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उम्मुल जैसी लड़की के सपने किसी के गुलाम नहीं होते....

झुग्गियों में रहकर उम्मुल खैर आईएएस की परीक्षा में सफल हुई हैं. सफलता की राह में आड़े नहीं आई ग़रीबी, उनका लड़की होना या फिर उनकी बीमारी..

By सुशील कुमार झा - बीबीसी संवाददाता
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उम्मुल
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शाम के छह बजकर पैंतालीस मिनट हो रहे थे. मैंने उम्मुल को फोन किया कि इंटरव्यू के लिए नीचे खड़ा हूं.

उम्मुल ने जवाब दिया कि आप जल्दी कर लेंगे तो मैं आ जाऊंगी क्योंकि सात पंद्रह पर इफ़्तार का टाइम है और मैं रोज़े से हूं.

मैंने वादा किया कि उस समय से पहले इंटरव्यू हो जाएगा तो उधर से कहा गया..दो मिनट में आती हूं.

सोशल: कभी झुग्गी में रहने वाली उम्मुल खैर के IAS बनने की कहानी

दूसरे मिनट में जो लड़की नीचे आई वो मेरी कल्पनाओं से परे थी. कद करीब पांच फीट. गोरी. जूतों में स्पेशल सोल लगे थे जो बता रहे थे कि उन्हें चलने में थोड़ी सी दिक्कत है.

आईएएस की परीक्षा पास करने वाली उम्मुल के बारे में अखबारों में काफी कुछ छप चुका था कि उन्हें हड्डियों की बीमारी है.वो झुग्गियों में रही हैं और आईएएस में पास होने से पहले उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा है.

मैं आमतौर पर ऐसी कहानियों से जल्दी प्रेरित नहीं होता हूं. तिस पर उम्मुल जेएनयू के उस सेंटर से पढ़ रही थीं जिसमें मैं भी पहले पढ़ चुका था.

उम्मुल
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उम्मुल के बारे में पढ़ते हुए बार-बार झुग्गियों का इतना ज़िक्र था कि आप एक स्टीरियोटाइप होकर जाते हैं इंटरव्यू से पहले इसलिए मैंने अखबार की कतरनों पर सरसरी नज़र डाली थी.

जिस उम्मुल को मैंने देखा वो कहीं से भी नहीं लगा कि झुग्गियों में रही होंगी. कहने का मतलब कि उनके हाव भाव में कहीं से भी ऐसा नहीं था कि झुग्गियों में रहने को लेकर वो एपोलोजेटिक हैं या फिर अपने लिए किसी भी तरह से वो कोई सहानुभूति चाहती हैं कि चूंकि वो झुग्गी में रही हैं इसलिए उन्हें अतिरिक्त फ़ायदा मिले.

एक अत्यंत कॉन्फ़िडेंट, खुशमिजाज और विनम्र उम्मुल, जिसने आते ही सबसे पहले माफी मांगी ये कहते हुए कि सॉरी सर मैंने आपसे ठीक से बात नहीं की.

खैर फेसबुक लाइव में उम्मुल ने अपनी बात रखनी शुरू की और मैं धीरे-धीरे उसके आत्मविश्वास से विभोर होता चला गया.

राजस्थान के कंजर्वेटिव मुस्लिम परिवार में एक बीमारी के साथ पैदा हुई लड़की जो दिल्ली के निज़ामुद्दीन की झुग्गियों में रही. झुग्गियां तोड़ी गईं तो त्रिलोकपुरी की झुग्गी में गई.

आठवीं के बाद जब मां बाप ने शादी करने की कोशिश की तो घर छोड़कर अपना कमरा लिया और बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर खुद की पढ़ाई जारी रखी. डीयू में साइकोलॉजी पढ़ने के बाद इसलिए आगे साइकोलॉजी में एमए नहीं किया क्योंकि उसके लिए अस्पताल में आठ घंटे समय देना पड़ता और इस काम में वो ट्यूशन नहीं पढ़ा पाती जो उसके गुज़ारे के लिए ज़रूरी था.

वहां से जेएनयू में आने का प्रयास और फिर…..साल भर के लिए जापान और अब यूपीएससी.

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संक्षेप में लगता है कि आप बॉलीवुड या हॉलीवुड की कोई कहानी सुन रहे हों. बस इस कहानी की हीरो उम्मुल का अपना आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा है.

मैंने लाइव के दौरान ही उम्मुल से कहा कि मैं आम तौर पर जल्दी इंस्पायर नहीं होता किसी से लेकिन तुमसे बात करते हुए इंस्पायर महसूस कर रहा हूं.

उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि मैं बस अपने लक्ष्य पर ही ध्यान देती हूं और कुछ सोचती ही नहीं थी.

गरीबी, बीमारी और ऊपर से कंजर्वेटिव फैमिली में लड़की…सारे वो तत्व जिसके कारण आप जीवन में आगे न बढ़ पाएं. उम्मुल ने इन सारी धारणाओं को अपनी मेहनत से तोड़ा है और इसलिए वो खास है.

लाइव के बाद इफ्तार के लिए जाते हुए मैंने बताया कि मैं भी जेएनयू से हूं. वो इतनी खुश हुई कि हमने हाई फाइव किया और वो खिलखिला कर हंसी. उम्मुल ने वादा किया कि वो हमारे लिए आगे लिखेगी.

चलते-चलते उसकी तिपहिया स्कूटर के सामने आकर मैंने पूछा…ये तुम्हारी गाड़ी है..

उसने जवाब दिया…ये मेरा हवाई जहाज़ है. मैं इसी से उड़ती हूं.

उम्मुल जैसी लड़कियों के सपने किसी के भी गुलाम नहीं हैं…उनके सपने उन्हें हर उस मुकाम तक पहुंचा सकते हैं जहां वो जाना चाहते हैं. उम्मुल को देखकर यही ख्याल आया कि शारीरिक अक्षमता, गरीबी, लड़की होना सब बहाने हैं…अगर आपने मेहनत की और सपने देखे तो सब कुछ संभव है.

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English summary
The dream of a girl like Ummul is not the slave of anyone ....
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