क्या सबसे लंबे वक़्त तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड तोड़ पाएंगे नवीन पटनायक?
नवीन के बारे में मशहूर है कि वो शायद भारत के सबसे चुप रहने वाले राजनेता हैं जिन्हें शायद ही किसी ने ऊँची ज़ुबान में बात करते सुना है.
ओडिशा की राजनीति में नवीन पटनायक के उनके बीगल कुत्तों 'ब्रूनो' और 'रॉक्सी' के अलावा कोई दोस्त नहीं है. नवीन की ज़िंदगी में नाटकीयता के लिए कोई जगह नहीं है.
अच्छा भाषण देना उनके गुणों में शामिल नहीं है. अच्छा भाषण देना तो दूर वो अपने लोगों की भाषा तक नहीं बोल सकते हैं. उनके सभी भाषण उनके साथी 'रोमन स्क्रिप्ट' में तैयार करते हैं और वो उसे 'रोबोट' की तरह पढ़ भर देते हैं.
कई बार वो शब्दों का ग़लत उच्चारण करते हैं. लेकिन उनके लोग इससे नाराज़ होने के बजाए अपनी ख़ुशी का इज़हार करते हैं.
नवीन पटनायक की जीवनी लिखने वाले रूबेन बनर्जी बताते हैं, ''जब नवीन साल 2000 में ओडिशा विधानसभा का चुनाव लड़ने आए तो उन्हें उड़िया बोलनी नहीं आती थी, क्योंकि तब तक उन्होंने लगभग अपनी पूरी उम्र ओडिशा के बाहर बिताई थी. मुझे याद है वो अपने भाषण के शुरू में 'रोमन' में लिखी एक लाइन बोलते थे, 'मोते भॉलो उड़िया कॉहबा पाई टिके समय लगिबॉ.''
बिना उड़िया बोले लोगों से संवाद
''लेकिन इसका उन्हें फ़ायदा हुआ. उस समय ओडिशा में राजनीतिक वर्ग इतना बदनाम हो चुका था कि लोगों को नवीन का उड़िया न बोल पाना अच्छा लग गया. लोगों ने सोचा कि इसमें और दूसरे राजनेताओं में फ़र्क है. ये ही हमें बचाएंगे. इसलिए उन्होंने नवीन को मौका देने का फ़ैसला किया.''
''नवीन अभी भी ढ़ंग से उड़िया नहीं बोल सकते, लेकिन उस समय उन्होंने लोगों से बिना उनकी ज़ुबान बोले जो संवाद स्थापित किया, वो अब भी बरकरार है. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि ममता बनर्जी बांग्ला में बात किए बिना बंगाल के लोगों से वोट मांग सकती हैं? अब तो हालत ये है कि नवीन लोगों से उनकी भाषा में बात करें या अंग्रेज़ी में बात करें या फ़्रेंच भी बोलें तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता.''
ग़रीबी के बावजूद सड़कों पर बहुत कम भिखारी
नवीन पटनायक के ओडिशा में कई अंतर्विरोध हैं. इस राज्य में भारत के सबसे ग़रीब लोग रहते हैं. फिर भी आपको भुवनेश्वर, कटक और पुरी की सड़कों पर कुछ ही भिखारी दिखाई देंगे.
ओडिशा का साक्षरता प्रतिशत शायद भारत में सबसे कम है, लेकिन तब भी प्रतियोगात्मक परीक्षाओं में ओडिशा से निकलने वालों की तादाद भारत के अन्य इलाकों से ज़्यादा है.
सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामले में भी ओडिशा की गिनती भारत के चोटी के राज्यों में नहीं होती फिर भी यहाँ के शहर अपेक्षाकृत साफ़ दिखाई देते हैं, जहाँ सड़कों पर नियम से झाड़ू दी जाती है और जहाँ भारत के अन्य हिस्सों की तरह नालियाँ बंद नहीं होतीं.
