लोकसभा चुनाव 2019: जबलपुर में मतदान की कमान महिला अफ़सरों के हाथ
सोमवार को जबलपुर में होने वाले मतदान की पूरी कमान महिला अधिकारियों के हाथ में हैं.
सोमवार को जबलपुर में होने वाले मतदान की पूरी कमान महिला अधिकारियों के हाथ में हैं.
मध्य प्रदेश के सबसे पुराने शहरों में से एक जबलपुर की कलेक्टर छवि भारद्वाज हैं और इस बाबत वो इस संसदीय क्षेत्र की निर्वाचन अधिकारी और रिटर्निंग ऑफ़िसर भी हैं.
तमिलनाडु से चुनाव पर्यवेक्षक के रूप में आईं हैं वी अमुथ्थावल्ली, तो उप ज़िला निर्वाचन अधिकारी और एक्सपेंडिचर मॉनिटरिंग सेल की नोडल अधिकारी की ज़िम्मेदारियां भी महिला अधिकारियों के हाथ में है.
छवि भारद्वाज कहती हैं कि मतदान के काम में कम से कम 22,000 कर्मचारी लगाए गए हैं जिनमें से ज़्यादातर सरकारी विभागों से हैं. इस काम के लिए इन्हें प्रशिक्षित भी किया गया है.
इसके अलावा मतदान के लिए अर्ध-सैनिक बलों और विशेष पुलिस दस्तों की 11 कंपनियां भी काम पर लगाई गई हैं.
मतदान का समय सुबह सात बजे से लेकर शाम के छह बजे तक रखा गया है.
समय के साथ निर्वाचन के काम में और व्यापकता आती जा रही है. अब ये महज़ ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट तक सीमित नहीं रहा, अब इसमें आईटी एप्लिकेशन और वित्तीय क्षेत्रों से जुड़े मामले भी शामिल हो गए हैं.
2008 बैच की आईएएस छवि भारद्वाज, जो एक लेखिका भी हैं, पिछले साल ही जबलपुर में बहाल हुई हैं और उसके बाद से इसी ज़िले में चुनाव आयोजित करवाने का उनता ये दूसरा अनुभव हैं.
पीएम की रैली को नहीं दी थी इजाज़त
जब प्रशासन ने पिछले शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली को शहीद स्मारक में करने की इजाज़त नहीं दी तो कुछ लोग मामले को अदालत ले गए, लेकिन कोर्ट ने प्रशासन की बात सुनी और सुरक्षा दृष्टि के तर्क को सही माना.
मध्य प्रदेश जैसे पुरुष-प्रधान समाज में चुनाव जैसे संवेदनशील क्षेत्र में औरतों या सिर्फ़ टॉप पर औरतों की टीम के काम करने में कितना मुश्किल होता है?
इस सवाल के जवाब में एक्सपेंडिचर मॉनिटरिंग सेल की नोडल अधिकारी जो ज़िला पंचायत की सीईओ भी हैं, कहती हैं कि महिला होने की वजह से बहुत सारे काम और अधिक आसान हो जाते हैं क्योंकि दूसरे लोग महिला अधिकारियों से डील करते वक़्त इस बात को लेकर अधिक सचेत रहते हैं.
ये भी पढ़ें:
- मुंह का निवाला गिरवी रखने को क्यों मजबूर हैं ये लोग
- गायों को लेकर बीजेपी की राह चली कांग्रेस
- चंबल के ग्लैमर से परे क्या हैं असल मुद्दे