शिवसेना ने सामना में भाजपा पर कसा तंज, 'NDA से अकाली दल का जाना आखिरी स्तंभ के चले जाना जैसा'
शिवसेना ने सामना में भाजपा पर कसा तंज, 'NDA से अकाली दल का जाना आखिरी स्तंभ के चले जाना जैसा'
मुंबई। कृषि से जुड़े कानूनों में बदलाव को लेकर पंजाब का शिरोमणि अकाली दल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से छोड़ दिया है। वर्षों से भाजपा से मजबूती से जुड़ा हुआ अकाली दल अब अलग हो चुका है। एनडीए में शामिल शिरोमणि अकाली दल ने इन बिलों का विरोध करते हुए पहले सरकार और फिर एनडीए से बाहर जाने का फैसला कर लिया। बिल के विरोध में वहीं पहले एनडीए सरकार में शामिल शिवसेना पार्टी ने अपने मुख पत्र सामना में एक बार फिर एनडीए का आकाली दल का साथ छोड़ने को लेकर तंज कसा है।
एनडीए दो शेरों को गंवा चुका हैं
शिवसेना
के
मुखपत्र
सामना
में
ये
लेख
एनडीए
का
अकाली
दल
से
अलग
होने
पर
लिखा
है।
संपादकीय
में
लिखा
गया
कि
एनडीए
का
आखिरी
स्तंभ
भी
चला
गया
है
और
राष्ट्रीय
स्तर
पर
इससे
हिंदुत्व
की
राजनीति
निस्तेज
होती
दिख
रही
है।
पंजाब
के
अकाली
दल
ने
भी
एनडीए
का
साथ
आखिरकार
छोड़
दिया
है।
इस
पार्टी
का
एनडीए
से
लंबा
जुड़ाव
था।
लेकिन
सालों
बाद
अब
वो
छूट
गया
है।
शिवसेना
ने
ये
भी
लिखा
कि
अगर
केंद्र
सरकार
की
सत्ता
हाथ
में
है
तो
कुछ
भी
असंभव
नहीं
है,
लेकिन
बीजेपी
ने
सत्ता
का
‘किला'
भले
जीत
लिया
हो
पर
वे
शिवसेना
और
अकाली
दल
के
रूप
में
एनडीए
के
दो
शेरों
को
गंवा
चुके
हैं।
इस
तथ्य
से
कैसे
इनकार
किया
जा
सकता
है?
आज
देश
की
राजनीति
को
एकतरफा
शासन
की
ओर
धकेला
जा
रहा
है।
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एनडीए ने अकाली दल को रोकने का भी कोई प्रयास नहीं किया
सामना ने अपने संपादकीय में आगे लिखा अकाली दल के प्रमुख प्रकाश सिंह बादल की बहू हरसिमरत कौर पहले ही किसानों के मुद्दों पर केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे चुकी हैं। चलो अच्छा हुआ पीछा छूटा की तर्ज पर हरसिमरत कौर का इस्तीफा तुरंत स्वीकार कर लिया गया। हरसिरत कौर को लगा था कि उनसे कहा जाएगा कि वे विचलित न हों, ऐसा कदम न उठाएं लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसमें आगे लिखा गया कि अब भले ही बादल ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन छोड़ दिया हो, लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि उन्हें रोकने का कोई प्रयास नहीं किया गया।
क्या वास्तव में कोई एनडीए बचा है?
सामना में केन्द्र सरकार पर कृषि विधेयक को लेकर आरोप लगाया गया कि उसने इसे जबरन पारित किया है। अकाली दल सुखबीर सिंह बादल ने कहा हम सरकार के एक साथी दल थे लेकिन हमें विश्वास में नहीं लिया गया। आखिरकार, अकाली दल को एनडी से हटना पड़ा और भाजपा ने एक और पुराने, सच्चे सहयोगी के छोड़ने पर आंसू की एक बूंद भी नहीं बहाई। इससे पहले शिवसेना को एनडीए छोड़ना पड़ा अब अकाली दल बाहर हो गया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के दो मुख्य स्तंभों के बाहर हो जाने से क्या वास्तव में कोई एनडीए बचा है? यह सवाल बना हुआ है। आज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में कौन है, यह शोध का विषय है. जो हैं उनका हिंदुत्व के साथ कितना संबंध है?
पंजाब और महाराष्ट्र, दोनों मर्दाना तेवर वाले राज्य हैं और...
सामना में आगे लिखा गया कि पंजाब और महाराष्ट्र, दोनों मर्दाना तेवर वाले राज्य हैं और अकाली दल और शिवसेना उस मर्दानगी का चेहरा हैं, इसलिए उसका एनडीए की बजाय भाजपा नीत वाले गठबंधन के रूप में उल्लेख करना होगा। 1995 - 96 के बीच एनडीए का गठन इस आधार पर किया गया था, ताकि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन तैयार हो। उस समय कांग्रेस का सूरज राष्ट्रीय क्षितिज पर इतनी तेजी से चमक रहा था कि उसका असर बिखरे हुए विरोधियों पर साफ दिख रहा था। उस समय हिंदुत्व और नव-राष्ट्रवाद की हवा बह रही थी। बाबरी के ढहाए गए ढांचे से धूल उड़ ही रही थी। इसलिए देश में राजनीतिक माहौल गर्म था। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दल कांग्रेस के खिलाफ, उनकी नीतियों के खिलाफ बोल रहे थे। मुद्दा एक लेकिन 'सुर' सौ होने के कारण कोलाहल मचा था।
एनडीए में कई उतार-चढ़ाव आए शिवसेना और अकाली दल ने साथ नहीं छोड़ा
महाराष्ट्र में शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने हिंदुत्व की दहाड़ लगाकर देश में नई चेतना ला दी थी। महाराष्ट्र में शिवसेना के कारण हिंदुत्व का तेज फैला ही हुआ था ही लेकिन भाजपा को ऐसा लग रहा था कि उनका वोट बैंक शिवसेना अपने कब्जे में ले रही है। वोटों के विभाजन से बचने के लिए, महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन किया गया था और बाद में कांग्रेस के खिलाफ ‘एनडीए' के रूप में एक मजबूत गठबंधन बनाया गया। इस गठबंधन में कई उतार-चढ़ाव आए। सत्ता आई, सत्ता गई। कई सहयोगी दल अपनी सुविधानुसार निकल गए, लेकिन राजग के दो स्तंभ शिवसेना और अकाली दल, भाजपा के साथ बने रहे। इन दोनों दलों द्वारा ‘एनडीए' को राम-राम कर दिए जाने से एनडीए में अब कोई राम बचा है क्या? प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, भाजपा ने दो आम चुनाव जीते। कई राज्यों में उनकी सत्ता है। जहां वे अल्प मत में थे, वहां भी कुछ-न-कुछ जुगाड़ करके सत्ता हासिल की।
राष्ट्रीय राजनीति बेस्वाद हो गई है
एनडीए से शिवसेना के बाद अकाली दल के निकल जाने से राष्ट्रीय राजनीति बेस्वाद हो गई है। कांग्रेस आज भी एक बड़ी पार्टी है, किन राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव जीते बिना राजनीतिक महानता साबित नहीं होती। जिन कारणों से ‘एनडीए' की स्थापना हुई, वे कारण ही मोदी के बवंडर में नष्ट हो गए। इस सत्य को स्वीकार करके नया झंडा फहराना होगा। फिलहाल ‘एनडीए' का आखिरी ‘स्तंभ' अकाली दल भी हट गया है। राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुत्व की राजनीति इससे निस्तेज होती दिख रही है. नए सूर्य का उदय होगा क्या?
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