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60 साल पहले जब एक बाउंसर ने ख़त्म कर दिया था भारत के क्रिकेट कप्तान का करियर

डॉक्टर ने कहा कि अगर इनका तुरंत ऑपरेशन नहीं किया गया तो इनके साथ कुछ भी हो सकता है. ग़ुलाम अहमद ने मुंबई फ़ोन कर उनकी पत्नी और बोर्ड से सहमति ली और डॉक्टर ने उनका ऑपरेशन करना शुरू किया जबकि वो क्वालिफ़ाइड न्यूरो सर्जन नहीं थे. क्या हुआ था तब, पढ़ें पूरी कहानी और 60 साल बाद अब फिर ये चर्चा में क्यों है?

By BBC News हिन्दी
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भारत के पूर्व कप्तान नरी कॉन्ट्रेक्टर के सिर में 60 साल पहले डाली गई मेटल (धातु) प्लेट को सर्जरी के जरिए निकाल दिया गया है. बाउंसर चार्ली ग्रिफ़िथ की एक बाउंसर गेद से उनके सिर में चोटी लगी और उनके अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर का अंत हो गया था.

क्या थी वह घटना

इस घटना तक नरी 10 टेस्ट मैचों में भारत का नेतृत्व कर चुके थे, वो न सिर्फ़ टीम के प्रमुख बल्लेबाज़ थे बल्कि पारी की शुरुआत भी करते थे और उनकी तेज़ गेंदबाज़ी खेलने की क्षमता के बारे में किसी को कोई संदेह नहीं था.

वर्ष 1962 के वेस्टइंडीज़ दौरे में दूसरे और तीसरे टेस्ट के दौरान भारतीय टीम बारबाडोस के साथ एक अभ्यास मैच खेल रही थी.

बारबाडोस ने पहले बैटिंग करते हुए 390 रन बनाए थे. भारत की ओर से नरी कॉन्ट्रेक्टर और दिलीप सरदेसाई ने पारी की शुरुआत की थी.

आमतौर से नरी पहली स्ट्राइक नहीं लेते थे. लेकिन चूंकि सरदेसाई पहली बार पारी की शुरुआत कर रहे थे, उन्होंने पहली गेंद खेलने का फ़ैसला किया. बारबाडोस की तरफ़ से गेंद करने की ज़िम्मेदारी वेस हॉल और चार्ली ग्रिफ़िथ ने संभाली.

पवेलियन की खिड़की

नरी ने बीबीसी को बताया, "मैच से एक दिन पहले एक पार्टी में वेस्टइंडीज़ के कप्तान फ़्रैंक वॉरेल ने हमें ग्रिफ़िथ के बारे में आगाह किया था.''

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वॉरेल ने कहा था, ''ग्रिफ़िथ का एक्शन बहुत साफ़ नहीं है लेकिन उसके पास बहुत गति है और हमें कोशिश करनी चाहिए कि कोई चोट न लगे.''

बहरहाल कॉन्ट्रेक्टर की सारी सावधानी धरी रह गई जब लंच के फ़ौरन बाद हॉल ने सरदेसाई को शून्य पर आउट कर दिया. सरदेसाई की जगह रूसी सूरती आए. ग्रिफ़िथ बहुत तेज़ गेंदबाज़ी कर रहे थे.

नरी याद करते हैं, "ओवर की तीसरी गेंद के बाद सूरती ने मुझसे चिल्ला कर कहा, कप्तान ग्रिफ़िथ चक कर रहे हैं. मैंने कहा मुझसे नहीं अंपायर से इसके बारे में कहो. ग्रिफ़िथ के ओवर की दूसरी गेंद मेरे कंधे से ऊपर थी और उसे मैंने जाने दिया. तीसरी गेंद पर कॉनरेड हंट ने मेरा कैच लगभग पकड़ ही लिया था. अब मैं सोचता हूँ कि काश हंट ने मेरा कैच ले ही लिया होता. उस ज़माने में कोई साइट स्क्रीन नहीं होती थी. जैसे ही ग्रिफ़िथ ने चौथी गेंद डालने के लिए दौड़ना शुरू किया, किसी ने अचानक पवेलियन में एक खिड़की खोली. मेरे दिमाग़ में आया कि इस गेंद के बाद मैं कहूंगा कि इस खिड़की को बंद कर दें. जैसा कि उम्मीद थी अगली गेंद भी शॉर्ट पिच गेंद थी"