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भारत में नवीन जैसे राजनीतिज्ञ बहुत कम
नवीन के बारे में मशहूर है कि वो शायद भारत के सबसे चुप रहने वाले राजनेता हैं जिन्हें शायद ही किसी ने ऊँची ज़ुबान में बात करते सुना है.
हाल ही में नवीन पटनायक की जीवनी लिखने वाले अंग्रेज़ी पत्रिका आउटलुक के संपादक रूबेन बनर्जी बताते हैं, ''आप उनसे मिलेंगे तो पाएंगे कि उन से बड़ा मृदु- भाषी, शिष्ट, संभ्रांत और कम बोलने वाला शख़्स हैं ही नहीं.. कभी कभी तो लगता है कि वो राजनेता हैं ही नहीं. लेकिन सच ये है कि भारत में उनसे बड़े राजनीतिज्ञ कम लोग हैं.''
''वो न सिर्फ़ राजनीतिज्ञ हैं बल्कि निर्मम राजनीतिज्ञ हैं. इस हद तक कि पहुंचे हुए राजनीतिज्ञ भी उनका मुक़ाबला नहीं कर सकते. कुछ लोग कहते हैं कि राजनीति उनकी रगों में है. लेकिन ये भी सच है कि अपने जीवन के शुरुआती 50 सालों में उन्होंने राजनीति की तरफ़ रुख़ नहीं किया. लेकिन एक बात पर सभी एकमत हैं कि नवीन बहुत चालाक हैं. ओडिशा में उनकी टक्कर का राजनेता दिखाई नहीं देता.''
तीन देशों के हीरो बीजू पटनायक
नवीन पटनायक को राजनीति विरासत में मिली थी. उनके पिता बीजू पटनायक न सिर्फ़ ओडिशा के मुख्यमंत्री थे बल्कि जाने माने स्वतंत्रता सेनानी और पायलट थे. दूसरे विश्व युद्ध, इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम और 1947 में कश्मीर पर पाकिस्तान के हमले के दौरान उनकी भूमिका को अभी तक याद किया जाता है.
बीजू पटनायक के जीवनीकार सुंदर गणेशन अपनी किताब 'द टॉल मैन' में लिखते हैं, ''बीजू पटनायक ने दिल्ली की सफ़दरजंग हवाई पट्टी से श्रीनगर के लिए अपने डकोटा डी सी-3 विमान से कई उड़ानें भरी थीं. 17 अक्तूबर 1947 को वो लेफ़्टिनेंट कर्नल देवान रंजीत राय के नेतृत्व में 1- सिख रेजिमेंट के 17 जवानों को ले कर श्रीनगर पहुंचे थे.''
''उन्होंने ये देखने के लिए कि हवाई पट्टी पर पाकिस्तानी सैनिकों का कब्ज़ा तो नहीं हो गया था, दो बार बहुत नीची उड़ान भरी थी. प्रधानमंत्री नेहरू की तरफ़ से उन्हें साफ़ निर्देश थे कि अगर उन्हें ये लगे कि हवाई पट्टी पर पाकिस्तान का नियंत्रण हो गया है तो वो वहाँ पर अपना विमान न उतारें.''
''बीजू पटनायक ने विमान को ज़मीन से कुछ ही मीटर ऊपर उड़ाते हुए देखा कि विमान पट्टी पर एक भी शख़्स मौजूद नहीं था. उन्होंने अपने विमान को नीचे उतारा और वहाँ पहुंचे 17 भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी हमलावरों को खदेड़ने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.''
एक बार उन्होंने बाकू, अज़ेरबैजान से उड़ान भर कर स्टेलिनग्राड में जर्मन सैनिकों से घिरे रूसी सैनिकों को हथियार पहुंचाए थे. उसी तरह 1942 में बर्मा में जापान के कब्ज़े के दौरान भारी बमबारी के बीच ब्रिटिश लोगों को वहाँ से बचा कर लाए थे. जब बीजू पटनायक का देहांत हुआ तो उनके ताबूत पर तीन देशों के झंडे लिपटे हुए थे - भारत, रूस और इंडोनेशिया.
