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साउथ की फ़िल्मों के बॉलीवुड रीमेक का फ़ॉर्मूला क्यों फ़ेल हो रहा है?

एक समय था कि दक्षिण की फ़िल्मों का रीमेक बॉलीवुड में बहुत सफल था, लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया है. आख़िर इसकी वजह क्या है?

By BBC News हिन्दी
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हाल ही में शाहिद कपूर की एक फ़िल्म आई 'जर्सी'. कब आई और कब गई पता ही नहीं चला. या सच कहें तो ज़्यादातर दर्शकों को इससे कोई फ़र्क़ भी नहीं पड़ा क्योंकि वो तो इन दिनों अल्लू अर्जुन, यश और रश्मिका मंदाना के जादू से सम्मोहित हैं. जब ओरिजनल इडली-सांबर मिल रहा हो तो पिंडी छोले के साथ डोसा कौन खाये.

कहने का मतलब ये कि साउथ की फ़िल्मों के राइट्स लेकर उनका बॉलीवुड रीमेक बनाने के दिन लगता है अब लद गए हैं. या यूं कहें कि फ़िलहाल तो ऐसा ही नज़र आता है.

Why is the formula for Bollywood remakes of South films failing?

तो सवाल वाजिब उठ रहा है कि अब जब साउथ के सितारों की ख़ुमारी देशभर में सिर चढ़कर बोल रही है तो ऐसे में तमिल-तेलुगू-मलयालम-कन्नड़ की ओरिजनल सुपरहिट फ़िल्मों को हिंदी स्टाइल में देखने से क्या अनोखा मिल जायेगा.

साउथ के स्टार देश में किसी के लिये अनजान नहीं हैं. उनकी फ़ैन फ़ॉलोइंग हिंदी बेल्ट में भी बढ़ती जा रही है. स्टाइल कॉपी होने लगी है. गानों और डायलॉग्स पर मीम्स और रील्स बनने लगे हैं. तो ऐसे में सिर्फ़ बॉलीवुड सितारों के साथ इन कॉपी-पेस्ट कहानियों को देखने का क्या मज़ा है.

रीमेक बन रहा घाटे का सौदा

उदाहरण सामने ही है शाहिद कपूर की 'जर्सी' जो तीन साल पहले आई तेलुगू की नानी स्टारर जर्सी का हिंदी रीमेक है. ओपनिंग में तीन करोड़ रुपये की भी बोहनी नहीं हुई और पूरी कमाई 20 करोड़ से कम में सिमट गई.

परसेप्ट पिक्चर्स के बिज़नेस हेड यूसुफ़ शेख़ की राय है कि रीमेक के राइट्स अब यूज़लेस हैं.

वो कहते हैं, ''अब साउथ की सुपरहिट फ़िल्मों का रीमेक कौन देखना चाहता है. दोबारा बनाकर क्या फ़ायदा होगा. अब जब वो फ़िल्में साउथ से ही हिंदी में डब होकर आ रही हैं तो हिंदी में बनाने की ज़रूरत क्या है? ये लोग अपना बॉक्स ऑफ़िस और अपनी बैलेंस शीट देखते हैं. इनको दर्शकों से क्या मतलब. अब कौन समझाए और किसको. 15 करोड़ वाले कॉन्टेंट और कॉमन मैन की कहानी ने करोड़ों कमाकर दिए हैं, लेकिन मल्टीप्लेक्स वाली 150 करोड़ की थिअरी पलट गई है. उनके दर्शकों को नया चाहिए और बॉलीवुड वाले तो 'बाहुबली' और 'आरआरआर' की स्केल तो दे ही नहीं सकते.''

यूसुफ़ को लगता है कि 'बॉलीवुड में तो प्रपोज़ल ही बन रहे हैं. अपनी ख़ुद की फ़िल्में कहां बन रही हैं. ऑडियंस को टेकेन-फ़ॉर ग्रांटेड लिया जा रहा है, लेकिन अब दर्शकों को ये कुबूल नहीं है. सारा खेल टारगेट ऑडियंस को समझने का है और बॉलीवुड में इस पर कोई दिमाग़ ही नहीं लगा रहा है जबकि साउथ वाले सोच-समझ कर ऐसी फ़िल्में बनाते जा रहे हैं. इतना बड़ा ऑडियंस है लेकिन टारगेट ही सेट नहीं है.'

