जब कास्त्रो ने इंदिरा गांधी को गले लगाकर उन्हें कर दिया था असहज
क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो वर्ष 1983 में अपनी दूसरी यात्रा पर भारत आए थे। फिदेल कास्त्रो ने उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गले लगाकर पैदा कर दी थी असहज स्थिति।
नई दिल्ली। क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो का शनिवार को निधन हो गया। 90 वर्ष की आयु में कास्त्रो दुनिया को अलविदा कह गए और उनके जाने के बाद भारत में भी कई लोग उन्हें याद कर रहे हैं। कास्त्रो ने भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी 'बहन' करार दिया था।
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1983 में आखिरी बार आए भारत
कास्त्रो दो बार भारत आए थे , पहली बार 1973 में और फिर 1983 में दूसरी और आखिरी बार भारत आए।
उस समय जब कास्त्रो अपनी दूसरी और आखिरी भारत यात्रा पर दिल्ली पहुंचे तो उस समय कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरीं। )
उस समय कास्त्रो ने इंदिरा गांधी को कुछ इस तरह से गले लगाया कि खुद इंदिरा भी असहज हो गई थीं।
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नैम का उद्घाटन
उस समय विज्ञान भवन में सातवें नॉन अलाइन्ड (नैम) सम्मेलन का उद्घाटन हुआ। यहां पर दुनिया के 100 देशों की राज्य सरकारों और सरकारों के मुखिया मौजूद थे। कास्त्रो यहां पर क्यूबा से आए प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे थे।
यहां पर उन्होंने पहले तो ऐलान किया कि 1979 में हवाना में हुए सम्मेलन के दौरान इस सम्मेलन मेजबानी अपनी 'बहन' इंदिरा को देकर उन्हें काफी खुशी हुई।
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विज्ञान भवन में कास्त्रो की 'झप्पी'
इसके बाद मंच पर इंदिरा और कास्त्रो का आमना-सामना हुआ। इंदिरा ने इस उम्मीद के साथ कि कास्त्रो उन्हें लकड़ी की हथौड़ी देंगे जिससे वह सम्मेलन के उद्घाटन का ऐलान करेंगी। ऐसा नहीं हुआ।
इंदिरा ने दोबारा ऐसा किया लेकिन फिर कास्त्रो ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और मुस्कुराते रहे। तीसरी बार जब गांधी ने हाथ बढ़ाया तो कास्त्रो ने उन्हें गले से लगा लिया।
कास्त्रो ने जिस समय इंदिरा को गले से लगाया पूरे मीडिया की नजरें उनकी ओर चली गई। हॉल में तालियां बजने लगीं लेकिन थोड़ी देर को इंदिरा गांधी खुद को असहज महसूस कर रही थीं।
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जनवरी 1960 में हवाना में भारतीय दूतावास
कास्त्रो ने हमेशा यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया था।
कास्त्रो हमेशा से भारत को एक परिपक्व देश मानते थे। वर्ष 1992 में जब कास्त्रो क्यूबा के राष्ट्रपति थे तो क्यूबा पर मुसीबतें आईं।
भारत ने उस समय 10,000 टन गेहूं और 10,000 टन चावल क्यूबा को भेजा था।
जनवरी 1960 में क्यूबा की राजधानी हवाना में भारतीय दूतावास का उद्घाटन हुआ। यहां से दोनों देशों के संबंधों में नई शुरुआत हुई।