दिल्ली के पार्टी सर्किट में अच्छी पैठ
बीजू पटनायक के रहते नवीन पटनायक का राजनीति से कोई वास्ता नहीं था. वो दिल्ली में रहते थे और यहाँ के पार्टी सर्किट में उनकी अच्छी पहुंच रहती थी.
रूबेन बनर्जी बताते हैं, ''वो 'सोशलाइट' थे. दून स्कूल में पढ़ा करते थे, जहाँ संजय गांधी उनके 'क्लास- मेट' हुआ करते थे. कला और संस्कृति में उनकी बहुत दिलचस्पी हुआ करती थी. वो यूरोपीय लहजे में अंग्रेज़ी बोलते थे. उन्हें 'डनहिल' सिगरेट से बहुत प्यार था और वो 'फ़ेमस ग्राउस' विह्स्की के भी बहुत शौकीन थे.''
''दिल्ली के मशहूर ओबेरॉय होटल में उनका एक बुटीक होता था, 'साईकेडेल्ही.' उन्होंने 1988 में आई मर्चेंट आईवरी की फ़िल्म 'द डिसीवर्स' में एक छोटा सा रोल भी किया था. अमरीकी राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी की पत्नी जैकलीन कैनेडी भी उनकी दोस्त थीं. साल 1983 में जब वो भारत की यात्रा पर आई थीं तो नवीन उनके साथ जयपुर, जोधपुर, लखनऊ और हैदराबाद गए थे.''
राजीव और सोनिया गांधी से सामना
मशहूर पत्रकार तवलीन सिंह ने अपनी मशहूर किताब 'दरबार' में साल 1975 की दिल्ली की राजनीतिक गतिविधियों का बहुत सजीव चित्रण खींचा है. वो लिखती हैं, ''आपातकाल की घोषणा के कुछ दिनों बाद मार्तंड सिंह ने मुझे और नवीन पटनायक को खाने पर बुलाया. हम दोनो अपने 'ड्रिक्स' ले कर उनकी बैठक के कोने में बैठे हुए थे. अचानक हमने देखा कि सामने के दरवाज़े से राजीव गाँधी और सोनिया अंदर आ रहे हैं.''
''राजीव ने सफ़ेद रंग का कलफ़ लगा कुर्ता पायजामा पहन रखा था, जबकि सोनिया ने एक सफ़ेद ड्रेस पहन रखी थी जो उनके टख़नों तक आ रही थी. नवीन ने कहा कि वो उनके पास नहीं जाएंगे, क्योंकि शायद उन्हें मुझसे मिलना अटपटा लगे, क्योंकि कुछ ही दिन पहले राजीव की माँ इंदिरा ने मेरे पिता बीजू पटनायक को जेल में डाला था.''
''तभी मार्तंड की भाभी नीना हमारे पास आ कर बोलीं कि सोनिया गांधी पूछ रही हैं कि कोने में नवीन पटनायक तो नहीं खड़े हैं? हम दोनों ने सोचा कि चूँकि हमें पहचान ही लिया गया है, तो क्यों न उनके पास चल कर उन्हें 'हैलो' कर ही दिया जाए.''
''जब हम उनके पास पहुंचे तो नवीन ने सोनिया की सफ़ेद फ़्रॉक की तारीफ़ करते हुए कहा, 'क्या इसे आपने 'वेलेन्टिनो' से ख़रीदा है?' सोनिया ने कहा, 'नहीं, नहीं. इसे ख़ान मार्केट में मेरे दर्ज़ी ने सिला है'.''
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होटल में पड़ाव
रूबेन बनर्जी बताते हैं, ''इंडिया टुडे ने मुझे 1998 में अस्का संसदीय क्षेत्र से नवीन पटनायक का चुनाव कवर करने के लिए भेजा था. जब मैं अपने फ़ोटोग्राफ़र के साथ वहाँ पहुंचा तो मुझे नवीन पटनायक कहीं दिखाई नहीं दिए. बहुत मुश्किल से मेरा उनके एक सहयोगी से संपर्क हो पाया.''
