अयोध्या मामले में मध्यस्थता के सुझाव पर क्या बोले सुब्रह्मण्यम स्वामी?
नई दिल्ली। अयोध्या मामले में आज सुनवाई करते हुए देश की सर्वोच्च अदालत ने मध्यस्थता को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय पीठ ने आज सुनवाई की। मध्यस्थता को लेकर जहां रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने मध्यस्थता से इंकार किया। उनका कहना है कि ऐसी कोशिश पहले भी की जा चुकी है जो व्यर्थ गई। वहीं एक और हिंदू पक्षकार निर्मोही अखाड़े ने मध्यस्थता को लेकर हामी भरी। मुस्लिम पक्ष ने भी मध्यस्थता पर सहमति जताई। इस बीच भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अपनी बात कही।
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भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सुनवाई के दौरान कहा कि मध्यस्थता के कुछ पैरामीटर हैं, जिससे आगे नहीं जाया जा सकता है। सुनवाई के दौरान स्वामी ने कहा कि 1994 में संविधान पीठ के फैसले का जिक्र किया, जिसमें पासिंग रिमार्क था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अंदरूनी हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मध्यस्थता व्यर्थ अभ्यास है।
Subramanian Swamy: Mediation in Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid land dispute case is a sterile exercise. pic.twitter.com/BWG1FMUuWN
— ANI (@ANI) March 6, 2019
गौरतलब है कि अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में आज सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट में कहा कि ये भूमि विवाद का मसला नहीं है, ये लोगों की भावनाओं से जुड़ा मसला है। कोर्ट ने मध्यस्थता की नाकाम कोशिशों की दलीलों को लेकर कहा कि हम अतीत को नहीं बदल सकते, पर आगे तो फैसला ले सकते । कोर्टने मध्यस्थता के फैसले को सुरक्षित रख लिया। वहीं निर्मोही अखाड़े को छोड़कर रामलला विराजमान समेत हिंदू पक्ष के बाकी वकीलों ने मध्यस्थता का विरोध किया।