चीन ने बनाया दुनिया का सबसे ऊंचा एक्सप्रेस-वे, निशाने पर उत्तराखंड-अरूणाचल, बड़े खतरे का बजा अलार्म!
चीन लगातार भारतीय सीमा के पास इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास कर रहा है। तिब्बस के जरिए अरूणाचल प्रदेश की सीमा तक चीन पहुंच चुका है, तो अब उत्तराखंड पर भी नजर रख रहा है।
बीजिंग, सितंबर 28: तिब्बत पर अवैध कब्जा करने के बाद चीन वहां लगातार इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास के जरिए एक स्वतंत्र देश को पूरी तरह से निगलने की कोशिश में लगा हुआ है। अब चीन की मीडिया ने कहा है कि चीन की राजधानी बीजिंग से तिब्बत को जोड़ने वाले एक्सप्रेस-वे को लेकर काम तेजी से जारी है और बीजिंग-ल्हासा एक्सप्रेसवे के एक प्रमुख खंड का काम पूरा कर लिया गया है। चीन की सरकारी मीडिया ने इस एक्सप्रेसवे को दुनिया का सबसे ऊंचा एक्सप्रेसवे होने का दावा किया है।
बीजिंग-ल्हासा एक्सप्रेसवे
तिब्बत में अपने बुनियादी ढांचे के निर्माण को जारी रखते हुए चीन ने बीजिंग-ल्हासा एक्सप्रेसवे के एक प्रमुख खंड का काम पूरा कर लिया है, जो ल्हासा से नागकू तक 295 किलोमीटर लंबा है। यह खंड समुद्र तल से 4,500 मीटर की औसत ऊंचाई पर स्थित है जिसे चीनी राज्य मीडिया ने दुनिया का सबसे ऊंचा एक्सप्रेसवे करार दिया है। लेकिन, खुफिया जानकारी मिल रही है कि भारत के उत्तराखंड के सेन्ट्रल सेक्टर के सामने चीन की सीमा के अंदर चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने किओ धुरा पास के सामने सर्विलांस कैमरे और दूसरे इंटेलीजेंस मशीनों को लगाया है। भारतीय खुफिया जानकारी के मुताबिक, "पीले गुब्बारे के आकार के निगरानी उपकरण एक पवन चक्की और साइट पर सौर पैनल के साथ सह-स्थित हैं।"
भारत की सीमा पर है एक्सप्रेसवे
ल्हासा-नागकू खंड जी6 बीजिंग-ल्हासा एक्सप्रेसवे का हिस्सा है और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की राजधानी ल्हासा को उत्तरी तिब्बत से जोड़ने वाला पहला एक्सप्रेसवे है। एक आधिकारिक सूत्र ने कहा कि यह पीएलए के सेंट्रल थिएटर कमांड को वेस्टर्न थिएटर कमांड से भी जोड़ता है, जो भारतीय सीमा के काफी करीब स्थिति है। एक आधिकारिक सूत्र के मुताबिक, "ल्हासा-नागकू खंड के नागकू से यांगबैजैन के बीच एक्सप्रेसवे के एक महत्वपूर्ण खंड का काम पूरा होने के बाद 21 अगस्त से उस एक्सप्रेसवे पर ट्रायल हो रहा है। ल्हासा-नागकू खंड के पूरा होने पर, ल्हासा और नागकू के बीच ड्राइविंग समय छह घंटे से तीन घंटे हो जाएगा।" कुछ रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस एक्सप्रेसवे के निर्माण के साथ ही चीन भारत को और घेरता हुआ नजर आ रहा है और वो किसी आपात स्थिति में काफी आसानी से अपने सैनिकों को मदद भेज सकता है।
लद्दाख विवाद के बीच निर्माण
अधिकारी ने कहा कि, पूरा एक्सप्रेसवे चीन की राजधानी बीजिंग, हेबेई, भीतरी मंगोलिया, निंग्ज़िया, गांसु, किंघई और ल्हासा सहित चीन के सात प्रमुख शहरों से होकर गुजरेगा, जिसकी अनुमानित लंबाई 3,710 किलोमीटर है। चीन तिब्बत में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है, जो पिछले साल मई से भारत के साथ पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गतिरोध के दौरान भी जारी रहा। तिब्बत में चीन जो इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास कर रहा है, उसमें ऐसे एयरपोर्ट्स का निर्माण शामिल है, जो मिलिट्री इस्तेमाल के साथ साथ सिविल इस्तेमाल के भी लायक हो। इसके अलावा चीन अरूणाचल प्रदेश की सीमा के पास तक बुलेट ट्रेन और सड़कों का विकास कर चुका है और भारत की सीमा के पास सैनिकों के लिए घर का निर्माण कर रहा है और वहां पर हथियारों की तैनाती कर रहा है। चीन ने इसी साल जून में जून में ल्हासा को न्यिंगची से जोड़ने वाली एक हाई स्पीड बुलेट ट्रेन शुरू की थी, जो रणनीतिक रूप से अरुणाचल प्रदेश के करीब स्थित तिब्बती शहर है।
फायरिंग अभ्यास
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय अधिकारियों ने बताया है कि, चीन के सैनिक भारतीय सीमा से सटे इलाकों में लगातर अभ्यास जारी रखे हुए हैं। पीएलए ने सितंबर के पहले सप्ताह में अपने शिनजियांग सैन्य जिले (एक्सएमडी) के तहत दो लाइव फायरिंग अभ्यास किए हैं। एक अधिकारी ने द हिंदू से कहा कि, 8 माउंटेन इन्फैंट्री डिवीजन की आर्टिलरी रेजिमेंट ने उच्च ऊंचाई वाले पठार में पीसीएल-181, 155 मिमी वाहन घुड़सवार हॉवित्जर तोपों का इस्तेमाल करते हुए लाइव फायरिंग अभ्यास किया। इसी तरह, पीएलए के 11 माउंटेन डिवीजन की 31 रेजिमेंट ने ऊंचाई वाले इलाके में पीसीडी-001 वाहन माउंटेड, रैपिड फायर मोर्टार का इस्तेमाल करते हुए लाइव फायरिंग अभ्यास और सीमा पर उसकी क्षमता का आंकलन किया है।
इंडियन आर्मी ने भी किया अभ्यास
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर के पहले सप्ताह में भारतीय सेना ने भी लेह स्थित 14 कोर के तत्वावधान में लद्दाख के सुपर हाई एल्टीट्यूड एरिया में 15,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर बख्तरबंद हथियारों के साथ एक अभ्यास किया था। यह पैंगोंग त्सो के साउथ बैंक पर चुशुल रेंज के बहुत करीब, न्योमा में स्थित स्नो लेपर्ड बख्तरबंद ब्रिगेड द्वारा संचालित किया गया था। पिछले अगस्त में, चीन के साथ गतिरोध के दौरान, दोनों पक्षों ने एक-दूसरे से सौ मीटर की दूरी के भीतर भारी टैंक तैनात किए थे। अन्य बख्तरबंद एलिमेंट्स और सैनिकों के साथ इस साल फरवरी में पैंगोंग त्सो क्षेत्र से दोनों देशों के सैनिकों ने समझौते के बाद हटना शुरू किया था और बाद में पूरे क्षेत्र को दोनों देश ने खाली कर दिया, लेकिन कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि चीन बहुत जल्द वापस आने वाला है और उसी की तैयारी कर रहा है।
फिर से धोखा देने की फिराक में ड्रैगन, भारतीय सीमा पर भारी संख्या में कैंपों का निर्माण कर रहा चीन