नवीन पटनायक ने उन्हें अगले दिन गोपालपुर बीच पर मरमेड होटल पर आने के लिए कहा. रूबेन जब वहाँ पहुंचे तो नवीन का वहाँ कोई अता-पता नहीं था. तभी वहाँ पर एक कोल्ड - ड्रिंक बेचने वाले ने उनसे उनके वहाँ आने का कारण पूछा.
जब उन्होंने बताया कि वो नवीन पटनायक से मिलने आए हैं, तो वो हंसने लगा और बोला, आपको नवीन यहाँ नहीं बल्कि ओबेरॉय गोपालपुर में मिलेंगे. अब इस होटल का नाम 'मेफ़ेयर पाम बीच रिसॉर्ट' हो गया है. जब रूबेन वहाँ पहुंचे तो देखा कि पूरी दुनिया से बेख़बर नवीन 'पूल' के बग़ल में बैठे सिगरेट पी रहे हैं.
अच्छे लड़के की छवि के लिए झूठ बोलने के लिए भी तैयार
नवीन इस बात पर राज़ी हो गए कि रूबेन उनके साथ चुनाव प्रचार पर चलेंगे. लेकिन इसके लिए उन्होंने दो शर्तें रखीं. पहली ये कि वो अपनी रिपोर्ट में ये नहीं बताएंगे कि वो प्रचार के दौरान ओबेरॉय होटल में रह रहे हैं और दूसरा ये कि वो सिगरेट पीते हैं.
शायद वो अपने मतदाताओं को ये नहीं बताना चाहते थे कि भारत के सबसे पिछड़े इलाके के मतदाताओं से वोट मांगने वाला ये शख़्स एक पाँच सितारा होटल में रह रहा है. वो अपने अच्छे लड़के की छवि को किसी क़ीमत पर खोना नहीं चाहते थे और इसके लिए वो झूठ बोलने के लिए भी तैयार थे.
बिजॉय महापात्रा का राजनीतिक जीवन किया समाप्त
मुख्यमंत्री बनने के बाद नवीन पटनायक की राजनीतिक परिपक्वता का नज़ारा जब मिला जब उन्होंने पार्टी के नंबर दो नेता बिजॉय महापात्रा का टिकट काट दिया.
रूबेन बनर्जी बताते हैं, ''मेरी नज़र में बिजॉय महापात्रा बहुत बड़े क्षेत्रीय नेता थे. वो बीजू बाबू के मंत्रिमंडल के भी सदस्य रह चुके थे. पर्चा भरने के आख़िरी दिन नवीन पटनायक ने पाटकुरा विधानसभा क्षेत्र से उनका पर्चा रद्द करके अतानु सब्यसाची को टिकट दे दिया.''
''समय सीमा समाप्त होने से कुछ मिनट पहले ही सब्यसाची ने अपना पर्चा दाख़िल किया. महापात्रा को इतना भी समय नहीं मिला कि वो किसी दूसरे क्षेत्र से अपना पर्चा दाख़िल कर पाते. महापात्रा ने मजबूर हो कर एक निर्दलीय उम्मीदवार तिर्लोचन बहेरा को समर्थन देने का फ़ैसला किया. बहेरा जीत भी गए.'
''महापात्रा उम्मीद लगाए बैठे थे कि वो उनके लिए अपनी सीट ख़ाली कर देंगे. लेकिन नवीन ने उनको भी अपनी तरफ़ फोड़ लिया. बहेरा ने वो सीट महापात्र के लिए नहीं ख़ाली की और उन्हें उपचुनाव लड़ कर विधान सभा पहुंचने का कोई मौक़ा नहीं मिला. मेरी नज़र में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी को इस तरह दरकिनार करने का ये तरीक़ा बहुत अनैतिक था.''
आईएएस अफ़सर प्यारीमोहन महापात्रा से भी किया किनारा
बिजॉय महापात्रा ही नहीं, उन्होंने अपने बहुत नज़दीकी आईएएस अफ़सर प्यारी मोहन महापात्रा से जिस तरह तरह किनारा किया, उससे भी लोग दंग रह गए.
