आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच फिर खूनी संघर्ष शुरू, सीमा पर भारी संख्या में सैनिकों के मारे जाने की आशंका
मेरिका ने कहा कि वह हमलों की खबरों को लेकर बेहद चिंतित है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने सोमवार को कहा कि, "जैसा कि हमने लंबे समय से स्पष्ट किया है, संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता है।"
नई दिल्ली, सितंबर 13: आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच सीमा पर फिर से खूनी संघर्ष शुरू हो गया है और अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, अज्ञात संख्या में अजरबैजान के सैनिकों के मारे जाने की खबर है। रिपोर्ट के मुताबिक, आज सुबह से ही दोनों देशों के सैनिक सीमा पर भारी गोलीबारी कर रहे हैं और दोनों कट्टर दुश्मनों के बीच लड़ाई चल रही है। इससे पहले भी साल 2020 में दोनों देश नागोर्नो-कराबाख क्षेत्र में भीषण युद्ध लड़ चुके हैं और एक बार फिर से लड़ाई शुरू हो गई है।
कौन है लड़ाई शुरू करने का जिम्मेदार?
दोनों पक्षों ने लड़ाई के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया है और एक बयान में आर्मीनिया के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि, अजरबैजान ने मंगलवार को 00:05 बजे (20:05 GMT) गोरिस, सोक और जर्मुक शहरों की दिशा में अर्मेनियाई सैन्य ठिकानों के खिलाफ "भारी गोलाबारी" शुरू कर दी। अजरबैजानी सैनिकों ने ड्रोन के साथ-साथ "तोपखाने और बड़े-कैलिबर फायरआर्म्स" का इस्तेमाल किया है। बयान में कहा गया है कि, "आर्मीनिया के सशस्त्र बलों ने एक जवाबी प्रतिक्रिया शुरू कर दी।" लेकिन अजरबैजान के रक्षा मंत्रालय ने आर्मेनिया पर सीमावर्ती क्षेत्रों दशकेसन, केलबाजार और लाचिन जिलों के पास "बड़े पैमाने पर विध्वंसक कृत्यों" को अंजाम देने का आरोप लगाया है और कहा है कि, हमले में उसकी सेना को भारी नुकसान हुआ है। हालांकि, अजरबैजान की तरफ से मारे गये सैनिकों की निश्चित संख्या नहीं बताई गई है।
अमेरिका ने जताई चिंता
वहीं, अमेरिका ने कहा कि वह हमलों की खबरों को लेकर बेहद चिंतित है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने सोमवार को कहा कि, "जैसा कि हमने लंबे समय से स्पष्ट किया है, संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता है।" उन्होंने कहा कि "हम किसी भी सैन्य शत्रुता को तुरंत समाप्त करने का आग्रह करते हैं।" साल 2020 में लड़ी गई लड़ाई के बाद से आर्मीनिया-अजरबैजान सीमा पर लड़ाई की लगातार खबरें आती रही हैं। पिछले हफ्ते आर्मेनिया ने अजरबैजान पर सीमा पर हमले में अपने एक सैनिक को मारने का आरोप लगाया था। पिछले महीने अगस्त में, अजरबैजान ने कहा कि, उसने एक सैनिक खो दिया है, और कराबाख सेना ने कहा कि उसके दो सैनिक मारे गए और एक दर्जन से अधिक घायल हो गए। पड़ोसियों ने नागोर्नो-कराबाख क्षेत्र, अज़रबैजान में अर्मेनियाई-आबादी वाले एन्क्लेव पर दो युद्ध लड़े हैं।
क्यों है दोनों देशों के बीच विवाद?
दोनों देशों के बीच का ये संघर्ष पहली बार 1980 के दशक के अंत में शुरू हुआ था, जब दोनों पक्ष सोवियत शासन के अधीन थे और आर्मेनिया बलों ने नागोर्नो-कराबाख के पास के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। उस क्षेत्र को लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अजरबैजान के क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है, लेकिन उस क्षेत्र में भारी तादाद में आर्मेनिया के नागरिक रहते हैं। इस क्षेत्र में चलने वाले संघर्ष की वजह से अभी तक 30 हजार से ज्यादा आम नागरिक मारे जा चुके हैं। अज़रबैजान ने 2020 की लड़ाई में उन क्षेत्रों को फिर से हासिल कर लिया, जो एक रूसी हस्तक्षेप के बाद खत्म हो गया था और फिर हजारों निवासी अपने घरों में लौट आए थे, जिन्हें जंग की वजह से भागना पड़ा था। साल 2020 में छह सप्ताह के युद्ध में 6,500 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। दोनों देशों के नेताओं ने स्थायी शांति स्थापित करने के उद्देश्य से एक संधि तक पहुंचने के लिए कई बार मुलाकात की है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है।
बातचीत से भी विवाद का अंत नहीं
अप्रैल-मई में ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ की मध्यस्थता वाली वार्ता के दौरान, अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव और आर्मेनिया प्रधानमंत्री निकोल पशिनियन ने भविष्य की शांति संधि पर "अग्रिम चर्चा" पर सहमति व्यक्त की थी। आर्मेनिया सरकार के अनुसार, प्रधानमंत्री पशिनियन ने मंगलवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन के साथ नवीनतम संघर्षों पर अलग-अलग फोन पर बात की है। आर्मेनिया सरकार ने कहा कि, प्रधानमंत्री ने अजरबैजानी सशस्त्र बलों की "उकसाने वाली, आक्रामक कार्रवाई" की निंदा की और "अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से पर्याप्त प्रतिक्रिया" का आह्वान किया है।
अजरबैजान के साथ मुस्लिम देश
आर्मेनिया और अजरबैजान कभी पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा थे, सोवियत संघ के टूटने के बाद दोनों देश स्वतंत्र हो गए। आर्मीनिया एक ईसाई बहुल देश है, जबकि अजरबैजान मुस्लिम आबादी वाला देश है। इसके साथ ही अजरबैजान में तुर्की मूल के कई मुस्लिम रहते हैं। ऐसे में अजरबैजान को मुस्लिम देशों का समर्थन मिलता है। वहीं, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावे किए जाते रहे हैं, कि पाकिस्तानी सैनिक अजरबैजान सैनिकों की कथित तौर पर मदद करते रहे हैं। वहीं, आर्मेनियाई अधिकारियों ने कई बार आरोप लगाया है कि, अजरबैजान हमले में तुर्की ड्रोन और एफ -16 लड़ाकू जेट का इस्तेमाल कर चुका है।
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