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कोरोना के किन मरीजों को तुरंत ऑक्सीजन लगाना है जरूरी? सही बात जानिए

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नई दिल्ली, 21 अप्रैल: कोविड की दूसरी लहर में पिछले साल के मुकाबले एक सबसे बड़ा अंतर जो दिखाई पड़ रहा है और डॉक्टर भी बता रहे हैं कि मरीजों में सांस की तकलीफ जैसे लक्षण काफी बढ़ गए हैं। पिछले साल वेंटिलेटर को लेकर त्राहिमाम मचता था, इसबार ऑक्सीजन की डिमांड और सप्लाई में गैप को लेकर हाहाकार मच रहा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संक्रमण के तेजी से फैलने की वजह से इस समस्या पर संज्ञान लिया है और उन्होंने मंगलवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में इस संकट का हल निकालने की भी बात कही है। ऐसी स्थिति में अक्सर दिक्कत ये होती है कि जिस किसी के घर में भी कोई सदस्य संक्रमित हो गया, वही ऑक्सीजन सिलेंडर की तलाश में जुट जाता है। जबकि, सबको इसकी जरूरत नहीं होती। इसलिए यह जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है कि किन कोरोना मरीजों को तत्काल ऑक्सीजन सपोर्ट देना जरूरी है?

अस्पतालों में ऑक्सीजन और वेंटिलेटर सपोर्ट वाले मरीजों का आंकड़ा

अस्पतालों में ऑक्सीजन और वेंटिलेटर सपोर्ट वाले मरीजों का आंकड़ा

मंगलवार को देशभर में कुल 1.75 फीसदी कोरोना मरीज आईसीयू में थे। 0.40 फीसदी को वेंटिलेटर सपोर्ट दिया जा रहा था और 4.03 फीसदी मरीज को ऑक्सीजन सपोर्ट दिया जा रहा था। क्योंकि, देश में ऐक्टिव केस का आंकड़ा 20 लाख से पार कर चुका है, इसलिए ऑक्सीजन बेड की उपलब्धता कोविड मैनेजमेंट के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हो चुकी है। सोमवार को नेशनल कोविड-19 टास्क फोर्स ने कहा कि दूसरी लहर में अस्पतालों भर्ती 54.5 फीसदी मरीजों को इलाज के दौरान ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। देशभर के 40 अस्पतालों के डेटा का आंकलन करने से पता चलता है कि पिछले साल सितंबर-नवंबर के बीच जितने मरीजों को ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ रही थी, उससे इस समय 13.4 फीसदी ज्यादा पड़ रही है। लेकिन, मेकेनिकल वेंटिलेशन के मामले में अभी 27.8 फीसदी मरीजों को इसकी जरूरत पड़ रही है, जबकि पिछले साल 37.3 फीसदी रोगियों को वेंटिलेटर पर डालना पड़ रहा था। आईसीएमआर के डीजी डॉक्टर बलराम भार्गव ने कहा है कि अभी इसके बहुत सीमित डेटा जुटाए जा सके हैं कि दूसरी लहर में ऑक्सीजन की आवश्यकता ज्यादा क्यों पड़ रही है।

कोरोना मरीजों को सांस लेने में दिक्कत क्यों होने लगती है ?

कोरोना मरीजों को सांस लेने में दिक्कत क्यों होने लगती है ?

इसकी वजह ये है कि कोविड-19 मरीज के रेस्पिरेटरी सिस्टम को प्रभावित करता है। फेफड़ा इंसान की सांस से ऑक्सीजन छांटकर उसे रक्त वाहिकाओं तक पहुंचाता है, जहां से वह पूरे शरीर में फैलता है। रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट में रेस्पिरेटरी एपिथेलियल सेल्स होते हैं, जिसका पहला काम सांस के रास्ते को पैथोजन्स और इंफेक्शन से सुरक्षित रखना होता है और इसी के जरिए फेफड़ा ऑक्सीजन अंदर और कार्बन कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर करता है। कोरोना वायरस इस एपिथेलियल सेल्स को संक्रमित कर सकता है। इस इंफेक्शन से लड़ाई के दौरान शरीर का इम्यून सिस्टम भी सेल रिलीज करने लगता है, जिससे नलियों में सूजन पैदा होने लगती है। यह स्थिति ज्यादा देर तक रहने पर फेफड़े तक ऑक्सीजन पहुंचना बाधित होने लगता है। साथ ही साथ उसमें फ्लूड भी जमा होने लगता है। ये दोनों परिस्थितियां मिलकर मरीज का सांस लेना मुश्किल कर देती हैं। इससे खून में ऑक्सीजन लेवल कम होना शुरू हो जाता है।

क्या सांस लेने में कठिनाई दूसरी लहर का प्रमुख लक्षण है ?

क्या सांस लेने में कठिनाई दूसरी लहर का प्रमुख लक्षण है ?

हां, नेशनल क्लिनिकल रजिस्ट्री फॉर कोविड-19 का डेटा बताता है कि दूसरी लहर में सांस लेने में तकलीफ सिम्पटोमेटिक मरीजों में सबसे प्रमुख लक्षण है। अस्पताल में भर्ती 47.5 फीसदी मरीजों में इसबार यह समस्या देखी जा रही है, जो कि पिछले साल सिर्फ 41.7 फीसदी थी। जबकि, पहली लहर के मुकाबले कई लक्षणों में इसबार गिरावट देखी जा रही है। जैसे कि सूखी खांसी (पहले 5.6 फीसदी और अब 1.5 फीसदी), गंध की कमी (पहले 7.7 फीसदी, अब 2.2 फीसदी), थकान (पहले 24.2 फीसदी और अब 11.5 फीसदी), गले में खड़ास (पहले 16 फीसदी और अब 7.5 फीसदी), मांसपेशियों में दर्द (पहले 14.8 फीसदी और अब 6.3 फीसदी।)

कोरोना के किन मरीजों को तुरंत ऑक्सीजन लगाना है जरूरी?

कोरोना के किन मरीजों को तुरंत ऑक्सीजन लगाना है जरूरी?

कोरोना के कुछ ही मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ती है। इसकी आवश्यकता तब पड़ जाती है जब सांस लेने में बहुत ज्यादा परेशानी हो रही हो। कोविड के ज्यादातर मरीजों को रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन होता है और गंभीर मरीजों में सांस की कमी एक महत्वपूर्ण लक्षण होती है। इनमें से कुछ मामलों में यह स्थिति बहुत ही ज्यादा गंभीर हो जाती है और इसे एक्यूट रेस्पिपेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) कहा जाता है। ऐसे ही मरीजों को तुलंत ऑक्सीजन सपोर्ट देना जरूरी हो जाता है। कोविड के मध्यम मामलों में ऑक्सीजन थेरेपी को इलाज का पहला कारगर तरीका माना जाता है। इसका लक्ष्य एसपीओ2 (ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल) को 92 से 96% तक हासिल करना होता है। क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज के मरीजों में यह टारगेट 88 से 92% तक लाना होता है। हल्के मामलों ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने के दूसरे और सामान्य विकल्पों का इस्तेमाल किया जाता है।

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English summary
Shortness of breathing in the second wave of Covid is the most important symptoms, it is necessary to give oxygen support to certain types of patients
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