रूबेन बनर्जी बताते हैं, ''प्यारी बाबू बहुत योग्य आईएएस अफ़सर थे. उनको हमेशा पता रहता था कि पार्टी में क्या हो रहा है. शुरू के दिनों में लोगों को आभास मिला कि' नवीन तो एक मुखौटा हैं. असली सत्ता तो प्यारी बाबू के हाथ में है.''
''ये छवि बनाने की कोशिश की गई कि प्यारी नवीन का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि असलियत ये थी कि नवीन प्यारी का इस्तेमाल कर रहे थे. उन दोनों के बीच साल 2008 से ही दूरी आनी शुरू हो गई थी, क्योंकि प्यारी बीबू भी बहुत महत्वाकाँक्षी थे.''
रूबेन बताते हैं कि प्यारी बाबू के निधन से पहले मेरी उनसे मुलाक़ात हुई थी. उन्होंने मुझे बताया था, 'समस्या तब से शुरू हुई जब 2009 में नवीन दिल्ली आए थे. उनकी बहन गीता मेहता भी दिल्ली गई हुई थीं. उन्होंने प्यारी बाबू को खाने पर बुलाया. नवीन की तबियत ठीक नहीं थी.'
''भोज के दौरान गीता ने कहा कि नवीन पर इतना दबाव रहता है, जिसकी वजह से उनकी तबियत भी ठीक नहीं रहती. आप क्यों नहीं उप मुख्यमंत्री बन जाते? नवीन को ये बात पसंद नहीं आई. उन्होंने सोचा कि जब उनकी सगी बहन इस तरह सोच सकती है, तो साढ़े चार करोड़ उड़िया लोग भी इसी तरह सोचते होंगे.''
''उसी दिन से प्यारी बाबू की उल्टी गिनती शुरू हो गई. बाद में प्यारी बाबू ने विधायकों की एक बैठक बुलाई थी. नवीन ने उन पर आरोप लगाया कि वो उनके ख़िलाफ़ बग़ावत करवा रहे हैं. धीरे-धीरे उनके पास नवीन के फ़ोन आने बंद हो गए और वो उनकी अनदेखी करने लगे. इससे पता चलता है कि नवीन राजनीतिक रूप से कितने चतुर हो चुके थे!''
दोनों दोस्तों से झाड़ा पल्ला
जब नवीन पटनायक पहली बार ओडिशा आए, तो वहाँ उनके सिर्फ़ दो क़रीबी दोस्त थे- एयू सिंह देव और जय पंडा. लेकिन इन दोनों के साथ भी उनकी दोस्ती अधिक दिनों तक नहीं चली और उन्हें भी पार्टी से बाहर जाना पड़ा.
उनका साथ छोड़ बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर चुके जय पंडा बताते हैं, ''नवीन शुरू से ही अंतर्मुखी थे. ज़्यादा बोलते नहीं थे. लेकिन वो जब कभी खाने पर हमारे साथ बैठते थे तो वो खुल कर बातें करते थे. साठ के दशक में वो देश के बाहर न्यूयॉर्क, मिलान और लंदन में रह चुके थे, इसलिए उनकी सोच संकुचित नहीं थी. पश्चिमी जगत के रॉक स्टार्स से भी उनकी दोस्ती थी.''
''जब वो 1997 में राजनीति में आए तो उन्होंने 2013-14 तक एक किस्म की राजनीति की और उसके बाद दूसरे किस्म की. वर्ष 2014 तक मुझे उनकी राजनीति पर गर्व था. वो सिद्धांतों की राजनीति थी. उन्होंने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाए थे.''
''लेकिन जब उनका तीसरा कार्यकाल शुरू हुआ तो उनके विचारों में परिवर्तन आना शुरू हो गया. कुछ नए लोगों ने आ कर उन्हें घेरना शुरू कर दिया, जिसकी वजह से ओडिशा पिछड़ना शुरू हो गया.''
