होता है और अगर एक परीक्षण के बाद वो बेकार हो जाता है, लिहाजा अमेरिका के लिए हाइपरसोनिक परीक्षण काफी ज्यादा महंगा साबित होता है और अमेरिका के तीन टेस्ट अभी तक फेल हो चुके हैं, लिहाजा अमेरिका के प्रोजेक्ट पर काफी असर पड़ा है।

चीन और अमेरिका में लगी है रेस

चीन और अमेरिका में लगी है रेस

जहां तक ​​चीनी शोधकर्ताओं का संबंध है, दुनिया भर में ऐसी कोई अन्य फैसिलिटी का निर्माण अभी तक नहीं हो पाया है, जैसा चीन ने कर लिया है। वहीं, यूएस हाइपरसोनिक परीक्षण सुविधाएं केवल तकनीकी सीमाओं के कारण उड़ान के एक विशेष चरण का ही अनुकरण कर सकती हैं। इसके अलावा, चीन एक JF-22 पवन सुरंग भी बना रहा है, जो एक संभावित गेम-चेंजिंग फैसिलिटी साबित हो सकता है। चीन का दावा है कि, यह हाइपरसोनिक हथियारों की दौड़ में अमेरिका से 20-30 साल आगे निकल जाएगा। इस साल पूरा होने तक JF-22, 10 किलोमीटर प्रति सेकंड या 30 मच तक की उड़ान की क्षमता हासिल कर सकता है, जहां तक अमेरिका के लिए पहुंचना आसान नहीं होगा।

अमेरिका से शक्तिशाली होने का दावा

अमेरिका से शक्तिशाली होने का दावा

उसी लेख के अनुसार, चीन का दावा है कि JF-22 किसी भी ज्ञात अमेरिकी हाइपरसोनिक परीक्षण सुविधा से अधिक शक्तिशाली है। इसमें LENS II, अमेरिका की सबसे उन्नत हाइपरसोनिक हथियार परीक्षण सुविधा शामिल है, जिसमें 30 मिलीसेकंड तक चलने वाले सिमुलेशन के साथ मैक 7 तक की उड़ानें भरने की क्षमता है। इसके विपरीत, JF-22 बहुत अधिक स्पीड साथ 130 मिलीसेकंड तक की मच 30 स्पीड के साथ उड़ान भर सकता है। हालांकि, इन डेवलपमेंट के बाद भी साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट का कहना है, कि शक्तिशाली पवन सुरंगें भारी मात्रा में बिजली की इस्तेमाल करती है और जब शोधकर्ताओं ने इस फैसिलिटी का शुरू किया था, तो सिचुआन में पावर ग्रिड में ब्लैकऑउट छा गया था। इसके अलावा, कुछ पवन सुरंगों को स्थानीय पावर ग्रिड से नहीं जोड़ा जा सकता है, लेकिन उन्हें विशेष जनरेटर सुविधाओं पर निर्भर रहना पड़ सकता है।

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English summary
Pictures of China's hypersonic wind tunnel surfaced for the first time. Seeing the technology, America's senses also flew away.
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