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अपर्णा यादव: मुलायम परिवार की दूसरी बहू के बीजेपी में जाने की कहानी

मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव ने तमाम अटकलों के बाद आख़िरकार बीजेपी का दामन थाम लिया है. क्या है इसके पीछे की कहानी.

By BBC News हिन्दी
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मुलायम सिंह यादव की दूसरी बहू अपर्णा यादव ने आख़िरकार भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया.

up election story of mulayam singhs second daughter-in-law joins BJP

पिछले ही सप्ताह लखनऊ में आईपीएस अधिकारी असीम अरुण के साथ उनकी भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की ख़बरें आने लगी थीं, लेकिन तब अपर्णा यादव के नज़दीकी लोगों ने इससे इनकार कर दिया था. लेकिन उनकी बातचीत भारतीय जनता पार्टी से चल रही है, इसमें किसी को शक़ शुबहा नहीं था, क्योंकि अपर्णा यादव जिस लखनऊ कैंट सीट से टिकट की दावेदार हैं वहां की उम्मीदवार रही रीता बहुगुणा जोशी की नाराज़गी की ख़बरें लगातार मीडिया में आ रही थीं.

हालांकि अपर्णा यादव की भारतीय जनता पार्टी और योगी आदित्यनाथ की नज़दीकी की चर्चा पहले भी होती रही है.

31 मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपर्णा के सरोजनीनगर स्थित गौशाला पहुंचे थे. तब बीबीसी ने अपर्णा से पूछा था कि क्या वे बीजेपी में शामिल हो सकती हैं, तब उन्होंने कहा था, "हमारे बड़े बुज़ुर्ग लगातार कहते रहे हैं कि वर्तमान में हम जो भी करें अच्छे से करें, और भविष्य की बातों को भविष्य के गर्भ में छोड़ दें. भविष्य में जो भी होना है, जो भी हो जैसा भी हो, वो तो भविष्य में ही होगा."

पांच साल बाद ही सही, अपर्णा अपने अच्छे के लिए भारतीय जनता पार्टी में पहुंच गई हैं. दरअसल अपर्णा यादव के बीजेपी में शामिल होने की एक अहम वजह लखनऊ कैंट विधानसभा की सीट भी है, जहां से समाजवादी पार्टी की टिकट पर अपर्णा यादव 2017 का चुनाव बीजेपी की उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी से हार गई थीं. इस बार रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे को इसी सीट से उम्मीदवार बनाने की मांग कर रही हैं, इसके लिए ख़ुद के इस्तीफ़े की पेशकश कर चुकी हैं.

लखनऊ कैंट सीट

दूसरी ओर अपर्णा यादव की भी इस सीट को लेकर अपनी दावेदारी मज़बूती से रखती रही हैं. इस सीट से अपर्णा यादव के लगाव का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब 2017 में अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव से अलग रास्ता लिया तो भी उन्होंने लखनऊ कैंट से अपर्णा यादव को उम्मीदवार बनाए रखा था. तब कहा जा रहा था कि मुलायम सिंह यादव ने उन्हें उम्मीदवार बनाने का फ़ैसला लिया था और पिता के प्रति नरमी दिखाते हुए अखिलेश ने उनका टिकट बनाए रखा था. यह दौर तब था जब एक ही घर में रहने के बाद मुलायम सिंह यादव के दोनों बेटों के आपसी रिश्ते बहुत सहज नहीं माने जाते थे.

अखिलेश ने ना केवल उन्हें टिकट दिया बल्कि उनके क्षेत्र में चुनाव प्रचार किया, हालांकि इन सबके बाद भी अपर्णा यादव चुनाव लगभग 34 हज़ार मतों से हार गई थीं. 2022 के चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी के अंदर भी उनकी दावेदारी इस बार मज़बूत नहीं मानी जा रही थी.

पार्टी के अंदरुनी सूत्रों के मुताबिक लखनऊ कैंट सीट से इलाके के स्थानीय पार्षद राजू गांधी का दावा सीट के लिए अपर्णा यादव से कहीं ज़्यादा मज़बूत है और बहुत संभव है कि पार्टी उन्हें ही अपना उम्मीदवार बनाए. हालांकि पिछले नौ-दस सालों से अपर्णा इसी इलाके में जीव आश्रय नामक एनजीओ चलाती रही हैं.

एनजीओ की मदद से गाय, भैंस और कुत्तों को कान्हा उपवन ले जाया जाता है और वहां उनकी देखभाल होती है. लेकिन उनकी सक्रियता से वह राजनीतिक तौर पर मज़बूत हुई हों, यह बात भरोसे से नहीं कही जा सकती.

राज्य की राजनीति पर नज़र रखने वाले शरद गुप्ता कहते हैं, "आप कह सकते हैं कि अपर्णा यादव के बीजेपी में जाने से समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता भी नाराज़ नहीं होंगे और बीजेपी के कार्यकर्ता भी उतने खुश नहीं होंगे. क्योंकि कैंट की सीट पर पहले से ही बीजेपी के पास दो मज़बूत उम्मीदवार हैं, एक तो रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे के लिए टिकट मांग रही हैं और राज्य के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा की सीट यही बनती है."

वैसे दिलचस्प यह भी है कि समाजवादी पार्टी के टिकट पर यहां से अपर्णा यादव के लिए चुनाव जीतना शायद मुश्किल होता, लेकिन बीजेपी की टिकट पर वह विधानसभा पहुंचने का सपना शायद साकार कर सकती हैं.

