तिब्बत के लोग चीन की सेना में क्यों शामिल हो रहे हैं , क्या दलाई लामा का प्रभाव खत्म हो गया है ?
धर्मशाला, 5 अगस्त: चीन की सेना तिब्बत के नागरिकों की वफादारी जांचने के बाद पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी में भर्ती कर रही है। चीन की ओर से यह कवायद तब शुरू हुई, जब भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ने पिछले साल पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग त्सो इलाके में चीनी सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए। लेकिन, सवाल है कि जब तिब्बत के लोग चीन को आक्रमणकारी मानते हैं, फिर वह इतनी आसानी से चीन के चक्रव्यूह में कैसे फंसते जा रहे हैं। तिब्बत में रह रहे तिब्बतियों के इस बदले रवैए पर दुनियाभर में सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि, कोई भी तिब्बती चाहे वह तिब्बत में रह रहा हो या फिर भारत में, या फिर दुनिया के किसी भी कोने में उसकी आस्था तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा में ही रही है।
चीन ने तिब्बत को तबाह किया है- तिब्बत सरकार
तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रवक्ता तेंजिन लक्ष्य ने तिब्बत में रह रहे तिब्बतियों के चीन के प्रति नजरिए में बदलाव को लेकर रेडिफ डॉट कॉम से बात की है। उन्होंने तिब्बत में चीन की बर्बरता का जिक्र करते हुए कई चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे हैं। उन्होंने कहा है कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की सरकार ने तिब्बत में विकास के काम जरूर किए हैं, लेकिन उसने हिमालय की गोद में बैठे इस देश को पूरी तरह तबाह किया है, इस हकीकत से कोई इनकार नहीं कर सकता। तेंजिन ने कहा है, '1950, 1960,1970 के दशकों में बल प्रयोग के जरिए चीनी शासन के परिणामस्वरूप 10 लाख से ज्यादा तिब्बती मारे गए। 6,000 से ज्यादा मठों को तबाह कर दिया गया।'
'चीन ने पहले जनसंहार किया और अब सांस्कृतिक जनसंहार'
उन्होंने बताया कि जब तिब्बतियों ने आजादी मांगनी शुरू की तो चीन ने आर्थिक उदारीकरण करना शुरू किया। 'उन्होंने (चीन ने) तिब्बत को एक जिंदा म्यूजियम बनाने की कोशिश की है। उसने दुनिया को यह दिखाने के लिए मठों के खंडहरों का पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार कराया है कि तिब्बत में सब कुछ ठीक-ठाक और सुंदर है।' उनके मुताबिक इसमें भी बहुत बड़ा खेल है। उनका कहना है कि गांवों को शहर और शहरों को महानगर में बदल डाला। 'तिब्बत को उपनिवेश बना दिया। तिब्बती शहरों और महानगरों में बड़ी संख्या में चीनियों को बसाकर चाइना टाउन और चाइनीज सिटी बना डाला।' इससे तिब्बत का जनसांख्यिकीय ढांचा ही कुचल दिया गया है। 'पहले जनसंहार हुआ था और अब सांस्कृतिक जनसंहार किया गया है।'
तिब्बत के लोग चीन की सेना में क्यों शामिल हो रहे हैं ?
लेकिन, जब उनसे यह सवाल किया गया कि जब तिब्बतियों को यह सब पता है तो वह पीएलए में भर्ती क्यों हो रहे हैं ? इसपर उन्होंने कहा कि 'चीन ने 1950 के दशक से तिब्बत पर कब्जा कर रखा है। भारत-चीन युद्ध के बाद से यह खुला रहस्य है कि भारत के पास तिब्बतियों का स्पेशल फ्रंटियर फोर्स है, जिसने पिछले साल भी ऐक्शन में हिस्सा लिया था।' उनके मुताबिक विश्वास की कमी के चलते चीन ने 60 वर्षों तक तिब्बत के लोगों की भर्ती नहीं की। आज की तारीख में तिब्बत में ज्यादा चाइनीज बस्तियां हैं, जो तिब्बतियों के मुकाबले ज्याद समृद्ध हैं। उन्होंने कहा है कि 'तिब्बतियों के पास जॉब नहीं है और सेना जॉब का ऑफर दे रही है। इससे रोजी-रोटी चलती है। लेकिन, सवाल है कि क्या चीन वास्तव में तिब्बत के लोगों पर भरोसा करता है?' तिब्बत में चीन का वेस्टर्न कमांड है, लेकिन ऊंचाई की वजह से उसके लिए सैनिकों का प्रबंधन मुश्किल हो जाता है। 'वह तिब्बत के लोगों की भर्ती जरूर कर रहा है, लेकिन उनकी संख्या न के बराबर होगी क्योंकि उनका जनसंख्या ही ज्यादा नहीं है।'
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क्या दलाई लामा का खत्म हो गया प्रभाव ?
जब यह सवाल किया गया कि चीन की सेना में जाने का मतलब यह तो नहीं है कि वहां के तिब्बतियों में दलाई लामा के प्रति श्रद्धा और सम्मान में कमी आ चुकी है। इसपर तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रवक्ता ने कहा है कि चीन ने तिब्बतियों के जीवन का सबकुछ बदल दिया है, शहरों और सड़कों के नाम तक बदल दिए हैं, लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ा है। वो बोले कि '2009 से 150 से ज्यादा लोगों ने 'परम पूज्य (दलाई लामा)' को तिब्बत आने का आह्वान करते हुए आत्मदाह कर लिया है। जिन युवा तिब्बतियों का जन्म चीनी शासन में हुआ है और उसी में पले-बढ़े हैं, उन्हें कभी भी 'परम पूज्य' को सुनने का मौका नहीं मिला है, लेकिन अपने धर्मगुरु के लिए वे अपने जीवन का बलिदान कर सकते हैं। यही 'परम पूज्य' के प्रति उनका श्रद्धा है।'