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क्या ममता बनर्जी अकेले भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती?

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क्या ममता बनर्जी अकेले भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती?

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के पहले ही भाजपा राजनीति का केन्द्र बन गयी है। तूणमूल कांग्रेस और कांग्रेस में इस बात बहस चल रही है कि कौन भाजपा के बढ़ते कदम को रोक सकता है ? अब तृणमूल भी यह मानने लगी है कि उसके और कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन के अलग-अलग लड़ने से भाजपा को फायदा होगा। भाजपा को रोकने के लिए तृणमूल ने जब कांग्रेस-लेफ्ट को साथ आने का ऑफर दिया तो यह माना जाने लगा कि ममता बनर्जी की ताकत कम हो गयी है। इसके बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने कह दिया ममता बनर्जी अकेले भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकती।

क्या ममता अकेले मुकाबला नहीं कर सकती ?

क्या ममता अकेले मुकाबला नहीं कर सकती ?

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है, "तृणमूल चूंकि भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती इसलिए लोगों को कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन पर ही भरोसा करना चाहिए।" राज्य के लोग देख रहे हैं कि तृणमूल की क्या स्थिति है और वह भाजपा को लेकर कितने दबाव में है। अब कांग्रेस के नेता जनता के बीच यह कह रहे हैं कि अगर भाजपा को रोकना है तो उनके गठबंधन को वोट करें। तृणमूल को वोट देकर वे भाजपा विरोधी मत को बर्बाद न करें। अधीर रंजन चौधरी ने आखिर यह बात क्यों कही ? कैसे उन्हें यह महसूस हुआ कि तृणमूल भाजपा का अकेले मुकाबला नहीं कर सकती ? दरअसर 12 फरवरी को बांकुड़ा में तृणमूल नेता तापस राय ने एक जनसभा में कहा था, कांग्रेस और लेफ्ट के लोग ममता बनर्जी के विरोध के नाम पर भाजपा को बंगाल में आमंत्रित कर रहे हैं। भाजपा जैसी पार्टी को अगर कांग्रेस-लेफ्ट ने बंगाल में स्थापित कर दिया तो यह ठीक नहीं होगा। त्रिपुरा का उदाहरण सबके सामने है। वामपंथियों के ध्वंस पर अब वहां भाजपा का शासन है। लेफ्ट हो या कांग्रेस अब वे अकेले भाजपा से लड़ने की ताकत नहीं रखते। इसलिए इन्हें तृणमूल के साथ आ जाना चाहिए। अलग-अलग लड़ने से भाजपा को ही फायदा होगा। तापस राय के इस बायान के बाद कांग्रेस, तृणमूल को कमजोर आंकने लगी है।

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क्या है कांग्रेस-लेफ्ट की स्थिति?

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वामपंथी दल लगभग एक दशक से सत्ता के गलियारे से बाहर हैं। उन्होंने बंगाल पर 34 साल राज किया है। अब वे किसी तरह अपनी खोयी जमीन को वापस पाना चाहते हैं। वाम मोर्चा 2021 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिल कर लड़ रहा है। इनके बीच सीट बंटवारे की प्रक्रिया अंतिम दौर में है। 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वाम दलों से बेहतर प्रदर्शन किया था। कांग्रेस ने 92 सीटों पर चुनाव लड़ कर 44 जीती थीं। जब कि सीपीएम को 26, सीपीआइ को एक, फॉरवर्ड ब्लॉक को 2, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी को 3 सीटें मिली थीं। यानी वाम मोर्चा को 32 सीटें मिलीं थीं। पिछले चुनाव में कांग्रेस दूसरे नम्बर की पार्टी थी इसलिए वह 2021 के चुनाव में खुद को ऊंचा आंक रही है। कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन के साथ इंडियन सेक्यूलर फ्रंट के अब्बास सिद्दीकी के भी आने की बात चल रही है। कांग्रेस और वाम मोर्चा दोनों की राय है कि अब्बास सिद्दीकी के आने से गठबंधन मजबूत होगा। लेकिन दिक्कत तब पेश आयेगी जब सीट बंटवारे का सवाल सामने आएगा। सिद्दीकी ने 294 में से 65-70 सीटों की मांग की है।

कौन कितने पानी में ?

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तृणमूल और कांग्रेस की इस बयानबाजी पर अब भाजपा भी चुटकी ले रही है। बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा है कि अब सत्तारुढ़ तृणमूल को अकेले चुनाव लड़ने पर हारने का डर सताने लगा है। तभी तो वह कांग्रेस और वाम मोर्चा को साथ आने के लिए कह रही है। इसका मतलब है कि बंगाल की जनता ने 2021 में राजनीतिक बदलाव के लिए मूड बना लिया है। दूसरी तरफ ममता सरकार ने पांच रुपये में भरपेट भोजन के लिए 'मां की रसोई' योजना शुरू की है। पांच रुपये में चावल- सब्जी या फिर अंडा-भात खिलाया जा रहा है। राज्य सरकार प्रति प्लेट 15 रुपये की सब्सिडी दे रही है। दोपहर एक बजे से तीन बजे तक ये भोजन दिया जा रहा है। ममता सरकार ने इस योजना के लिए फिलहाल 100 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं। भाजपा, कांग्रेस और वाम मोर्चा ने इस योजना को चुनावी स्टंट करार दिया है। विरोधी दलों का कहना है कि पांच रूपये में अंडा-भात खिलाने की योजना कुछ ही दिनों में टांय-टांय फिस्स हो जाएगी। उन्होंने सवाल उठाया है कि जब चुनाव आया तो ममता बनर्जी को गरीबों की भूख याद आयी। चाढ़े चार साल तक वे क्या कर रहीं थी ? बहरहाल बंगाल में तृणमूल और कांग्रेस इस बात के लिए लड़ रही हैं कि भाजपा को रोकने की ताकत किसमें है।

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English summary
West bengal assembly elections 2021: Can Mamta Banerjee not compete with BJP alone
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