समर्थन का गणित

3.15 लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर 60 हज़ार ब्राह्मण हैं, 50 हज़ार दलित, 40 हज़ार वैश्य और 30 हज़ार पिछड़े वर्ग के मतदाता. इस सीट से समाजवादी पार्टी ने कभी चुनाव भी नहीं जीता है और यह बीजेपी की गढ़ माने जाने वाली सीट है. इस लिहाज से देखें तो अपर्णा यादव के बीजेपी में आने से अपर्णा यादव को ज़्यादा फ़ायदा होता दिख रहा है.

बीजेपी को उनसे क्या फ़ायदा होगा, इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी बताते हैं, "बीजेपी के अंदर इस बात को महसूस किया गया कि शिवपाल यादव के साथ समझौता नहीं करने की जो ग़लती हुई है, उसकी भरपाई होनी चाहिए और इसी वजह से अपर्णा को शामिल किया गया है. वोटों की राजनीति पर इसका भले असर नहीं हो, लेकिन परसेप्शन में यह बात तो जाएगी कि अखिलेश यादव से उनका अपना परिवार नहीं संभल रहा है."

अपर्णा यादव अब तक अखिलेश यादव को लेकर सार्वजनिक तौर पर सम्मान से पेश आती रही हैं, ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वह राजनीतिक घमासान में अखिलेश यादव पर किस तरह के हमले करती हैं.

वैसे अपर्णा यादव ख़ुद भी राजनीतिक तौर पर अपनी महत्वाकांक्षा समय-समय पर ज़ाहिर करती रही हैं. वह सार्वजनिक मंचों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ कर चुकी हैं. राजनाथ सिंह से भी उनके अपने परिवार की नज़दीकी रही हैं. इसके अलावा उन्होंने आरक्षण विरोधी बयान देख कर भी राजनीतिक सुर्ख़ियां बटोरी थीं.

लखनऊ के राजनीतिक गलियारे में यह बात लगातार कही जाती रही है कि अपर्णा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा, मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता की देख-रेख में परवान चढ़ती रही है क्योंकि अपर्णा यादव के पिता अरविंद सिंह बिष्ट कई बार यह दावा कर चुके हैं कि उनकी बेटी मुलायम परिवार के फ़ैसलों को ही मानती आयी है.

लखनऊ के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार वीरेंद्र भट्ट ने बीबीसी हिंदी से मार्च, 2017 में बताया था, "2007 में एक अख़बार में ख़बर छपी अखिलेश मुलायम के उत्तराधिकारी. इस हेडलाइन पर मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता ने इतना सख्त विरोध किया कि अख़बार को बाद में स्पष्टीकरण छापना पड़ गया था. वे अपर्णा को आगे बढ़ा रही हैं. ऐसी कोशिश 2014 में आजमगढ़ से मुलायम के दूसरे बेटे प्रतीक यादव को उम्मीदवार के तौर पर देने पर हुई थी, लेकिन प्रतीक यादव की ख़ुद राजनीति में बहुत दिलचस्पी नहीं है."

योगी आदित्यनाथ की अनुपस्थिति के मायने

शरद गुप्ता कहते हैं, "देखिए अपर्णा की अब तक की पहचान यही है कि वे मुलायम सिंह की बहू हैं. जबकि अखिलेश यादव एक बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं, इसलिए अब उनको चुनौती नहीं दी जा सकती है."

हालांकि रामदत्त त्रिपाठी बताते हैं, "देखिए अपर्णा के परिवार की योगी आदित्यनाथ के साथ नज़दीकी जग ज़ाहिर है लेकिन आप देखिए जब अपर्णा पार्टी ज्वाइन कर रही हैं तो योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी नहीं है. वहां केशव प्रसाद मौर्या और स्वतंत्र देव सिंह नज़र आ रहे हैं. पिछले दिनों जो पिछड़े वर्ग के नेताओं से जो नुक़सान हुई है, उस नुक़सान की भरपाई की कोशिश करती हुई बीजेपी दिख रही है."

हालांकि कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि अपर्णा यादव ने बीजेपी का दामन उस समझौते के तहत थामा है जिसमें आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में उनके पति यानी मुलायम सिंह यादव के दूसरे बेटे प्रतीक यादव के ख़िलाफ़ जांच को मैनेज किया जा सके.

लेकिन समाजवादी पार्टी कैंप के एक नेता ने नाम ना ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा, "परिवार में क्या कुछ हुआ होगा, ये हमलोग नहीं बता सकते. लेकिन हमारा नेतृत्व अखिलेश यादव कर रहे हैं और वे ऐसी चुनौतियों से निपटने में सक्षम हैं."

व्यक्तित्व

32 साल की अपर्णा बिष्ट 2011 में मुलायम परिवार की पुत्रवधू बनीं. अपर्णा और प्रतीक का विवाह प्रेम विवाह था और दोनों के बीच स्कूली दिनों में ही प्रेम हो गया था. बाद में दोनों ने इंग्लैंड में साथ-साथ पढ़ाई की.

सार्वजनिक जीवन में दिलचस्पी रखने वाली अपर्णा की संगीत में भी बेहद दिलचस्पी है. वह क्लासिकल और सेमीक्लासिकल संगीत की शिक्षा ले चुकी हैं और बहुत अच्छी सिंगर भी हैं. संगीतकार साजिद-वाजिद के निर्देशन में उनका एक म्यूज़िकल एल्बम आ चुका है जिसे सैफ़ई महोत्सव में मुलायम सिंह ख़ुद ज़ारी कर चुके हैं.

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