नरी उस गेंद को कभी नहीं भूल पाएंगे. वो कहते हैं, "मैंने ऊपर आती गेंद से बचने के लिए अपना सिर घुमाया और वो गेंद 90 डिग्री के कोण से मेरे सिर के पिछले हिस्से में लगी. मैं घुटनों के बल गिरा. उस समय खींचे गए फ़ोटो बताते हैं कि जब मैं घुटनों के बल गिरा तब भी बल्ला मेरे हाथ से छूटा नहीं था. उस समय कहा गया कि मैंने बाउंसर से बचने के लिए डक किया था जबकि ये सही नहीं था. वास्तविकता ये थी कि पवेलियन में खिड़की खुलने से मेरा ध्यान भंग हुआ था और मेरी एकाग्रता सौ फ़ीसदी नहीं थी."

असहनीय दर्द

उधर जैसे ही कॉन्ट्रेक्टर गिरे चंदू बोर्डे पवेलियन से उनके लिए पानी की गिलास लिए हुए दौड़े आए.

चंदू याद करते हैं, "जब मैं पिच पर पहुंचा तो नरी पूरी तरह होश में थे. उन्होंने मुझसे कहा कि मेरे सिर में भयानक दर्द हो रहा है. मैं उनका हाथ पकड़ पवेलियन तक लाया. लेकिन मैं महसूस कर पा रहा था कि उनके हाथ का दबाव मेरे हाथ पर बढ़ता ही जा रहा था और उन्हें असहनीय पीड़ा हो रही थी."

टीम के मैनेजर ग़ुलाम अहमद और चंदू बोर्डे उन्हें अस्पताल ले कर गए. वहाँ उनका एक्सरे लिया गया. एक्सरे से पता चला कि उनके सिर के पिछले हिस्से में इंटर्नल ब्लीडिंग हो रही है.

डॉक्टर ने कहा कि अगर इनका तुरंत ऑपरेशन नहीं किया गया तो इनके साथ कुछ भी हो सकता है. ग़ुलाम अहमद ने मुंबई फ़ोन कर उनकी पत्नी और बोर्ड से सहमति ली और डॉक्टर ने उनका ऑपरेशन करना शुरू किया जबकि वो क्वालिफ़ाइड न्यूरो सर्जन नहीं थे.

गेंद की रफ़्तार

चंदू बोर्डे याद करते हैं, "अभी ऑपरेशन चल ही रहा था कि ख़ून से सने हुए विजय मांजरेकर वहाँ पहुंचे. उनको भी ग्रिफ़िथ की गेंद लगी थी. नरी को मैंने, बापू नादकर्णी, पॉली उम्रीगर, क्रिकेट संवाददाता पीएन प्रभु और वेस्टइंडीज़ के कप्तान फ़्रैंक वॉरेल ने अपना ख़ून दिया. जब ऑपरेशन चल ही रहा था कि अस्पताल की बिजली चली गई. ग़ुलाम अहमद इतने नर्वस थे कि उन्होंने दो-दो सिगरेटें सुलगाई हुई थीं."

उस टीम के एक और सदस्य सलीम दुर्रानी को अभी तक ख़ून से सने नरी का पवैलियन लौटकर आना याद है.

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दुर्रानी कहते हैं कि उस समय नरी के कान और नाक से फ़व्वारे की तरह ख़ून निकल रहा था. जब तक नरी को होश नहीं आ गया, भारतीय टीम के हर सदस्य को नींद नहीं आई और वो उनके ठीक हो जाने की दुआ मांगते रहे.

दुर्रानी याद करते हैं कि नरी की बेहोशी के दौरान फ्रैंक वॉरेल रोज़ उन्हें देखने आते थे. एक दिन चार्ली ग्रिफिथ भी उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे थे.

मैंने बोर्डे से पूछा कि आप ग्रिफ़िथ को आज के तेज़ गेंदबाजों की तुलना में कितना रेट करेंगे. बोर्डे का जवाब था, "ग्रिफ़िथ नि:संदेह बहुत तेज़ थे. लेकिन आपको ये बात भी याद रखनी होगी कि उस ज़माने में हेलमेट नहीं हुआ करते थे और न ही चेस्ट गार्ड या एलबो गार्ड होते थे.

