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पश्चिम बंगाल चुनाव: मुसलमान बहुल मालदा में इस बार का समीकरण जानिए

टीएमसी ने 2013 में हुए उपचुनाव में इंग्लिश बाज़ार सीट जीती थी. इसके उलट बीजेपी ने बीते विधानसभा चुनाव में ज़िले की दो सीटें जीतने में कामयाब रही थी.

By प्रभाकर मणि तिवारी
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पश्चिम बंगाल मुसलमान
Getty Images
पश्चिम बंगाल मुसलमान

पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी के लिहाज से मुर्शिदाबाद के बाद मालदा दूसरे नंबर पर है. कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ए.बी.गनी खान चौधरी उर्फ़ बरकत दा की विरासत वाले इस ज़िले में मुसलमानों की आबादी करीब 57 फ़ीसदी है.

ज़िले की राजनीति में उनका असर साफ़ नजर आता है. यही वजह है कि अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद टीएमसी यहाँ अपने बूते कभी लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कोई छाप नहीं छोड़ सकी है.

पश्चिम बंगाल चुनाव: मुसलमान बहुल मालदा में इस बार का समीकरण जानिए

पार्टी ने साल 2013 में हुए उपचुनाव में इंग्लिश बाज़ार सीट जीती थी. इसके उलट बीजेपी ने बीते विधानसभा चुनाव में ज़िले की दो सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी.

अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के आरोपों से जूझ रही टीएमसी ने इस बार राज्य में साल 2016 के 57 के मुक़ाबले 45 मुसलमान उम्मीदवारों को ही टिकट दिया है. मालदा में विधानसभा की 12 सीटें हैं. पार्टी ने इनमें महज़ चार अल्पसंख्यकों को ही मैदान में उतारा है.

पश्चिम बंगाल चुनाव: मुसलमान बहुल मालदा में इस बार का समीकरण जानिए

वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट के साथ तालमेल के तहत मैदान में उतरने वाली कांग्रेस ने यहां नौ में से आठ सीटें जीती थीं जबकि वैष्णवपुर और हबीबपुर सीटों पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया था.

इंग्लिश बाज़ार सीट पर वर्ष 2013 का उपचुनाव जीतने वाले टीएमसी उम्मीदवार कृष्णेंदु नारायण चौधरी लेफ्ट और कांग्रेस के समर्थन से मैदान में उतरे निर्दलीय उम्मीदवार नीहार रंजन घोष से करीब 40 हजार वोटों के अंतर से हार गए थे.

टीएमसी ने अबकी उन्हीं नीहार रंजन घोष को ज़िले की चांचल सीट से मैदान में उतारा है. इंग्लिश बाज़ार में कृष्णेंदु को ही बनाए रखा गया है. इसी तरह मोथाबाड़ी सीट से पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर जीतने वाली सबीना यास्मीन इस बार इसी सीट से टीएमसी के टिकट पर किस्मत आजमा रही हैं.

टीएमसी ने पहले हबीबपुर (आरक्षित) सीट पर सरला मुर्मू को टिकट दिया था. लेकिन उनके बीजेपी में जाने की आशंका से बाद में प्रदीप बख्शी को उम्मीदवार बनाया गया. सरला उसी दिन बीजेपी में शामिल हो गईं.

टीएमसी के अलावा किसी की सूची नहीं

पश्चिम बंगाल चुनाव: मुसलमान बहुल मालदा में इस बार का समीकरण जानिए

मालदा ज़िले की 12 सीटों पर सातवें और आठवें चरण में 26 और 29 अप्रैल को मतदान होगा. चुनावी तालमेल के तहत यहाँ कांग्रेस को हिस्से में इस बार भी नौ सीटें आई हैं. बाक़ी तीन पर लेफ्ट लड़ेगा. अब कांग्रेस के तमाम नेता मुसलमानों के समर्थन से पिछली बार हारी हुई सीट पर भी जीत के दावे कर रहे हैं.