साउथ की सुपरहिट फ़िल्मों का हिंदी रीमेक इससे पहले कोई बुरा सौदा नहीं था. बॉलीवुड के निर्माताओं ने इस फ़ॉर्मूले से भर-भर कर कमाई की है. कारण साफ़ था कि सोशल मीडिया के तूफ़ान से पहले हिंदी बेल्ट के दर्शकों को रजनीकांत और कमल हासन को छोड़कर बहुत ज़्यादा कुछ पता नहीं था. साउथ की फ़िल्में और वहां के बाकी के स्टार बहुत लोकप्रिय नहीं थे इसलिए जब फ़िल्म का मीडिया प्रचार होता था तो पता चलता था कि ये फलां साउथ की फ़िल्म का रीमेक है.

सोशल मीडिया से पहला का दौर

प्री-सोशल मीडिया दौर में साउथ की फ़िल्मों के हिंदी रीमेक का इतिहास गोल्डन रहा है. फिर वो चाहे एक करोड़ लगाकर दस करोड़ कमाने वाली 'एक दूजे के लिये' (तेलुगू की 'मारो चरित्र') हो, रामगोपाल वर्मा की 'शिवा' और 'सत्या' जैसी कई फ़िल्में, अनिल कपूर की विरासत (तमिल की 'थेवर मगन'), कमल हासन की चाची 420 (तमिल की 'अव्वै शण्मुगी'), सैफ़ अली ख़ान की 'रहना है तेरे दिल में' ( तमिल की 'मिन्नाले'), रानी मुखर्जी की 'साथिया' (तमिल की 'अलैपयुते') - यानी लिस्ट काफ़ी लंबी है और उनकी सफलता की कहानी भी.

एक समय था जब बॉलीवुड के निर्माता तथाकथित प्रेरणा के नाम पर फ़्रेम टू फ़्रेम क़ॉपी करके साउथ की फ़िल्मों का हिंदीकरण कर देते थे, बाद में क़ानूनी डर से पैसे देकर राइट्स लेना शुरू हुआ. सलमान ख़ान के करियर का गोल्डन पीरियड भी इन्हीं साउथ की फ़िल्मों की रीमेक की वजह से आया था.

सलमान ख़ान को नंबर वन स्टार बनाने में भूमिका दक्षिण की फ़िल्मों की भी है.

तेरे नाम (तमिल की सेतु) से लेकर वॉन्डेट (तेलुगू की पोक्करी), जुड़वा ( तेलुगू की हैलो ब्रदर), नो एंट्री (तमिल की चार्ली चैप्लीन), क्यूंकि (मलयालम की थलावट्ट्म), रेडी (तेलुगू की रेडी), बॉडीगार्ड (मलयालम की बॉडीगार्ड), किक (तेलुगू की किक) सहित कई फ़िल्में सलमान साउथ से लेकर आये. अक्षय कुमार की राउडी राठौर (तेलुगू की विक्रमारकुडु) और अजय देवगन की सन ऑफ़ सरदार (मर्यादा रमन्ना) का ज़िक्र भी यहां ज़रूरी हो जाता है.

इन फ़िल्मों की लिस्ट बड़ी है पर ख़त्म होने वाली नहीं है. भले ही साउथ के ओरिजनल स्टार अब हिंदी भाषा में ताज़ा फिल्में देने को तैयार हैं, लेकिन आने वाले समय में भी ऑफ़िशियल रीमेक का सिलसिला थमने नहीं जा रहा है.

बॉलीवुड के गॉसिप सर्किट के दावों की मानें तो आने वाले समय में अक्षय कुमार तमिल की 'रत्नासन' में, सलमान ख़ान 'मास्टर' में, रितिक रोशन और सैफ़ अली ख़ान 'विक्रम वेधा' में, अजय देवगन 'कैथी' में, अभिषेक बच्चन 'अय्पनु कोशियुमट' में, रणवीर सिंह 'अन्नियन' में और आदित्य राय कपूर 'थडियन' में नज़र आ सकते हैं.

ट्रेड एक्सपर्ट अतुल मोहन तो हमेशा से कहते आ रहे हैं कि 'अब गिमिक का टाइम चला गया है. बॉलीवुड में फ़िल्में महंगी होती जा रही हैं, लेकिन कोई प्रोडक्शन वैल्यू ही नहीं है. साउथ की एक फ़िल्म में 300 करोड़ तक की वैल्यू दिखती है. कैटगरी चेंज हो गई है. लॉकडाउन के बाद पैटर्न चेंज हो गया है. साउथ के रीमेक राइट्स हमारे लिए ज़ीरो हो गए. हम चिकनी राह पर चल रहे हैं. फ़िसलन ज़्यादा है.'

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English summary
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