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चीन को लेकर अंबेडकर की भविष्यवाणी सच साबित, बाबा साहेब की बात ना मानकर नेहरू ने की गलती?

इतिहास में पीछे मुड़कर देखें, खासकर 1962 के युद्ध और चीन द्वारा अक्साई चिन पर कब्जा करने के बाद पता चलता है, कि अंबेडकर की भविष्यवाणी सही साबित हुई थी।

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नई दिल्ली, मई 29: क्या चीन को लेकर बाबा साहब अंबेडकर की बात ना मानकर भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गलती कर दी? पिछले दिनों कई विश्लेषकों ने बाबा साहेब अंबेडकर की चीन नीति और पंडित नेहरू के 'चीन प्रेम' को लेकर कई लेख लिए हैं, जिसमें कहा गया है कि, बी.आर. अंबेडकर कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित चीन के साथ दोस्ताना रवैया रखने के विरोधी थी और बीआर अंबेडकर चाहते थे, कि भारत को लोकतांत्रिक देश अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बढ़ावा देना चाहिए।

अंबेडकर बनाम नेहरू की नीति

अंबेडकर बनाम नेहरू की नीति

विश्लेषकों का कहना है कि, बीआर अंबेडकर पंडित नेहरू की सबसे बड़ी गुट निरपेक्ष नीति के प्रमुख आलोचकों में से एक थे और बीआर अंबेडकर चाहते थे, कि भारत को कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा नहीं देते हुए लोकतांत्रिक देश अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बढ़ावा देना चाहिए। चीन और उसके विस्तारवादी दृष्टिकोण के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए बाबा साहेब ने कहा था कि, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कम्युनिस्ट चीन के साथ जुड़ाव की नीति एक गलती थी, इसके बजाय भारत अपनी विदेश नीति को अमेरिका के साथ बेहतर ढंग से जोड़ सकता था, क्योंकि दोनों देश लोकतांत्रिक हैं।

सही हुई बाबा साहेब की भविष्यवाणी?

सही हुई बाबा साहेब की भविष्यवाणी?

इतिहास में पीछे मुड़कर देखें, खासकर 1962 के युद्ध और चीन द्वारा अक्साई चिन पर कब्जा करने के बाद पता चलता है, कि अंबेडकर की भविष्यवाणी सही साबित हुई थी। 1951 में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करते हुए बाबा साहेब अंबेडकर ने चीन का जिक्र करते हुए कहा था कि, 'भारत को संसदीय लोकतंत्र और तानाशाही के कम्युनिस्ट तरीके के बीच चयन करना चाहिए और फिर अंतिम फैसले पर पहुंचना चाहिए'। इसके साथ ही बाबा साहब अंबेडकर नेहरू के 'हिंदी-चीनी भाई भाई' दृष्टिकोण के विरोधी थे और भारत की तिब्बत नीति से असहमत थे। और आज अगर अबंडेकर की चीन नीति को देखें, तो बाबा साहेब का चीनी इरादों को लेकर उनका आकलन आज फिर सही साबित होता दिखाई दे रहा है।

विदेश नीति पर बाबा साहेब के विचार

विदेश नीति पर बाबा साहेब के विचार

बाबा साहेब अंबेडकर भारत के एक आदर्शवादी विदेश नीति के रुख की सीमाओं से अवगत थे। उन्होंने एक आदर्श भू-राजनीतिक व्यवस्था को साकार करने के प्रयास के बजाय देश के रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने और समस्याओं को हल करने के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण का समर्थन किया था। वह देश के सामरिक लाभ को अधिकतम करने के लिए शक्ति और बुद्धि का उपयोग करने के खिलाफ भी नहीं थे और नेहरू के धैर्य की आलोचना की, जो इस धारणा पर था, कि एक वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था के निर्माण के लिए प्रतीक्षा करनी चाहिए, जब वैश्विक शक्तियां अच्छी नियत के साथ आगे बढ़ेंगी। यानि, बाबा साहेब का मानना था, कि भारत को किसी वैश्विक शक्ति की अच्छी नियत के इंतजार में नहीं रहना चाहिए, बल्कि भारत को अपनी सामरिक शक्ति को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए।

पंचशील सिद्धांत के खिलाफ थे अंबेडकर

पंचशील सिद्धांत के खिलाफ थे अंबेडकर

इसके साथ ही बाबा साहेब पंडित नेहरू के पंचशील सिद्धांत के भी खिलाफ थे और उनका मानना था कि, राजनीति में पंचशील आदर्शों के लिए कोई स्थान नहीं है। राजनीति विज्ञान और संविधान के महान विशेषज्ञ का मानना था कि, भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट और एक व्यावहारिक तिब्बत नीति जीतने के लिए कड़ी मेहनत की होगी। चीन पर भरोसा करने के बजाय, अम्बेडकर ने महसूस किया कि लोकतंत्रों की प्राकृतिक समानता पर आधारित भारत-अमेरिका संबंधों से भारत को विदेशी सहायता मिलेगी और राष्ट्रीय बोझ कम होगा।