यहाँ तमाम नेताओं और आम लोगों की राय है कि ओवैसी की पार्टी कुछ इलाक़ों में कुछ वोट ज़रूर काट सकती है. लेकिन फ़िलहाल अल्पसंख्यक वोट बैंक के बिखरने का कोई ख़तरा नहीं है. इसके पीछे उर्दू भाषी और बांग्लाभाषी मुसलमानों के अंतर को सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है.

लेकिन अब तक यहाँ टीएमसी के अलावा किसी भी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं की है. बीजेपी ने पिछली बार कांग्रेस के हिस्से में आई हबीबपुर सीट के अलावा सीपीएम के हिस्से में आई वैष्णव नगर सीट जीती थी.

फुरफुरा शरीफ़ के पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी ज़िले में अल्पसंख्यकों की आबादी को ध्यान में रखते हुए यहाँ मैदान में उतरने की तैयारी कर रही हैं.

हालांकि लेफ्ट-कांग्रेस गठजोड़ में शामिल आईएसएफ को कांग्रेस के कड़े रुख़ की वजह से ज़िले में कोई सीट नहीं दी गई है. कांग्रेस ने अपने इस परंपरागत गढ़ में उसे कोई सीट देने से साफ़ मना कर दिया है.

पश्चिम बंगाल चुनाव: मुसलमान बहुल मालदा में इस बार का समीकरण जानिए

धर्मनिरपेक्ष दलों को ही वोट

मुस्लिम विद्वान और इतिहासकार मोहम्मद अताउल्लाह कहते हैं, "मालदा में देश की आज़ादी के पहले से मुस्लिम लीग का मज़बूत असर रहा है. 1946 के चुनावों में ज़िले की दोनों सीटें उसी ने जीती थीं. यहां मुस्लिम समाज की राजनीतिक विचारधारा अब भी पिछड़ी है. ज़िले की मुस्लिम आबादी बंगाल के भविष्य और मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य की वजह से बढ़ते सांप्रदायिकता के ख़तरों को ध्यान में रखते हुए ही मतदान करेगी."

मालदा मुस्लिम इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष मोहम्मद अब्दुल रफ़ीक भी उनकी बातों का समर्थन करते हैं. वह कहते हैं, "यहाँ का मुसलमान जात-पात की राजनीति पर भरोसा नहीं करता. हम धर्मनिरपेक्ष पार्टी को ही वोट देंगे."

मालदा ज़िला कांग्रेस महासचिव मोहम्मद मसूद आलम कहते हैं, "ओवैसी का यहां चुनाव मैदान में उतरना बीजेपी का स्टंट है. ओवैसी जितनी संस्थाएं चलाते हैं उतनी अगर अन्य किसी ग़ैर-बीजेपी पार्टी का नेता चलाता तो अब तक सीबीआई और ईडी के रडार पर आ गया होता."

उनका दावा है कि मुस्लिम तबका अब समझ गया है कि सांप्रदायिकता के मुक़ाबले के लिए सांप्रदायिकता का चोला पहनने में कोई बुद्धिमानी नहीं है. इसलिए यह तबका इस बार भी कांग्रेस को ही समर्थन देगा. यहाँ ओवैसी का खाता तक नहीं खुलेगा.

सामाजिक कार्यकर्ता शबनम जहां कहती हैं, "यह बात सही है कि इस तबके के लोग अब राजनीतिक तौर पर पहले के मुक़ाबले सचेत हो गए हैं. हमने बीते दस साल में राज्य सरकार के कामकाज़ को भी देखा है. तमाम दलों के बीच बढ़ती खींचतान के चलते यह तबका एकजुट हो रहा है. इस एकजुटता का फ़ायदा किसे मिलेगा, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा."