लोगों ने की पंडा और नवीन के बीच ग़लतफ़हमी
मैंने जय पंडा से पूछा कि ऐसी क्या वजह थी कि नवीन पटनायक के इतने नज़दीक होने के बावजूद आप उनसे दूर होते चले गए, तो उनका कहना था, ''लोग शुरू से कोशिश कर रहे थे कि उनके और मेरे बीच ग़लतफ़हमी पैदा हो जाए. हम लोग इसके बारे में बातें भी करते थे और हंसा करते थे. एक हफ़्ते में तीन बार हम लोग खाने पर मिला करते थे.''
''लेकिन 2014 के बाद उनका एक नया गुट बन गया जो मेरे ख़िलाफ़ उनके कान भरने लगा. मैंने महसूस किया कि पहले जिन बातों को हम हँस कर उड़ा देते ते, उन्हें नवीन गंभीरता से लेने लगे.''
''मैंने तीन चार बार उन्हें समझाने की कोशिश की कि मेरे ख़िलाफ़ ग़लत प्रचार किया जा रहा है कि मैं महत्वाकांक्षी हूँ और सत्ता हथियाने की कोशिश कर रहा हूँ. लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं पड़ा और मुझे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.''
उड़िया अध्यापक के लिए समय नहीं
नवीन पटनायक ने बहुत पहले ही जींस और टी शर्ट पहनना छोड़ कर सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहनना शुरू कर दिया था लेकिन बाद में वो खोर्दा की मशहूर लुंगी पहनने लगे. मुख्यमंत्री के उनके शुरू के दिनों में उड़िया के एक रिटायर्ड अध्यापक राजकिशोर दास उन्हें उड़िया पढ़ाने आते थे.
लेकिन वो एक कोने में चुपचाप बैठे कॉफ़ी पीते रहते थे, क्योंकि नवीन के पास उनके लिए समय नहीं होता था. कुछ दिनों बाद उन्होंने आना ही बंद कर दिया. नवीन का दिन सुबह संतरे के जूस के एक गिलास से शुरू होता था. उसके बाद वो तरबूज़ और पपीते की कुछ फांकें खाते थे.
11 बजे दफ़्तर जाने से पहले वो नारियल पानी का एक गिलास लेते थे. दोपहर में वो बहुत हल्का खाने के लिए घर लौटते थे. आमतौर से वो खिचड़ी और दही या सूप के साथ एक ब्रेड लिया करते थे.
रात को वो देर से घर लौटते थे और 'फ़ेमस ग्राउस' विह्स्की के कुछ पैग लगाने के बाद खाना खाते थे. रेड थाई करी उनका पसंदीदा व्यंजन हुआ करता था.
सांसारिक चीज़ों से मोह नहीं
उनके क़रीबी दोस्तों में मशहूर पत्रकार वीर सांघवी भी थे. एक बार उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स में उनके दिल्ली के दिनों के बारे में लिखा था, ''पप्पू को सांसारिक चीज़ों का कोई मोह नहीं था. वो सही पते पर रहते थे. उनके दो नौकर, कार और ड्राइवर हुआ करता था, क्योंकि उन्हें कार चलानी नहीं आती थी.''
''वो कभी भी नामी रेस्तराँ में खाना नहीं खाते थे. उनके घर आने वाले लोग, चाहे वो कितने ही बड़े क्यों न हों, उनके रसोइए मनोज का बना खाना खाते थे. एक बार जब वो थोड़ा नशे में थे, मैंने उनसे पूछा था कि आपकी सादगी की वजह क्या है?''
उनका जवाब था, मैंने दूसरों को घरों में दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत चीज़ें देखी हैं. सुंदरता को पसंद करने के लिए ये ज़रूरी नहीं कि आप उसके मालिक हों. आपको उन्हें सराहना आना चाहिए.'