उस ज़माने में फ़्रंट फ़ुट नो बॉल का नियम भी लागू नहीं हुआ था जिसकी वजह से ग्रिफ़िथ जैसे गेंदबाज़ तो 18 गज़ से गेंदबाज़ी किया करते थे. कभी-कभी तो तेज़ गेंदबाज़ों से बचने के लिए हम अपनी जेबों के अंदर गल्व्स ठूंस कर रखते थे."

चंदू एक और मज़ेदार वाक़या सुनाते हैं, "1967 में जब वेस्टइंडीज़ की टीम भारत आई तो मैं चेन्नई में उनके ख़िलाफ़ 96 रनों पर खेल रहा था. तभी ग्रिफ़िथ ने उसी तरह की गेंद फ़ेकी जैसी उन्होंने नरी के ख़िलाफ़ फेकी थी. 96 के स्कोर पर आपको गेंद बहुत अच्छी तरह दिखाई दे रही होती है लेकिन ग्रिफ़िथ की वो गेंद इतनी तेज़ थी कि वो मुझे दिखी ही नहीं और मेरे कान की लवों को चूमती हुई चार रनों के लिए चली गई. शाम को रोहन कन्हाई मेरे कमरे में आए और बोले, "चंदू मैं इस शतक पर जश्न मनाना चाहता हूँ. क्या तुम जानना चाहोगे, क्यों ? मैंने पूछा क्यों तो उनका जवाब था, इसलिए क्योंकि तुम अभी तक जीवित हो. वो गेंद तुम्हें ख़त्म कर सकती थी."

सिर में धातु की प्लेट

उस ऑपरेशन के बाद नरी कॉन्ट्रेक्टर को छह दिनों तक होश नहीं आया. सातवें दिन पहली बार उन्होंने अपनी आँखें खोली. फिर उन्हें फ़्रांस के रास्ते भारत वापस लाया गया. बाद में वेल्लोर में उनके सिर में धातु की एक प्लेट लगाई गई.

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नरी एक मज़ेदार क़िस्सा सुनाते हैं, "एक बार दिल्ली हवाई अड्डे पर जब मैं मुंबई जाने के लिए पहुँचा तो तलाशी लेने वाला मेटल डिटेक्टर बार-बार ब्लीप करने लगा और वहाँ मौजूद सुरक्षा कर्मचारी बार-बार मुझसे मेटल डिटेक्टर के सामने से गुज़रने के लिए कहने लगा. अंतत: नरी कॉन्ट्रेक्टर ने अपना परिचय दिया और उस कर्मचारी को पूरी कहानी बताई कि किस तरह धातु की प्लेट उनके सिर में लगाई गई थी."

दूसरा मौका

नरी कॉन्ट्रेक्टर ने एक बार और ज़बरदस्त जीवटता का परिचय दिया था.

1959 में लार्ड्स के मैदान पर ब्रायन स्टेथम के पहले ओवर की एक गेंद उनकी पसलियों में लगी और उनकी दो पसलियाँ टूट गईं. उस समय नरी ने एक भी रन नहीं बनाया था. लेकिन उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा और 81 रन बनाकर पवेलियन लौटे.

ब्रिजटाउन में गंभीर रूप से चोटिल होने के बावजूद नरी ने दोबारा भारत के लिए खेलने की उम्मीद नहीं छोड़ी. लेकिन लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद भारतीय चयनकर्ता उन्हें दोबारा भारतीय टीम में चुनने की हिम्मत नहीं जुटा पाए.

नरी कॉन्ट्रेक्टर ने बताया कि एक बार भारतीय चयनकर्ता गुलाम अहमद ने उनकी पत्नी से सवाल किया था, "आप उन्हें दोबारा खेलने की अनुमति कैसे दे सकतीं हैं?, मेरे चाहने से क्या होता है. मेरे भाग्य में भारत के लिए दोबारा खेलना नहीं लिखा था, सो मैं नहीं खेला."

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English summary
When a bouncer ended the career of India's cricket captain
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