बीजेपी का दावा

दूसरी ओर, बीजेपी भी अबकी यहाँ सीटों की तादाद बढ़ाने के दावे कर रही है. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष दावा करते हैं, "मालदा के लोग समझ गए हैं कि कांग्रेस और टीएमसी को वोट देने से ज़िले का विकास नहीं होगा. इतने लंबे साल से कांग्रेस का कब्जा होने के बावजूद स्थानीय समस्याएं जस की तस हैं. इसलिए अबकी लोग हमारी पार्टी को ही चुनेंगे."

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां रैली कर चुके हैं. इस महीने की शुरुआत में यहां आदित्यनाथ ने अपनी रैली में क़ानून और व्यवस्था की स्थिति के लिए टीएमसी सरकार की खिंचाई करते हुए कहा था कि ज़िले में पशुओं की तस्करी और सीमा पार से होने वाली तस्करी आम हो गई है. पुलिस और प्रशासन अपराधियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई करने में नाकाम रहा है. राज्य में अब महिलाएं भी सुरक्षित नहीं हैं.

उनका कहना था, "राज्य सरकार लव-जिहाद को रोकने में नाकाम रही है. यहां ईद पर जबरन गो-हत्या कराई जाती है. राज्य में बीजेपी के सत्ता में आने पर इसे रोक दिया जाएगा और साथ ही गो-तस्करी भी बंद हो जाएगी." योगी ने कहा कि यह बंगाल की पारंपरिक संस्कृति की सीट है और यहीं से बंगाल में परिवर्तन लाया जाना चाहिए.

लेकिन कांग्रेस और टीएमसी के स्थानीय नेता योगी के कथित भड़काऊ बयानों के लिए उनकी खिंचाई करते हैं. टीएमसी नेता कृष्णेंदु नारायण कहते हैं, "योगी को पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए. उत्तर प्रदेश में क़ानून-व्यवस्था की स्थिति किसी से छिपी नहीं है."

दूसरी ओर कांग्रेस महासचिव मोहम्मद मसूद आलम कहते हैं, "यहां बीजेपी का इस बार खाता तक नहीं खुलेंगा. लोग उसकी चाल और चेहरा समझ गए हैं. धर्म के आधार पर विभाजन की उसकी रणनीति इस बार कामयाब नहीं रहेगी."

मालदा कलेक्टरेट परिसर में एक छोटी दुकान चलाने वाले मेंहदी अब्दुल अहद तो बिना लाग-लपेट के कहते हैं, "यहां इस बार तो टीएमसी ही जीतेगी. फुरफुरा शरीफ़ और ओवैसी अपनी जगह पर हैं. लेकिन राज्य में तो ममता बनर्जी ही हैं."

वहीं आधार केंद्र के सामने क़तार में खड़े अब्दुल कुद्दूस का पूरा परिवार कांग्रेसी रहा है. कुद्दूस कहते हैं, "हमारे बाप-दादा कांग्रेस का समर्थन करते रहे हैं. मैं पार्टी पॉलिटिक्स में ज्यादा सिर नहीं खपाता. हां, चुनावों के समय कांग्रेस को वोट देता हूँ और इस बार भी ऐसा ही करूंगा."

एआईएमआईएम के ज़िला संयोजक मतीउर रहमान कहते हैं, "टीएमसी और कांग्रेस जैसी पार्टियां अपनी दुकान बंद हो जाने के ख़तरे की वजह से डरी हुई हैं. टीएमसी पहले भी बीजेपी के साथ रही है. यहां अबकी मुसलमान हमारी पार्टी को ही समर्थन देंगे.''

''अब हमारे वजूद का नकारना किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल है. हमारी चुनावी तैयारियां पूरी हो गई हैं. हम ज़िले की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. जल्दी ही उम्मीदवारों की सूची जारी की जाएगी. टीएमसी ने अल्पसंख्यकों को धोखा दिया है. राज्य सरकार ने अपना एक भी वादा पूरा नहीं किया है."

BBC Hindi
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English summary
West Bengal assembly Elections 2021: Know the equation of this time in Muslim-dominated Malda
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