लोकतांत्रिक गुट बनाने के समर्थक थे अंबेडकर

लोकतांत्रिक गुट बनाने के समर्थक थे अंबेडकर

इतना ही नहीं, बल्कि बीआर अंबेडकर का मानना था कि, कम्युनिस्ट और अन्य निरंकुश शासनों के विस्तारवाद का मुकाबला करने के लिए भारत को एशिया और उससे बाहर के लोकतांत्रिक देशों के साथ मिलकर एक लीग बनाने पर भी विचार करना चाहिए और इसके लिए उन्होंने अपना विचार भी रखा था। आज अगर हम अपने आसपास देखें तो अंबेडकर की व्यावहारिक विदेश नीति की भविष्यवाणियां सही साबित हो रही हैं। अम्बेडकर ने चीन के विस्तारवादी दृष्टिकोण के खिलाफ चेतावनी दी थी। जबकि चीन पड़ोस में क्षेत्रीय विस्तारवाद के लिए अपनी सैन्य शक्ति का उपयोग कर रहा है, वह अपने "पैसे" का उपयोग अपनी रणनीतिक पहुंच बढ़ाने के लिए कर रहा है, भले ही इसका मतलब अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन हो और सहयोगियों को कर्ज के जाल में फंसाता हो। इसके साथ ही बाबा साहेब अंबेडकर विकास और रणनीतिक साझेदारी के लिए सहयोग करने की कम्युनिस्ट चीन की मंशा पर संदेह करते थे और इसको लेकर उन्होंने भविष्यवाणी की थी। 1950 के दशक की शुरुआत में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद से चीनी विस्तारवाद अपने पड़ोस में बेरोकटोक जारी है और इसने दक्षिण और मध्य एशियाई पड़ोस के छोटे देशों को भी नहीं बख्शा है।

चीन के विस्तारवाद के खिलाफ चेतावनी

चीन के विस्तारवाद के खिलाफ चेतावनी

बाबा साहब ने अपने विचार उसी वक्त रखे थे, जब भारत को आजादी मिली थी और पंडित नेहरू की सरकार भारतीय विदेश नीति का निर्धारण कर रहे थे। वहीं, देखा जाए तो चीन ने तिब्बत, पूर्वी तुर्कमेनिस्तान, दक्षिणी मंगोलिया और हांगकांग और ताइवान में भी किसी न किसी रूप में विस्तारवाद की अपनी नीति का पालन किया है। जबकि पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन में दक्षिण चीन सागर में चीन की हालिया और स्पष्ट विस्तारवाद की नीति को बड़ी चिंता के साथ देख रही है, दक्षिण एशिया में छोटे पड़ोसी देशों में इसकी घुसपैठ कम देखी गई है। नेपाल और भूटान इसके उदाहरण हैं। नेपाल के साथ दोस्ती के अपने दावे के बावजूद, चीन ने "सलामी स्लाइसिंग" के माध्यम से पूर्व के कुछ हिस्सों पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया है। चीन ने डोलखा, गोरखा, दारचुला, हुमला, सिंधुपालचौक, संभुवासभा और रासुवा सहित नेपाल के सात सीमावर्ती जिलों में घुसकर जमीन पर कब्जा कर लिया है।

भूटान को भी चीन ने नहीं बख्शा

भूटान को भी चीन ने नहीं बख्शा

चीन ने भी भूटान को नहीं बख्शा, जो भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित एक छोटा सा देश है। 1951 में प्रकाशित एक चीनी नक्शे में चीन में भूटान, नेपाल और सिक्किम के क्षेत्रों को अपना दिखाया था और फिर चीनी सैनिकों और तिब्बती चरवाहों की घुसपैठ ने भूटान में तनाव पैदा कर दिया है। 29 जुलाई 2017 को, भूटान, भारत और चीन के मीटिंग प्वाइंट पर डोकलाम में एक सड़क के निर्माण के खिलाफ भूटान ने चीन के सामने विरोध प्रदर्शन किया। चीन और भारत के बीच एक गतिरोध तब से भारतीय राज्य सिक्किम से सटे त्रिकोणीय जंक्शन पर समाप्त हो गया है जब भारतीय सेना ने एक सड़क के चीनी निर्माण को रोक दिया था जिसे भूटान और भारत, भूटानी क्षेत्र मानते थे।

चीन के इरादे को समझ गये थे बाबा साहेब?

चीन के इरादे को समझ गये थे बाबा साहेब?

दरअसल, माओ ने तिब्बत (लद्दाख, नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश) की पांच अंगुलियों को "मुक्त" करने का इरादा जताया था, और ये थ्योंरी प्राचीन काल में झोंगनानहाई-आधारित शासनों के क्षेत्रीय आउटरीच पर आधारित है जब आधुनिक राज्य ना ही पैदा हुए थे और ही उनके नक्शे बने थे। पीआरसी का यह दावा कि 'तिब्बत कम से कम 900 वर्षों से चीन का हिस्सा है' जो पूरी तरह से गलत है। चीन अक्सर इस ऐतिहासिक तथ्य को झुठलाने की कोशिश करता है कि बौद्ध धर्म चीन सहित दुनिया के अन्य हिस्सों में लोकप्रिय होने से पहले भारत में पैदा हुआ और पला-बढ़ा। यह कथा प्राचीन काल से चीन को एक सांस्कृतिक शक्ति के रूप में स्थापित करने की इच्छा से प्रेरित है। अपने अन्य सांस्कृतिक आंदोलनों के बारे में चीनी कथा सही हो सकती है, लेकिन बौद्ध धर्म अनिवार्य रूप से भारत में पैदा हुआ और विकसित हुआ, जैसा कि दुनिया भर में व्यापक रूप से माना जाता है। लेकिन चीन कहता है, कि बौद्ध धर्म चीन में पैदा हुआ। लिहाजा, कई विश्लेषकों का मानना है कि, चीन के खिलाफ विदेश नीति बनाने को लेकर भारत ने गलती की थी और अगर पंडित नेहरू अंबेडकर के मुताबिक विदेश नीति बनाते, तो शायद भारत की स्थिति अलग होती।

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English summary
Predictions made by Babasaheb Ambedkar about China are proving to be true. The question arises, did Pandit Nehru make a mistake by not listening to BR Ambedkar?
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