एंटी इस्टैबलिशमेंट के मुद्दे पर जीते नवीन अब खुद इस्टैबलिशमेंट
इतने साल सत्ता में रहने के बावजूद क्या 2019 के चुनाव में भी सत्ता पर नवीन की दावेदारी उतनी ही मज़बूत रहेगी? क्या वो सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन सिंह चामलिंग का सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड तोड़ पाएंगे?
रूबेन बनर्जी कहते हैं, ''नवीन साल 2000 में पहली बार जीते थे 'इस्टैबलिशमेंट' यानी सत्ता प्रतिष्ठान का विरोध करते हुए. 19 साल बाद वो 2019 में वो ख़ुद 'इस्टैबलिश्मेंट' बन गए हैं. ये सभी मानते हैं कि ओडिशा में कोई औद्योगीकरण नहीं है. आप ये भी नहीं कह सकते कि ओडिशा एक अमीर राज्य बन गया है.''
''थोड़ा बहुत काम हुआ है ग़रीबी उन्मूलन की दिशा में. 75 लाख लोगों को ग़रीबी रेखा से ऊपर लाया गया है. नवीन पटनायक के पक्ष में एक बात जाती है कि उनकी अपनी छवि बहुत अच्छी है और वो शायद निजी तौर पर भ्रष्ट नहीं हैं.''
କିଏ କହୁଛି ମୋର ପରିବାର ନାହିଁ, ସାଢେ ଚାରି କୋଟି ଓଡ଼ିଶାବାସୀ ମୋର ପରିବାର। ସେମାନଙ୍କ ମୁହଁରେ ହସ ମୋତେ ସବୁଠୁ ଅଧିକ ଖୁସି ଦିଏ। ମୋ ଜୀବନ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଓଡ଼ିଆଙ୍କ ଉନ୍ନତି ଓ ସେବା ପାଇଁ ସମର୍ପିତ। ବନ୍ଦେ ଉତ୍କଳ ଜନନୀ। #ଘରେଘରେଶଙ୍ଖ pic.twitter.com/cUqfuDmJzt
— Naveen Patnaik (@Naveen_Odisha) 19 April 2019
धन की बरबादी के लिए आलोचना
''उनकी इस बात के लिए आलोचना की जा सकती है कि उन्होंने सार्वजनिक धन को बरबाद किया है. लेकिन उन्होंने लोगों को खुश करने के लिए बहुत सी योजनाएं चलाई हैं.... एक रुपए में चावल, मुफ़्त साइकिल... आप जो भी सामान मांगेंगे, आपको मुफ़्त में मिल जाएगा.''
''उन्होंने आहार मील भी शुरू किया है, जहाँ पाँच रुपए में आपको चावल और दाल मिलता है, पर इससे न तो राज्य का विकास हो पा रहा है और न ही संसाधन बढ़ रहे हैं. लेकिन इससे ग़रीब लोग तो ख़ुश हैं.''
धर्मेंद्र प्रधान से कड़ी चुनौती
एक ज़माने में कम से कम ओडिशा की राजनीति में नवीन पटनायक का कोई प्रतिद्वंदी नहीं था. लेकिन अब केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को उनके एक प्रतिद्वंदी के रूप में पेश किया जा रहा है. कितने कारगर साबित होंगे वो?
रूबेन बनर्जी बताते हैं, ''नवीन पटनायक की विश्वसनीयता की बराबरी करना मुश्किल है. लेकिन धर्मेंद्र प्रधान के पक्ष में एक बात जाती है कि वो बीजू पटनायक के बाद केंद्र में दूसरे सफल उड़िया नेता हैं. तेल और पेट्रोलियम जैसा महत्वपूर्ण विभाग पहले किसी उड़िया नेता को नहीं दिया गया है.''
'वैसे नवीन को सत्ता में रहने का नुक़सान भी हो रहा है. जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, वो बूढ़े भी होते जा रहे हैं. उनमें थोड़ा सा अहंकार भी आ गया है. उनके बड़े से बड़े समर्थक भी मानेंगे कि ओडिशा की राजनीति में उनकी वो ठसक नहीं है जो पहले हुआ करती थी.'
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