गोरखपुर में हर 'टोटका' आजमा रहे हैं योगी आदित्यनाथ
पिछले 16 सालों में गोरखपुर में हुए लोकसभा या विधानसभा के सभी चुनावों में भारतीय जनता पार्टी एक 'खास टोटके' का इस्तेमाल करती रही है.
हर बार गोरखपुर शहर में होने वाली आखिरी चुनावी सभा टाउन हॉल स्थित गांधी प्रतिमा के पास होती है जिसे योगी आदित्यनाथ संबोधित करते हैं.
यह सिलसिला साल 2002 से शुरू हुआ था
पिछले 16 सालों में गोरखपुर में हुए लोकसभा या विधानसभा के सभी चुनावों में भारतीय जनता पार्टी एक 'खास टोटके' का इस्तेमाल करती रही है.
हर बार गोरखपुर शहर में होने वाली आखिरी चुनावी सभा टाउन हॉल स्थित गांधी प्रतिमा के पास होती है जिसे योगी आदित्यनाथ संबोधित करते हैं.
यह सिलसिला साल 2002 से शुरू हुआ था जब योगी ने भाजपा के प्रत्याशी और तीन बार के विधायक और मंत्री रहे शिव प्रताप शुक्ल के खिलाफ हिंदू महासभा के बैनर से अपना उम्मीदवार लड़ाया और जिताया भी था.
उस चुनाव ने योगी का कद इतना बड़ा कर दिया कि भाजपा को इस इलाके में अपनी कमान उनके हवाले करनी पड़ी थी.
तब से हर चुनाव में योगी आखिरी सभा इसी गांधी प्रतिमा के पास करते हैं.
मतदान प्रतिशत बढ़ाने पर ज़ोर
गुरुवार शाम एक बार फिर वह इसी जगह पर एक नई भूमिका में थे जहां वे 20 साल से उन्हें जिता रहे वोटरों से अपनी जगह पार्टी के एक नए उम्मीदवार को जिताने की अपील कर रहे थे.
अपने भाषण में हमेशा की तरह उन्होंने विरोधियों पर तीखा हमला किया, सरकार के मुखिया के तौर पर इस इलाके के लिए कराए जा रहे कामों का ब्यौरा दिया, पार्टी को जिताने की अपील की और इन सारी बातों के साथ एक नितांत अलग किस्म की बात भी की.
अपने भाषणों में योगी ने खास तौर पर शहर के वोटरों से मतदान प्रतिशत बढ़ाने की अपील की और कम से कम साठ फ़ीसदी मतदान सुनिश्चित करने को कहा.
जाहिर है कि इस इलाके की राजनीतिक नब्ज को सबसे बेहतर ढंग से पहचानने वाले योगी आदित्यनाथ उस 'आंच' की काट खोज रहे थे जो सपा- बसपा गठबंधन और निषाद पार्टी, पीस पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल जैसी पार्टियों के एका के चलते अचानक बेहद बढ़ गई है.
भाजपा को इस बात का अंदाजा है कि गोरखपुर संसदीय सीट के ग्रामीण क्षेत्रों में यह गठबंधन कुछ गुल खिला सकता है और इसकी काट के लिए उस शहरी क्षेत्र में मतदान प्रतिशत बढ़ाना ही सबसे सुरक्षित विकल्प है जो परंपरागत रूप से खुद को भाजपा समर्थक साबित करता आया है.
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मैदान में स्टार प्रचारक
सपा- बसपा का गठबंधन भले ही राजनीतिक पटल पर देर से आया हो मगर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक पार्टी को इस बात का अंदाजा पहले से लग गया था और शायद इसीलिए इस इलाके में 20 फरवरी से ही खास तौर पर दलित और पिछले वर्ग के नेताओं के धुआंधार दौरे शुरू कर दिए गए थे.
पार्टी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ला के अलावा प्रदेश के आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों ,सभी क्षेत्रीय विधायकों और सांसदों के साथ साथ एक दर्जन से अधिक दलित नेताओं को इस इलाके में ग्रामीण क्षेत्रों को मथने के लिए लगा दिया था. प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल के निर्देश पर महीना भर पहले से यहाँ जम गए प्रदेश मंत्री अनूप गुप्ता इसकी निगरानी कर रहे थे.
विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में अलग-अलग जाति समूह वाले इलाकों की पहचान की गई और वहां उसी जाति के नेता, विधायक या मंत्री भेजे गए. अनिल राजभर, अनुपमा जायसवाल और दारा सिंह चौहान या जय प्रकाश निषाद जैसे नेताओं को ऐसे इलाकों में ही लगातार भेजा गया जहां उनके सजातीय वोटरों की तादाद ज्यादा थी. यहां तक कि सिद्धार्थ नाथ सिंह का भी एक कार्यक्रम चित्रगुप्त मंदिर में कायस्थ समुदाय के बीच हुआ. जाहिर है कि पार्टी पिछले तमाम चुनावों की तरह इस चुनाव को भी पूरी गंभीरता से ले रही है.
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर अशोक सक्सेना कहते हैं, "अमित शाह के नेतृत्व में लड़े गए सभी चुनावों में भाजपा की ऐसी तैयारी साफ दिखती है. वह योजनाबद्ध ढंग से चुनाव लड़ती है."
योगी के भरोसे बीजेपी
हालांकि अपने मजबूत संगठन, सत्ता में होने के फायदों और नेताओं की बड़ी फौज के बावजूद पार्टी इस चुनाव को योगी को केंद्र में रखकर ही लड़ती दिखाई दे रही है. वरिष्ठ पत्रकार दीप्त भानु डे के मुताबिक, "पार्टी बेहतर जानती है कि जातीय समीकरणों की काट के लिए योगी ही सबसे मुफीद हैं."
बीते एक पखवाड़े में यहां दौरा करने वाले सभी बड़े नेता अपने भाषण में मतदाताओं से योगी के लिए वोट डालने की बात कहते सुने जा सकते हैं. खुद भाजपा उम्मीदवार उपेंद्र दत्त शुक्ल अपने हर संबोधन में यही कह रहे हैं कि वो सिर्फ और सिर्फ योगी जी के प्रतिनिधि हैं और योगी ने उन्हें सिर्फ अपनी सीट ही नहीं बल्कि नया जीवन भी दिया है.
उल्लेखनीय है कि इस महीने के शुरुआती दिनों में उन्हें अचानक प्रचार के बीच लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती होना पड़ा था जहां उनका एक ऑपरेशन किया गया.
शहर में उनकी अनुपस्थिति नहीं महसूस की गई क्योंकि योगी खुद ही सभी मंचों पर मौजूद रहे . पिछले एक पखवाड़े में उन्होंने गोरखपुर में चार दौरे किए है जिसमें से तीन तो इस महीने के पहले 9 दिनों में किए गए हैं.
पार्टी के एक वरिष्ठ विधायक स्वीकार करते हैं कि योगी ने खुद अपने चुनाव के लिए भी इतने दौरे नहीं किए थे.
दावे में कितना दम?
यही बात गठबंधन के नेताओं को गदगद कर रही है. सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद कहते हैं, "सत्ता उनकी है. सरकार उनकी है लेकिन उनकी बेचैनी इसीलिए बढ़ रही है क्योंकि उन्हें गठबंधन की ताकत का अंदाजा हो गया है."
शुक्रवार को प्रचार का आखिरी दिन है और उस दिन योगी चार सभाओं को संबोधित करेंगे. अलबत्ता अखिलेश यादव और राज बब्बर को छोड़कर विपक्ष का कोई और चमकीला नाम अभी तक यहां नहीं आया है.
मायावती भी नहीं आईं. इसकी वजह क्या हो सकती है? यह पूछने पर बसपा के जोनल कोऑर्डिनेटर घनश्याम खरवार कहते हैं, "उनका आदेश हर कार्यकर्ता के लिए इतना महत्वपूर्ण है कि वह सब कुछ छोड़कर काम पर लग जाता है. हमारे काम का असर हमारे विपक्षी भी ठीक से समझ रहे हैं."
दावे सबके हैं . 48 घंटे बाद ईवीएम मशीनें इस बात का अनुभव करना शुरू कर देंगी कि इस इलाके में पखवाड़े भर से चल रहे इस दांव-पेंच में दरअसल किस का असर गहरा रहा है.
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